प्रतापगढ़, राजस्थान - आमतौर पर जब आदिवासी महिला की बात होती है, तो शर्मीली, घूंघट काढ़ी महिला की छवि दिमाग में उभरती है, जो अपने रसोईघर में काम करती है या बच्चे को हाथ में पकड़े हुए होती है या मवेशियों को चराती है। लेकिन राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले के पटेलिया गांव में, 27 वर्षीय फूलवंती मीणा ने पारंपरिक आदिवासी महिला की छवि को तोड़ते हुए एक नई पहचान बनाई है।
फूलवंती जिले की एकमात्र आदिवासी महिला ड्रोन पायलट हैं और कुशलता से खेतों में उर्वरक और कीटनाशक छिड़कने के लिए ड्रोन उड़ाती हैं।
फूलवंती जिले के उन 5 लोगों में शामिल हैं, जिनमें 3 महिलाएं भी हैं, जिन्हें प्रधानमंत्री ड्रोन दीदी योजना के तहत कृषि के लिए ड्रोन प्रदान किए गए हैं। यह ड्रोन खाद-बीज बिक्री करने वाली सरकारी संस्था इफको द्वारा दिया गया है, जिसने चयनित उम्मीदवारों को 15 दिनों का प्रशिक्षण प्रदान किया।
प्रतापगढ़ जिले में ड्रोन के द्वारा नैनो उर्वरक और कीटनाशी दवाईयो का छिड़काव इन दिनों किया रहा है l बनवारी लाल जोशी , छोटी सादड़ी ब्लॉक में छिड़काव कर रहे है l शिवलाल धाकड़ जलोदा जागीर, मानपुरा जागीर और अन्य क्षेत्र में छिड़काव कर रहे है ,इसके अलावा सरला मोर्या, फूलवंती मीना , अर्पिता राठौर ड्रोन के द्वारा प्रतापगढ़ के अन्य क्षेत्रों में छिड़काव कर रही है.
फूलवंती के पति इफ्फको आउटलेट पर अपने खेतों में उपयोग के लिए खाद और दवा लेने जाते हैं और वहीं उन्हें योजना के बारे में मालूम हुआ. आवेदन करने के बाद इंटरव्यू हुआ जिसमे फूलवंती चयनित हुई.
फूलवंती ने द मूकनायक को बताया, " हमें अप्रैल 2024 में ड्रोन मिला, उसके बाद हैंडिंग ओवर की प्रक्रिया पूरी हुई और मैंने मई में प्रशिक्षण समाप्त किया। यह पहला सीजन है और मैं खरीफ की फसलों के लिए ड्रोन संभाल रही हूं। इफको ने एक इलेक्ट्रिक वैन भी प्रदान की है जिसमें हम ड्रोन सेट को सुरक्षित तरीके से रख सकते हैं, साथ ही जनरेटर सेट और बैटरियां भी रखी जा सकती हैं। चूंकि भारी सेट को अकेले संभालना कठिन है, मेरे पति सुखलाल मेरे साथ आते हैं और हम मिलकर यह काम करते हैं," फूलवंती ने बताया।
वर्तमान खरीफ सीजन में, फूलवंती और उनके पति बहुत व्यस्त हैं क्योंकि उनके फोन पर ड्रोन सेवाओं के लिए लगातार कॉल आ रहे हैं। इस जोड़े के दो छोटे बच्चे हैं, एक 6 साल की बेटी और 3.5 साल का बेटा। फूलवंती कहती हैं, "मैं अपने परिवार के लिए खाना बनाती हूं, हमारी बेटी स्कूल जाती है। हम सुबह करीब 8-9 बजे घर से निकलते हैं और खाने का टिफ़िन पैक करते हैं। हम काम के बीच में थोड़ा टाइम भोजन के लिए निकाल लेते हैं, शाम 7 बजे के आसपास घर लौटते हैं। कभी-कभी हम बेटे को अपने साथ ले जाते हैं, जबकि वह सामान्यत: दादा-दादी के पास घर पर रहता है।"
फूलवंती कहती हैं उनके पति सुखलाल बहुत सहयोगी हैं। हिंदी साहित्य में पोस्ट ग्रेजुएट सुखलाल अपनी पत्नी को प्रोत्साहित करते हैं और ड्रोन उड़ाने की तकनीक सीखने में उनकी प्रेरणा बने हैं।
सुखलाल कहते हैं, "हमें बताया गया कि ड्रोन की कीमत लगभग 5-6 लाख रुपये है। शुरुआत में फूलवंती महंगे उपकरण को संभालने में डर रही थीं, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने आत्मविश्वास हासिल कर लिया।" हंसते हुए फूलवंती कहती हैं, "अरे आसमान में उड़ती चीजों का क्या भरोसा- हवा में उड़ने वाली मशीन पर कैसे विश्वास करें?"
दम्पत्ति कहते हैं कि बारिश के दौरान उन्हें बहुत सावधान रहना पड़ता है, क्योंकि ड्रोन में रडार होते हैं जो बारिश के संपर्क में आने पर नियंत्रण से बाहर जा सकते हैं। इसलिए जब बारिश होती है, हम काम नहीं करते। अन्य सावधानियों के बारे में बताते हुए फूलवंती कहती हैं कि वह ड्रोन को फसलों की ऊँचाई से डेढ़ मीटर ऊपर ले जाती हैं। "हमारे क्षेत्र में, मक्का वह फसल है जो भुट्टे लगने के बाद सबसे अधिक ऊँचाई तक बढ़ती है। यह 2 मीटर से अधिक ऊँचा हो जाता है और हमें ड्रोन को फसल से 1.5 मीटर ऊपर ले जाना पड़ता है।" ड्रोन तकनीक को लेकर गांवों में बहुत उत्साह है और इसलिए जब किसी सुदूर ग्रामीण इलाके में जाते हैं, लोगों का हुजूम उमड़ता है.
15-20 मिनट लगातार काम करने पर ड्रोन की बैटरी खत्म हो जाती है, ऐसे में दूसरा सेट लगाना पड़ता है. सुखलाल बताते हैं ड्रोन के साथ 4 सेट बैटरी शामिल है जिसमे दो-दो बटरी साथ लगती है. कम्पनी द्वारा दिए ईवी ( इलेक्ट्रिक तिपहिया ) वाहन में वे प्रतिदिन यात्रा करते हैं जिसकी रेंज 60 से 80 के बीच रहती है. फूलवंती कहती हैं " अभी कल ही मेसेज प्राप्त हुआ है कि किसी इमरजेंसी में अगर वाहन का चार्ज ख़त्म हो जाए तो वाहन में रखे जेनेरेटर से भी रिचार्ज किया जा सकता है" . फिलहाल वाहन सुखलाल ही चलाते हैं लेकिन फूलवंती भी अब धीरे धीरे ड्राइविंग सीख रही है और कहती है कि आने वाले समय में वह स्वयं वाहन चलाकर कॉल्स पर जाने का प्रयास करेगी ताकि सुखलाल अपनी खेती बाड़ी के काम को पर्याप्त समय दे सकें.
ड्रोन के फायदे बताते हुए फूलवंती कहती हैं कि ड्रोन कीट, खरपतवार और रोग नियंत्रण उत्पादों की सटीक मात्रा में इस प्रकार छिड़काव कर सकते हैं कि फसलों को उनकी सही खुराक मिलती है. उनके प्रयोग के दौरान किसानों के साथ होने वाले जोखिम कम होते हैं और उत्पादों की कुल प्रभावशीलता बढ़ती है, जिससे किसानों को अच्छी उपज प्राप्त होती है।
ड्रोन कीटनाशकों और उर्वरकों के छिड़काव जैसे कृषि कार्यों में लगने वाली इंसानी मेहनत को काफी हद तक कम कर सकते हैं, साथ ही वे प्रतिदिन फसलों के बड़े क्षेत्र के लिए उपयोग किए जा सकते हैं. हाथों से किये जाने वाले कार्य की तुलना में ड्रोन से काम करने पर पानी और दवाई की मात्रा बहुत कम लगती है. सुखलाल बताते हैं कि पहले एक बड़े खेत में कीटनाशक या उर्वरक का छिडकाव करने में पूरा पूरा दिन लग जाता था लेकिन अब वाही काम एक-दो घंटे में हो जाता है.
फूलवंती कहती हैं कि जुलाई और अगस्त खरीफ के मुख्य महीने होते हैं, जबकि दिसंबर और जनवरी रबी के सीजन के महीने होते हैं जब ड्रोन सेवा की सेवा की मांग होगी। चूंकि प्रतापगढ़ में ज्यादा सब्जी की फसल नहीं होती, इसलिए दम्पत्ति का कहना है कि बाकी 8 महीनों में काम नहीं मिलेगा। "अगर आसपास के जिलों से, जहां साल भर सब्जियों की फसल होती है, सेवाओं की मांग होगी, तभी हम जा सकते हैं।" वर्तमान में रोजाना 3 से 5 कॉल के साथ, फूलवंती 1000 रुपये तक कमा पाती है, जिससे महीने में कमाई 30 हजार रुपये तक हो सकती है।
किसानों को अपने खेतों में कीटनाशकों एवं उर्वरक खाद का छिड़काव करने के लिए पहले गूगल प्ले स्टोर से “ इफको किसान उदय ” नाम से मोबाइल एप डाउनलोड करना है। इस एप के तहत संबंधित किसानों को उनके क्षेत्र के पास उपलब्धता के अनुसार, नैनो उर्वरक एवम अन्य अनुसंशित दवाइया छिड़काव के लिए ड्रोन उपलब्ध कराया जाएगा।
इस मोबाइल एप के माध्यम से नैनो उर्वरकों के छिड़काव के लिए ड्रोन का उपयोग कर किसान समय, श्रम, पानी और खेती लागत में कमी कर फसल उत्पादन और अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं।
किसान सीधे उद्यमियों से संपर्क कर छिड़काव करा सकते हैं . ड्रोन से इफको द्वारा उत्पादित नैनो युरिया, नैनो डीएपी, तरल सागरिका एवं अन्य अनुसंशित दवाईयों का छिड़काव किसानों के खेतों में सस्ती दरों पर एंव कम समयावधि में किया जा रहा है. ड्रोन की क्षमता 10 लीटर है , लगभग एक एकड़ (२ से ढाई बीघा) के लिए पर्याप्त है। छिड़काव करने का अधिकतम समय 10 से 15 मिनिट है। प्रति एकड़ ( 2 से 2.5 बीघा) लागत 300 रुपए (150रुपए प्रति बीघा) है l
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