कुशलगढ, बांसवाड़ा: इसे जागरूकता की कमी कहिए या आदिवासी समुदाय का भोलापन, जनजाति बाहुल एरिया में निर्माण के नाम पर ग्रामीणों को ठगा जा रहा है। सड़क-पुलिया-एनीकट आदि निर्माण के लिए लाखों रुपयों का बजट पास होता है लेकिन जन प्रतिनिधि सरकारी कोष से अपनी जेबें भर रहे हैं । बांसवाड़ा जिले के कुशलगढ विधानसभा क्षेत्र में गराड खोड़ा , जमराई सहित दर्जनों आसपास के आदिवासी बाहुल गांवों में बाशिन्दे सड़क-पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। कुशलगढ गुजरात और मध्य प्रदेश की सीमाओं से सटा इलाका है लेकिन आवागमन के नाम पर सीमित बसें ही चलती हैं और अंदरूनी गांवों में आने जाने का एकमात्र जरिया मोटरसाइकिल हैं जिसमें लोग संचार करते हैं।
राजस्थान विधानसभा चुनाव के मद्देजनर ग्रामीण इलाकों में विकास कार्यों का आंखों देखा हाल जानने द मूकनायक की टीम बांसवाड़ा जिले के कुशलगढ ब्लॉक में भीमपुरा ग्राम पंचायत पहुंची। यहां सोडलिया गांव में सड़क का नामों निशान नहीं है। एक जगह द मूकनायक टीम ने रूककर कुछ ग्रामीणों से बात की तो अहसास हुआ कि सरकारी कार्यों में उदासीनता और भ्रष्टाचार शहरों तक ही सीमित नहीं है, गावों में हालात और ज्यादा खराब है क्योंकि गांव वालों की शिकायतों की कहीं सुनवाई भी नहीं होती है।
द मूकनायक को सोडलिया में ग्रामीणों द्वारा बताया गया कि एक जगह मुख्य सड़क से बामुश्किल 200 मीटर तक अंदर जाने के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के अंतर्गत सड़क और पुलिया का प्रस्ताव स्वीकृत कर 10.11 लाख रुपये का बजट दिया गया। यह सड़क ग्रामीण कलाजी तेरहिंग के घर तक के लिए बनी गई। तेरहिंग ने द मूकनायक को बताया कि केवल 7 ट्रेक्टर मिट्टी डाली गई , कोई ग्रेवल काम नही हुआ और कच्ची मिट्टी वाली इस सड़क का काम पूरा बताते हुए पत्थर लगा दिया गया। उन्होंने बताया कि कुछ मिट्टी भी पास के खेत से लेकर सड़क पर डाली गई और वास्तव में पूरा खर्चा मुश्किल से 10 हजार रुपये का किया गया। यहां की एक महिला सुंदर बाई ने बताया कि उच्चाधिकारियों को भी इसकी शिकायत की गई लेकिन शिकायत की सुनवाई करने के बजाय उल्टा ग्रामीणों को हड़का के भगा दिया जाता है। " वो हमें पूछते हैं, तुम सिखाओगे हमको सड़क कैसे होती है। ऐसा ही होता है काम" सुंदर बाई ने द मूकनायक को बताया।
यहां एक युवा रमेशचंद्र ने बताया कि कागजों में भले ही सभी घरों में शौचालय होना बताया गया हो लेकिन आज भी अधिकांश घरों में टॉयलेट नहीं है। गांव वाले खुले में, नालियों- खेतों आदि में शौच करने जाते हैं। महिलाएं और लड़कियां रात को अंधेरे में शौच करने जाती हैं ।
इस पंचायत में कई घरों में बिजली भी नहीं है। ऐसे कुछ घरों में पंचायत की ओर से सोलर पैनल लगवाए गए हैं जिससे रोशनी हो पाती है। ग्रामीण बताते हैं कि यहां दो एनीकट गलत तरीके से बना दिये गए हैं जिसके कारण पानी खेतों में भर जाता है। किसान इस वजह से साल में दो की बजाय एक ही फसल ले पाते हैं। कुछ फलों में पानी का इतना संकट है कि सिंचाई तो क्या पीने के पानी के भी लाले पड़ते हैं। पंचायत से कुआं गहरा करवाने के लिए अंशदान मिलता है लेकिन गरीबी इतनी है कि ग्रामीण अपनी जेब से बाकी पैसा जुटाने में भी असमर्थ होते हैं। सोशल एक्टिस्ट और प्रतिध्वनि संस्थान की फाउंडर डॉ निधि सेठ बताती हैं कि गांवों में विकास कार्यों का ब्यौरा लेने के लिए अधिकारियों से बात करो तो वे जानकारी तक नहीं देते हैं। हालत यह है कि संस्थान की मदद से यहां कुछ कुए गहरे करवाये जा सके और पीछे पड़कर सड़क बनवाया गया।
द मूकनायक ने सड़क निर्माण में भ्रष्टाचार के आरोप व शिकायत को लेकर जब कुशलगढ़ विधायक रमिला खड़िया से संपर्क किया तो उन्होंने जवाब दिया " अगले कार्यकाल में हो जाएगा आपका काम । अभी आप सभी को वोट डलवाएं"।
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