झारखंड। आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर यूसीसी (यूनिफॉर्म सिविल कोड) से पहले आदिवासियों के लिए एसआरसी ( सरना धर्म कोड) को मान्यता देने की मांग की है।
पूर्व सांसद मुर्मू ने कहा कि आदिवासी सेंगेल अभियान यूनिफॉर्म सिविल कोड के मामले पर न विरोध करता है, न समर्थन। चूँकि अब तक इसका कोई ठोस मसौदा सामने नहीं आया है। हम लोग समय पर आदिवासी हितों में अपना मंतव्य प्रस्तुत करेंगे। मगर हम भारतीय संविधान के साथ खड़े रहेंगे।
सालखन मुर्मू ने पत्र में लिखा कि आदिवासी सेंगेल अभियान भारत के सात प्रदेशों (झारखंड बंगाल बिहार उड़ीसा असम त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश) के लगभग 400 आदिवासी बहुल प्रखंडों में कार्यरत है। भारत के संविधान में आस्था और विश्वास रखता है। भारत के संवैधानिक और जनतांत्रिक व्यवस्था के तहत आदिवासियों के सामाजिक, धार्मिक (सरना धर्म), आर्थिक और राजनीतिक सशक्तिकरण के कार्य में संघर्षशील है।
"यूनिफॉर्म सिविल कोड पर आदिवासी का पक्ष रखने के पूर्व हम लेवल प्लेयिंग फील्ड की मांग करते हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत जब बाकी सब को धार्मिक मान्यता प्रदान की गई है तो हम भारत के प्रकृति पूजक आदिवासियों को सरना धर्म (प्रकृति धर्म) कोड अब तक क्यों नहीं दी गई है?"।
उन्होंने आगे कहा कि, "यह हमारे ऊपर धार्मिक गुलामी की जंजीर की तरह है चूँकि हम हिंदू, मुसलमान, ईसाई आदि नहीं हैं। हमारे बीच वर्ण व्यवस्था, स्वर्ग-नरक, पुनर्जन्म आदि की परिकल्पना नहीं है। हम आदिवासी व्यक्ति केंद्रित ईश्वर को नहीं मानते हैं। प्रकृति ही जीवन दाता है, पालनहार है,तो प्रकृति ही हमारा ईश्वर है। हमें हमारी धार्मिक आजादी (मौलिक अधिकार) नहीं देना हमें दूसरे धर्मों की ओर जबरन धर्मांतरण करने को विवश कर अन्याय, अत्याचार और शोषण के आग में झोंकना है। अतएव यूनिफाइड सिविल कोड पर आदिवासियों का संवैधानिक मंतव्य स्थिर करने के पूर्व 2023 में हर हाल में हमें सरना धर्म कोड प्रदान किया जाए।"
पत्र में सेंगेल अभियान के प्रणेता ने बताया कि 2011 की जनगणना में भारत के प्रकृति पूजक आदिवासियों ने लगभग 50 लाख की संख्या में सरना धर्म दर्ज किया और जैन धर्म वालों ने लगभग 44 लाख दर्ज किया है। तो हमारे साथ अब तक नाइंसाफी क्यों ? हम हिंदू नहीं हैं। यदि हैं तो किस वर्ण में हैं? कानूनी रूप से भी हिंदू नहीं हैं। जिसका प्रमाण हिंदू मैरिज एक्ट 1955 और हिंदू सकसेशन एक्ट 1956 में परिलक्षित है। जहां आदिवासी शामिल नहीं हैं।
मगर जिस प्रकार हिंदू के साथ सिख, जैन, बौद्ध आदि समन्वय बनाकर चल रहे हैं तो सरना की मान्यता होने से हम भी हिंदू के साथ समन्वय बनाकर चलने पर विचार कर सकते हैं। हमें विदेशी धर्म और विदेशी भाषा- संस्कृति से अपनी अस्तित्व, पहचान, हिस्सेदारी का खतरा दिखता है। हम अपनी जड़ों से कट जाते हैं।
पत्र में आग्रह किया गया कि चूंकि राष्ट्रपति संविधान के संरक्षक हैं और स्वयं भी आदिवासी समुदाय से आती हैं अत: यूनिफॉर्म सिविल कोड संबंधी किसी भी निर्णय के पूर्व सरना धर्म कोड की मान्यता के लिए प्रयास करें। पत्र की प्रतिलिपियां लॉ कमीशन एवं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को भी भेजी गई है।
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.