भगवाकरण की कोशिश पर भारतीय ट्राइबल पार्टी व आदिवासी संगठन हुए सक्रिय। भील प्रदेश संदेश यात्रा में उमड़ा जनसैलाब, राजस्थान, मध्यप्रदेश व गुजरात के 43 आदिवासी बाहुल्य जिलों को मिलाकर नए भील प्रदेश के गठन की मांग।
जयपुर। आदिवासियों के जलियाँवाला बाग के नाम से ख्यात मानगढ़ धाम (Mangarh Dham) पर भगवा ध्वज फहराने की घटना के बाद राजस्थान के सुदूरतम जिले बांसवाड़ा में तनावपूर्ण शांति का माहौल है। बांसवाड़ा जिला मुख्यालय से करीब 37 किलोमीटर दूर आनंदपुर स्थित मानगढ़ धाम आदिवासियों की धार्मिक आस्था का बड़ा केन्द्र है। आरएसएस व बीजेपी के अनुषांगिक संगठन भारतीय जनजाति मोर्चा ने गत 3 जुलाई 2022 को मानगढ़ धाम पर एक कार्यक्रम आयोजित किया। आरोप है कि, इस दौरान शहीदों की धुणी के पास भगवा झण्डा फहराया गया। इसकी सूचना क्षेत्र में फैलने के बाद भारतीय ट्राइबल पार्टी के सदस्यों ने 5 जुलाई 2022 को मानगढ़ धाम पर आदिवासियों का धार्मिक ध्वज फहराया। लेकिन मामला यहां ही नहीं थमा।
स्थान के स्वामित्व, संस्कृति एवं आदिवासी धर्म के संरक्षण तथा चार राज्य एवं 43 जिलों के हिस्सों का संयुक्त एकीकरण कर भील प्रदेश गठन करने की मांग को लेकर मानगढ़ धाम पर गत रविवार शाम को आदिवासियों का एक बड़ा जमावड़ा हुआ। भील प्रदेश संदेश यात्रा के आह्वान पर जनसैलाब उमड़ पड़ा। पुलिस को भीड़ को संभालने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ी। यात्रा में चार राज्यों के 43 जिलों से बड़ी संख्या में समाज के लोग वाहन रैली के रूप में पहुंचे। इस दौरान आनंद पुर के सभी मुख्य मार्ग पर पूरे दिन पांच से सात किलोमीटर दूरी तक वाहनों की कतार बनी रही।
चार राज्यों के आदिवासी हुए एकत्र
शहीद भूमि मानगढ़ धाम पर आदिवासी परिवार एवं भील प्रदेश मुक्ति मोर्चा के तत्वावधान में हुए कार्यक्रम में गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र के बड़ी संख्या में समाज के लोग पहुंचे। आनंद पुर से लगाकर करीब मानगढ़ धाम पर सात किमी की तक वाहनों का जमावड़ा रहा। वाहनों के कारवां को देखते हुए पुलिस ने धाम के चार किलोमीटर पहले ही रूकवा दिया है।
शहीदों को दी श्रद्धांजलि
मनगढ़ धाम पर शहीदों को श्रद्धांजलि देने के साथ गुरु गोविंद को नमन किया। कार्यक्रम के दौरान सीता आदिवासी सवाईमाधोपुर ने आदिवासी समाज के लिए अलग राज्य की मांग रखी। कांति भाई आदिवासी ने कहा कि, "समाज को संगठित करके रखना है। इस भूमि पर कई आदिवासी शहीद हुए हैं।" उन्होंने आरएसएस पर आरोप लगाया कि, वह षडयंत्र पूर्वक पूजा एवं ऐतिहासिक स्थलों को छीनना चाहता है। भंवरलाल परमार ने कहा कि, मानगढ़ धाम पर आदिवासी समाज के पूर्वज शहीद हुए थे। इस पर किसी भी प्रकार धार्मिक, राजनीतिक या संस्थान का झण्डा नहीं लगने दिया जाएगा।
आदिवासी पहचान को बचाने का आह्वान
डॉ. हीरा मीणा ने शिक्षा, साहित्य एवं संस्कृति को बचाने का आह्वान किया। हल्दीघाटी से लाई मिट्टी में आदिवासी ने रेजा (एक विशेष पौधा) रोपण कर शहीदों को याद किया गया।
आस्था स्थल पर नहीं होगी राजनीति
द मूकनायक से भारतीय ट्रायबल पार्टी के उपाध्यक्ष बीएल छानवाल ने बताया कि, "मानगढ़ धाम आदिवासी अस्मिता, मान व बलिदान का प्रतीक है। इसका किसी भी हालत में भगवाकरण होने नहीं दिया जाएगा। यह आदिवासी आस्था का केन्द्र है। इसके स्वरूप से छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं की जाएगी।"
स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार दीपक श्रीमाल ने बताया कि, "मानगढ़ धाम आदिवासी आस्था व विश्वास का बड़ा केन्द्र है। आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण अक्सर राजनैतिक पार्टियां व अन्य संगठन अपने अभियानों कार्यक्रमों की शुरूआत यहां से करते हैं। गत दिनों बीजेपी के एक संगठन ने यहां पर कार्यक्रम किया था, जिसके बाद विवाद हो गया। हालांकि अब क्षेत्र में शांति है।"
क्यों है मानगढ़ आदिवासियों का जलियाँवाला बाग!
17 नवम्बर 1913 को मानगढ़ में भील आदिवासी समुदाय के हजारों लोगों को अंग्रेज सरकार ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसे ही मानगढ़ नरसंहार कहते हैं। स्थानीय लोग इस घटना को जलियावाला बाग हत्याकांड के समरूप बताते हैं। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अमृतसर के जलियांवाला बाग कांड की खूब चर्चा होती है पर मानगढ़ नरसंहार को संभवतः इसलिए भुला दिया गया, क्योंकि इसमें बलिदान होने वाले लोग निर्धन वनवासी थे।
मानगढ़, राजस्थान में बांसवाड़ा जिले का एक पहाड़ी क्षेत्र है। यहां मध्यप्रदेश और गुजरात की सीमाएं भी लगती हैं। यह सारा क्षेत्र वनवासी बहुल है। मुख्यतः यहां भील आदिवासी रहते हैं। स्थानीय सामन्त, रजवाड़े तथा अंग्रेज इनकी अशिक्षा, सरलता तथा गरीबी का लाभ उठाकर इनका शोषण करते थे। इनमें फैली कुरीतियों तथा अंध परम्पराओं को मिटाने के लिए गोविन्द गुरु के नेतृत्व में एक बड़ा सामाजिक एवं आध्यात्मिक आंदोलन हुआ जिसे 'भगत आन्दोलन' कहते हैं।
गोविन्द गुरु का जन्म 20 दिसम्बरए 1858 को डूंगरपुर जिले के बांसिया बेड़िया गांव में हुआ। गोविंद गुरु ने भगत आंदोलन 1890 के दशक में शुरू किया था। आंदोलन में अग्नि को प्रतीक माना गया था। अनुयायियों को अग्नि के समक्ष खड़े होकर धूनी करना होता था। 1883 में उन्होने सम्प सभा की स्थापना की। इसके द्वारा उन्होंने शराब, मांस, चोरी व व्यभिचार आदि से दूर रहने, परिश्रम कर सादा जीवन जीने की सीख दी। इसके साथ ही अंग्रेजों के पिट्ठू जागीरदारों को लगान नहीं देने, बेगार नहीं करने तथा विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर स्वदेशी का प्रयोग करने जैसे सूत्रों का गांव-गांव में प्रचार किया।
कुछ ही समय में लाखों लोग उनके भक्त बन गए। प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष पूर्णिमा को सभा का वार्षिक मेला होता था, जिसमें लोग हवन करते हुए घी एवं नारियल की आहुति देते थे। लोग हाथ में घी के बर्तन तथा कन्धे पर अपने परम्परागत शस्त्र लेकर आते थे। मेले में सामाजिक तथा राजनीतिक समस्याओं की चर्चा भी होती थी। इससे वागड़ का यह वनवासी क्षेत्र धीरे-धीरे ब्रिटिश सरकार तथा स्थानीय सामन्तों के विरोध की आग में सुलगने लगा।
17 नवम्बर 1913 मार्गशीर्ष पूर्णिमा को मानगढ़ की पहाड़ी पर वार्षिक मेला होने वाला था। इससे पूर्व गोविन्द गुरु ने शासन को पत्र द्वारा अकाल से पीडि़त वनवासियों से खेती पर लिया जा रहा कर घटाने, धार्मिक परम्पराओं का पालन करने देने तथा बेगार के नाम पर उन्हें परेशान नहीं करने का आग्रह किया गया। लेकिन, प्रशासन ने पहाड़ी को घेरकर मशीनगन और तोपें लगा दीं। इसके बाद उन्होंने गोविन्द गुरु को तुरन्त मानगढ़ पहाड़ी छोड़ने का आदेश दिया। उस समय तक वहां लाखों भगत आ चुके थे। पुलिस ने कर्नल शटन के नेतृत्व में गोलीवर्षा प्रारम्भ कर दी, जिससे हजारों लोग मारे गये। इनकी संख्या 1500 तक बताई गयी है।
पुलिस ने गोविन्द गुरु को गिरफ्तार कर पहले फांसी और फिर आजीवन कारावास की सजा दी। 1923 में जेल से मुक्त होकर वे भील सेवा सदन, झालोद के माध्यम से लोक सेवा के विभिन्न कार्य करते रहे। 30 अक्टूबर 1931 को ग्राम कम्बोई गुजरात में उनका देहान्त हुआ। प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष पूर्णिमा को वहां बनी उनकी समाधि पर आकर लाखों लोग उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.