राजस्थान: आदिवासी समुदाय के लोक नाट्य 'गवरी' को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने की कवायद

UNESCO की सूची में शामिल करने की पहल: पर्यटन उप निदेशक ने उदयपुर कलेक्टर को लिखा पत्र
लोक नाट्य 'गवरी' मेवाड़ में भील समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला एक नृत्य उत्सव है।
लोक नाट्य 'गवरी' मेवाड़ में भील समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला एक नृत्य उत्सव है।
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उदयपुर- मेवाड़ की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर "गवरी" को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने के प्रयास शुरू हो गए हैं। उदयपुर के पर्यटन उप निदेशक ने कलेक्टर को पत्र लिखकर गवरी लोक नाट्य को UNESCO की Intangible Cultural Heritage की Performing Arts/ Festive Events श्रेणी में शामिल करने का प्रस्ताव रखा है। ये लोक नृत्य 800 वर्ष से भी ज्यादा पुरानी मानी जाती है जिसमे प्रकृति संरक्षण और नारी सम्मान का संदेश निहित है.

गवरी राजस्थान के मेवाड़ अंचल का एक पारंपरिक लोक नृत्य-नाट्य है, जिसे भील-गमेती आदिवासी समुदाय सदियों से अनुष्ठान की तरह आयोजित करता आ रहा है। यह नाट्य विधा राखी के पर्व के बाद शुरू होती है और सवा महीने तक चलती है। गवरी का आयोजन मुख्य रूप से उदयपुर और राजसमंद जिलों में होता है, जहां इस कला का उद्भव माना जाता है और जहां भील जनजाति की बड़ी आबादी है।

गवरी का मंचन करने वाले कलाकार इस अवधि के दौरान अपने घर-परिवार से दूर रहते हैं। इन कलाकारों के लिए गवरी केवल नाट्य प्रदर्शन नहीं, बल्कि धर्म और कर्म है। गवरी के दृश्यों को 'खेल', 'भाव' या 'सांग' कहा जाता है, जिनमें नारी पात्रों की भूमिका भी पुरुष कलाकार ही निभाते हैं।

लोक नाट्य 'गवरी' मेवाड़ में भील समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला एक नृत्य उत्सव है।
आदिवासी सप्ताह विशेष: राजस्थान का लोक नाट्य गवरी; 800 वर्ष पुरानी लोक कला में प्रकृति संरक्षण और नारी सम्मान का संदेश

गवरी का महत्व और UNESCO में शामिल करने की पहल

गवरी का आयोजन भील समुदाय की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है। यह आयोजन न केवल कला का प्रदर्शन है, बल्कि आदिवासी युवाओं को उनकी समृद्ध पौराणिक और ऐतिहासिक धरोहर से जोड़ने का माध्यम भी है। गवरी के जरिए गांव-गांव में सामुदायिक एकजुटता और अंतर-सामुदायिक बंधनों को मजबूत किया जाता है।

पर्यटन उप निदेशक शिखा सक्सेना ने द मूकनायक को बताया कि "गवरी जैसे समृद्ध और अनूठे लोक नाट्य को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान दिलाना बेहद जरूरी है। यह न केवल हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संजोए रखने में मदद करेगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी अपनी जड़ों से जोड़ने का काम करेगा। यह वास्तव में एक लोक साधना है। गवरी में भाग लेने वाले साधक इसे धार्मिक अनुष्ठान की तरह निभाते हैं। UNESCO की Intangible Cultural Heritage सूची में इसे शामिल करने का प्रयास इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।"

गवरी की कोई लिखित स्क्रिप्ट नहीं होती, इसे केवल अनुभव और प्रशिक्षुता के जरिए ही सीखा जा सकता है। यही कारण है कि इसे जीवित रखने और अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान दिलाने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। इस दिशा में UNESCO की Intangible Cultural Heritage सूची में इसे शामिल करने का प्रस्ताव महत्वपूर्ण है, जो इस अनूठी कला को वैश्विक पहचान दिलाने में सहायक होगा।

उप निदेशक ने अपने पत्र में इस नाट्य विधा की विशिष्टता और इसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर ले जाने की आवश्यकता को रेखांकित किया है। अगर यह प्रस्ताव स्वीकृत होता है, तो गवरी को वैश्विक पहचान मिल सकेगी और यह कला अपने प्राचीन स्वरूप में आगे भी संरक्षित रह सकेगी।

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