विश्व पुस्तक मेला-2024 में आई दलित-आदिवासी साहित्य की ये नई किताबें, पाठकों को खूब पसंद आई भीमराव अंबेडकर की जीवनी

इस बार विश्व पुस्तक मेला में राजकमल प्रकाशन समूह से प्रकाशित दलित और आदिवासी साहित्य की अनेक नई किताबों का लोकार्पण हुआ। इनमें ओमप्रकाश वाल्मीकि और कुमार विकल की ‘सम्पूर्ण कविताएँ’; ओमप्रकाश वाल्मीकि ‘प्रतिनिधि कविताएँ’; जसिंता केरकेट्टा का कविता संग्रह ‘प्रेम में पेड़ होना’; चंचल चौहान की किताब ‘दलित साहित्य का सौंदर्यशास्त्र, मोहनदास नैमिशराय की किताब ‘क्रान्तिपुरुष ज्योतिराव फुले’ किताबें शामिल हैं।
पाठकों को खूब पसंद आई क्रिस्तोफ ज़ाफ्रलो की लिखी भीमराव अंबेडकर की जीवनी और ओमप्रकाश वाल्मीकि की आत्मकथा ‘जूठन.
पाठकों को खूब पसंद आई क्रिस्तोफ ज़ाफ्रलो की लिखी भीमराव अंबेडकर की जीवनी और ओमप्रकाश वाल्मीकि की आत्मकथा ‘जूठन.
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नई दिल्ली। देश की राजधानी दिल्ली में आयोजित विश्व पुस्तक मेला-2024 का समापन रविवार को हुआ। नौ दिनों तक चले इस मेले के दौरान लाखों की संख्या में पुस्तकप्रेमियों ने हिस्सा लिया। इतनी भारी संख्या में पाठकों का आना यह दिखाता है कि किताबों को लेकर लोगों की दीवानगी किस तरह से बढ़ रही है। प्रकाशकों का कहना है कि इस बार पिछले विश्व पुस्तक मेला के मुकाबले ज्यादा किताबों की बिक्री हुई है।

राजकमल प्रकाशन के कार्यकारी निदेशक आमोद महेश्वरी का कहना है कि इस बार विश्व पुस्तक मेला में पिछली बार की तुलना में किताबों की बिक्री बढ़ी है। हिन्दी के पाठक नई रुचियों के साथ किताबों की खरीदारी कर रहे हैं। इस बार स्त्री-विमर्श, दलित-आदिवासी साहित्य, लोकतंत्र, मीडिया, जाति और समाज विज्ञान की कथेतर किताबों की मांग ज्यादा देखी गई है। वहीं कथा-साहित्य में भी पाठकों की ओर से इसी तरह के विमर्शों पर आधारित किताबें ज्यादा पसन्द की गई हैं। साथ ही युवाओं में नए लेखकों की किताबों को लेकर भी ज्यादा उत्साह देखा गया है।

पाठकों को खूब पसन्द आई दलित-आदिवासी साहित्य की ये किताबें

विश्व पुस्तक मेला के आखिरी दिन राजकमल प्रकाशन समूह की ओर से जारी एक प्रेस नोट के मुताबिक, दलित और आदिवासी साहित्य में क्रिस्तोफ ज़ाफ्रलो की लिखी भीमराव अंबेडकर की जीवनी; ओमप्रकाश वाल्मीकि की आत्मकथा ‘जूठन’ ; तुलसीराम की आत्मकथा ‘मुर्दहिया’ और ‘मणिकर्णिका’; पेरियार ई. वी. रामासामी की किताबें ‘जाति व्यवस्था और पितृसत्ता’ और ‘सच्ची रामायण’; जसिंता केरकेट्टा का नया कविता संग्रह ‘प्रेम में पेड़ होना’; मोहनदास नैमिशराय की ‘दलित आंदोलन का इतिहास’, प्रमोद रंजन द्वारा संपादित ‘बहुजन साहित्य की सैद्धान्तिकी’ मराठी से अनूदित दया पवार का उपन्यास ‘अछूत’; विहाग वैभव का कविता संग्रह ‘मोर्चे पर विदागीत’; अनुज लुगुन का कविता संग्रह ‘अघोषित उलगुलान’; कैलाश वानखेड़े की किताब ‘सुलगन’ आदि किताबें पाठकों द्वारा खूब पसन्द की गई है।

विश्व पुस्तक मेला में आई इन लेखकों की नई किताबें

इस बार विश्व पुस्तक मेला में राजकमल प्रकाशन समूह से प्रकाशित दलित और आदिवासी साहित्य की अनेक नई किताबों का लोकार्पण हुआ। इनमें ओमप्रकाश वाल्मीकि और कुमार विकल की ‘सम्पूर्ण कविताएँ’; ओमप्रकाश वाल्मीकि ‘प्रतिनिधि कविताएँ’; जसिंता केरकेट्टा का कविता संग्रह ‘प्रेम में पेड़ होना’; चंचल चौहान की किताब ‘दलित साहित्य का सौंदर्यशास्त्र, मोहनदास नैमिशराय की किताब ‘क्रान्तिपुरुष ज्योतिराव फुले’ किताबें शामिल हैं।

दलित-आदिवासी साहित्य पर राजकमल दे रहा विशेष ध्यान

महेश्वरी ने बताया कि राजकमल प्रकाशन शुरुआत से ही हर वर्ग के विमर्श से संबंधित साहित्य का प्रमुखता से प्रकाशन करता रहा है। वहीं हाल के वर्षों में यह कार्य और भी तेज हुआ है। पूर्व में कई जाने-माने दलित और आदिवासी साहित्यकारों की किताबें राजकमल प्रकाशन समूह से प्रकाशित हो चुकी है। समूह की ओर से युवा साहित्यकारों की रचनाओं को भी प्रमुखता से प्रकाशित किया जा रहा है। हाल ही में अनुज लुगुन, जोराम यालाम नाबाम, पार्वती तिर्की, विहाग वैभव, राही डूमरचीर जैसे अनेक युवा दलित-आदिवासी लेखक समूह से जुड़े हैं।

भारतीय भाषाओं के श्रेष्ठ साहित्य का हो रहा अनुवाद

प्रकाशन की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक, राजकमल भारतीय और भारतीयेतर भाषाओं के श्रेष्ठ साहित्य के हिन्दी में अनुवाद प्राथमिकता से प्रकाशित कर रहा है। अलग-अलग भारतीय भाषाओं से अनूदित साहित्य में दलित-आदिवासी साहित्यकारों की किताबें भी बड़ी संख्या में है। इनमें भालचंद्र नेमाड़े, लक्ष्मण गायकवाड़, शरणकुमार लिम्बाले, कैलाश वानखेड़े जैसे जाने-माने लेखकों की किताबें भी शामिल हैं।

पाठकों को खूब पसंद आई क्रिस्तोफ ज़ाफ्रलो की लिखी भीमराव अंबेडकर की जीवनी और ओमप्रकाश वाल्मीकि की आत्मकथा ‘जूठन.
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