आदिवासी सप्ताह विशेष: मध्य प्रदेश की सहरिया जनजाति; शिक्षा से दूर होते बच्चे कुपोषण और पिछड़ेपन के शिकार

स्कूल में पढ़ाई का माध्यम बच्चों की समझ से है परे, इनकी बोली में हो पढ़ाई तो जुड़ सकेंगे मुख्यधारा से
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सांकेतिकफोटो साभार- द वायर
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भोपाल। मध्य प्रदेश में सहरिया जनजाति समाज अपनी मातृभाषा/क्षेत्रीय बोली को संरक्षित करने के लिए संघर्ष कर रहा है। प्रदेश के ग्वालियर और चंबल संभाग के ग्रामीण इलाकों में ही सहरिया समाज के लोग निवासरत है। सरकार ने आदिवासी सहरिया समाज को शिक्षा से जोड़ने के लिए भाषाई शिक्षकों के पद भी सृजित किए लेकिन आजतक नियुक्तियां नहीं हो पाईं। विद्यालयों में भाषा को नहीं समझ पाने के कारण कई सहरिया समाज के बच्चों ने स्कूल से मुँह मोड़ लिया। आदिवासी सप्ताह के तहत भारत के विभिन्न क्षेत्रों में बसने वाले जनजाति समुदायों की दशा जानने के लिए द मूकनायक ने जब कि पड़ताल तो सहरिया जनजाति की इन मुश्किलों का हुआ खुलासा, पढ़िए हमारी ये खास रिपोर्ट- 

मध्य प्रदेश के ग्वालियर-चंबल जिलों में आदिवासी समुदाय सहरिया समाज के लोग ग्रामीण अंचलों में रहते हैं। सर्वाधिक आबादी में यह शिवपुरी और श्योपुर जिले में निवासरत है। पूरे प्रदेशभर में सहरिया मुख्यरूप से ग्वालियर-चंबल में ही पाए जाते है। जनजातियों में सहरिया अति पिछड़ी जनजातियों में से  एक है जिसे (PVTGS) में रखा गया है। 

बीच में ही पढ़ाई छोड़ रहे सहरिया

मध्य प्रदेश के अशोकनगर जिले के ग्राम नारोन की सपना सहरिया ने भी अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। कारण था शिक्षा के लिए प्रोत्साहन नहीं मिलना। और भाषा को समझने में असहज होना। सपना वर्ष 2015 में छठी कक्षा पास कर सातवीं में पहुँची थी लेकिन फिर अचानक पढ़ाई छोड़ दी। सहरिया समाज में बच्चे बीच में ही पढ़ाई छोड़ रहे है। इनका शिक्षा दर भी लगभग 15 प्रतिशत से कम है।

द मूकनायक से बातचीत करते हुए सपना के पिता करन सहरिया ने बताया कि उनकी बेटी सातवीं कक्षा तक स्कूल गई इसके बाद उसने पढाई छोड़ दी। करन ने कहा कि उन्होंने बेटी को समझाया पर वह स्कूल जाना नहीं चाहती थी। उन्होंने कहा भाषाई शिक्षकों को हटाए जाने से यह स्थिति बनी  कि बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया। इसके अलावा भी कई बच्चे थे जिन्होंने पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी।

क्षेत्रीय भाषा, बोली ही समझते है बच्चे

अशोकनगर के नारोन गाँव में वर्ष 2015 में भाषाई शिक्षक के रूप में भानसिंह सहरिया पदस्थ थे। द मूकनायक से बातचीत करते हुए भानसिंह ने बताया कि गाँव के बच्चों को वह स्कूल जाने के लिए प्रोत्साहित करते थे। उनके माता-पिता को भी समझाईश देकर बच्चों को स्कूल में दाखिला कराते थे। उन्होंने कहा भाषाई शिक्षकों के रहते हुए सहरिया समाज के बच्चे स्कूल से जुड़ना शुरू हुए थे कि सरकार ने इस योजना को ही बंद कर दिया। भाषाई शिक्षक मूल रूप से बच्चों को क्षेत्रीय भाषा, और बोली में बच्चों को पढ़ाते थे, ताकि सहरिया समाज के बच्चे ठीक से समझ सकें।

शिवपुरी जिले में सहरिया क्रांति आंदोलन को संचालित कर रहे वरिष्ठ पत्रकार संजय बेचैन ने द मूकनायक से बातचीत में बताया कि सहरिया समाज के लोग ग्रामीण क्षेत्रों और जंगलों के नजदीक रहते है। बाहर के अन्य लोगों से संपर्क कम होने के कारण सिर्फ यह अपनी बोली में बात करते है। बच्चों की भी ऐसी ही स्थिति है। भाषाई शिक्षक सहरिया जनजातीय समाज के बच्चों को उनकी ही भाषा में पढ़ा रहे थे। इसलिए यह बच्चे स्कूल और शिक्षा से जुड़ना शुरू हुए थे। इनकी कोई अलग भाषा नहीं है यह अपनी बोली में बातचीत करते है। सजंय बेचैन ने कहा कुछ लोग इन्हें शिक्षा से दूर रखना चाहते है।

अति पिछड़ी जनजातियों में शामिल है सहरिया समुदाय

सहरिया जनजाति अति पिछड़ी जनजातियों में से एक है जिसे (PVTGS) में शामिल किया गया है। इनके पिछड़ेपन का मुख्यकारण शिक्षा से दूर होना है। सहरिया अति प्रचानी परम्परागत कृषि तकनीकी का उपयोग करते है। इनकी शून्य जनसंख्या वृद्धि है और यह सर्वाधिक कुपोषित जनजाति है। देश में चार लाख के करीब अति पिछड़ेपन का शिकार जनजातीय समाज के लोग है। जिनमें सर्वाधिक सहरिया समाज के लोग पिछड़े है।

तीन जनजाति है पिछड़ेपन का शिकार

द मूकनायक से बातचीत में बीयू समाजशास्त्र विभाग के शोधार्थी इम्तियाज खान ने बताया- देश में अति पिछड़ी 75 जनजातियां है, जो की 18 राज्यों में पाईं जाती है। उन्होंने बताया मध्य प्रदेश में तीन जनजातियां वैगा, भारिया और सहरिया अति पिछड़ी जनजातियों में शामिल है। शिक्षा का निम्न स्तर होना इनके पिछड़ेपन का मुख्यकारण है। अपनी क्षेत्रीय बोली में ही यह बातचीत करते है। इस कारण से भी यह शिक्षा से दूर है।

कुपोषण से जूझ रहे सहरिया

प्रदेश के शिवपुरी और श्योपुर जिले में ही सर्वाधिक आबादी में सहरिया समाज के लोग रहते है। प्रदेशभर में कुपोषण में श्योपुर जिला टॉप पर है। यहाँ रह रहे सहरिया समाज कुपोषण का शिकार है। प्रशासन और महिला बाल विकास कुपोषण दूर करने के लिए कई तरह के अभियान चला रहे हैं। पर तमाम कोशिशों के बाद भी परिणाम संतोषजनक नहीं है।

भाषाई शिक्षकों की नियुक्ति के लिए आंदोलन शुरू

पिछले सप्ताह ही ग्वालियर चंबल संभाग के जनजातीय समुदाय के सहरिया पैदल 400 किलोमीटर की यात्रा कर राजधानी भोपाल पहुँचे थे। पैदल यात्रा कर भोपाल पहुँचे लोगों का कहना था कि 2017 में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भाषाई शिक्षक के 286 पदों को सृजित करने की घोषणा की थी, लेकिन कैबिनेट से मंजूर होने के बाद भी भाषाई शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हुई है।

सहरिया समाज के आकाश आदिवासी ने द मूकनायक से बातचीत में बताया कि वर्ष 2014 में भाषाई शिक्षकों को हटाया गया था। साल 2018 में शासन द्वारा 286 पद सृजित किये उन्हीं पदों पर हटाए गए शिक्षकों को नियुक्त करने की मांग की जा रही है। आकाश ने कहा भोपाल आने के बाद भी सीएम शिवराज से मुलाकात नहीं हो पाईं है। हमने सरकार को 10 अगस्त तक का अल्टीमेटम दिया है, यदि मांग पूरी नहीं होती है तो हम भोपाल पहुँचकर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल करेंगे।

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