जयपुर। आदिवासी कार्तिक भील का परिवार न्याय की मांग को लेकर 9 माह से सिरोही जिला कलेक्टर कार्यालय के बाहर धरने पर है। ठिठुरती रात, झुलसी दोपहरी व बरसात में भीगते हुए कार्तिक भील के परिवार ने न्याय के उम्मीद में खुले आकाश तले दिन बिताएं हैं, लेकिन शासन व प्रशासन के कानों तक आदिवासी परिवार की पुकार नहीं पहुंची। परिवार को जगह छोड़ने के लिए तरह-तरह से प्रताड़ित किया गया। कभी रोड लाइट बंद कर अंधेरे में रहने को मजबूर किया गया तो कभी धूप से बचने के लिए बांधे गए तिरपाल को हटाने के लिए दबाव बनाया गया। फिर भी यह परिवार न्याय की उम्मीद में अडिग रहा।
बेबस परिवार कभी शासन व प्रशासन की तरफ उम्मीद से देखता हे तो कभी समाज की और भरोसे के साथ, लेकिन बीते नौ महीने ना-उम्मीदी में बीत गए। कार्तिक के बुजुर्ग पिता की पथराई आंखे रातों को भीग जाती, लेकिन सूरज की किरण निकलने के साथ पथरा जाती। ताकि मासूम पोतों और की कार्तिक की पत्नी आंखो में न्याय की उम्मीद की चमक बरकरा बनी रहे। अब एक बार फिर कार्तिक भील के परिवार को न्याय दिलाने के लिए आदिवासी समाज ने हुंकार भरी है, लेकिन यह हुंकार कार्तिक भील के परिवार को न्याय दिलाने में कितनी कारगर होगी देखना होगा।
आदिवासी समाज का नेतृत्व करते हुए भारतीय ट्राइबल पार्टी से चौरासी विधायक राजकुमार रोत मंगलवार को आदिवासी समाज के साथ कार्तिक भील के परिवार के पास धरना स्थल पर पहुंचे। जहां पंचों की बैठक हुई। इस दौरान कार्तिक भील के परिवार के साथ किए गए छल को लेकर भी चर्चा हुई। चर्चा के बाद विधायक राजकुमार रोत, जीतू भील जोधपुर सहित आदिवासी समाज के पंचों ने परिवार को साथ लेकर जिला प्रशासन से बात की। इस दौरान विधायक रोत ने कार्तिक भील हत्याकांड के सभी शेष आरोपियों को गिरफ्तार करने, पीड़ित परिवार को पचास लाख रुपए आर्थिक सहायता देने, मृतक कार्तिक भील की पत्नी को रोजगार व बच्चों के पालन पोषण के लिए स्थायी सरकारी नौकरी देने तथा शिवगंज मांशावली में कार्तिक के पुस्तैनी मकान का पट्टा जारी करने की मांग की। इस पर प्रशासन की और से पांच दिन का समय मांगा गया। इस पर विधायक राजकुमार रोत ने पांच दिन में मांगे पूरी नहीं होने पर बड़ा आंदोलन करने की चेतावनी भी दी है।
राजकुमार रोत, विधायक भारतीय ट्राइबल पार्टी, ने कहा, "राजस्थान में सिरोही, बाड़मेर, जालौर के इलाके में गरीब तबके के लोगों के साथ पशुओं के समान व्यवहार किया जाता है। कानून की लाठी भी गरीब, अमीर और जात-पात को देख कर उठती है। कानून की कलम भी जात-पात को देखकर न्याय लिखती है। कार्तिक भील के साथ गलत हुआ। राजनीतिक सरंक्षण में पीड़ित परिवार की मांगों को दबाने का प्रयास हुआ, लेकिन परिवार ने हिम्मत नहीं हारी। अब हम परिवार के साथ न्याय के लिए आखरी सांस तक लड़ेंगे।"
कार्तिक भील उर्फ कांतिलाल भील अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद युवा प्रकोष्ठ सिरोही जिलाध्यक्ष कें के पद पर था। स्थानीय जिला सहित प्रदेश भर में कहीं भी दलित व आदिवासियों पर अत्यचार होता तो बहुजनों की आवाज बन कार्तिक न्याय के लिए लड़ता था। कार्तिक के पिता कपूराराम की माने तो "कार्तिक हमेशा कहता था कि वह समाज के लिए पैदा हुआ है। उसकी हर सांस समाज के न्याय के लिए है।" परिवार के अनुसार कार्तिक समाज की आवाज बनने लगा था। इसलिए सामंतवादी सोच रखने वालों को पसंद नहीं आया और उसे रास्ते से हटा दिया।
शिवगंज में कार्तिक के परिवार का पुशतैनी मकान है। कार्तिक परिवार के साथ वर्षों से उसी मकान में रह रहा था। आस पास बड़े पक्के मकान हैं। इनके बीच परिवार का अकेला केलूपोश घर है। आरोप है कि, उनके आदिवासी होने के कारण कुछ लोगों को बड़े-बड़े पक्के मकानों के बीच ये कोलू का घर पसंद नहीं था। इसलिए शासन के दबाव में प्रशासन ने अकेले आदिवासी के मकान को अवैध बता कर तोड़ने की कवायद शुरू कर दी। इस दौरान कार्तिक अपनी पुस्तैनी आशियाने को बचाने के लिए सिस्टम से अकेला ही लड़ता रहा। आखिर उसे तोड़ने के लिए राजनीतिक लोगों ने करोड़ो रुपए भी ऑफर किए, लेकिन कार्तिक ने करोड़ों रुपयों को ठुुकरा कर अपने आशियाने का चुना। कार्तिक के भाई प्रवीण कहते हैं जब आदिवासी परिवार ने हर लालच को ठुकरा दिया तो फिर कार्तिक को रास्ते से हटाने का षड़यंत्र रच कर उसकी हत्या करवा दी गई।
कार्तिक भील के भाई प्रवीण ने बताया कि 19 नवम्बर को सिरोही जिला मुख्यालय से अपने दोस्त के साथ बाइक से लौट रहे कार्तिक पर राजूराम माली, प्रवीण माली, टेपाराम माली, भगाराम माली ने अपने अन्य नकाबपोश्सा साथियों के साथ मिलकर हमला किया था। हमले के बाद गम्भीर घायल कार्तिक को उपचार के लिए गुजरात के मेहसाणा ले जाया गया। जहां 1 दिसम्बर को उसकी मौत हो गई। कार्तिक की मौत के बाद परिवारजन शव लाना चाहते थे, लेकिन अस्पताल में पुलिस ने शव कब्जे में कर परिवार को नहीं दिया। इसके बाद जब भीम आर्मी, भीम सेना सहित अन्य आदिवासी व दलित संगठनों ने धरना दिया तब जाकर चिकित्सालय से शव परिवार को सौंपा था।
प्रवीण कुमार कहते हैं "जब तक भाई का पोस्टमार्टम नहीं हुआ था, तब तक अफसरों ने सभी मांगे पूरी करने के वादे किए, शव का पोस्टमार्टम होते ही अंतिम संस्कार भी करवा दिया. कार्तिक के अंतिम संस्कार के बाद किसी ने भी परिवार की तरफ पलट कर नहीं देखा। कार्तिक की हत्या के आरोप में बरलूट में 8 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया था। इसमें 4 नामजद व चार नकाब पोश भी शामिल थे, लेकिन पुलिस ने खानापूर्ति कर दो लोगों की गिरफ्तारी कर मामले को रफा दफा कर दिया। जबकि नकाब पोश लोग साजिशन कार्तिक की हत्या करने आए थे। पुलिस ने आज तक नकाबपोश बदमाशों को गिरफ्तार कर इनके नामों का खुलासा नहीं किया।" कार्तिक की हत्या पिता कपूराराम ने पुलिस थाने में तहरीर दी थी, लेकिन राजनीतिक दबाव में पुलिस ने कार्तिक के पिता की तहरीर पर एफआईआर दर्ज नहीं की।
इससे पूर्व विधायक राजकुमार रोत ने कार्तिक भील के परिवार की मांगों को लेकर विधान सभा में भी आवाज उठाई थी, लेकिन सदन में आश्वासन के बाद भी सरकार आदिवासी परिवार को न्याय दिलाने वादे पर खरी नहीं उतरी।
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.