मां-बाप थे इमारती मजदूर लेकिन बेटे को पढ़ाया और आज उसे मिली यूके में स्कॉलरशिप

स्कूल जाने के लिए करना पड़ता था नदी पार, कॉलेज की पढ़ाई के लिए पुणे के रेलवे स्टेशन पर भी सोना पड़ा हफ्तेभर
वैभव सोनोने
वैभव सोनोने
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महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव 'पेड़गाव' के वैभव सोनोने को वर्ष 2023 - 24 के लिए 'पर्यावरण और विकास' में एमएससी के लिए यूके सरकार (एफसीडीओ) और लीड्स विश्वविद्यालय द्वारा सबसे पुरानी राष्ट्रमंडल साझा छात्रवृत्ति में से एक प्रतिष्ठित छात्रवृत्ति के लिए चुना गया है। वैभव अनुसूचित जनजाति से आते हैं और उनके माता-पिता इमारत बनाने वाले मजदूर हैं , दोनों ही दसवीं पास हैं।

द मूकनायक से बात करते हुए वैभव सोनोने ने बताया कि "मेरे दो भाई बहन हैं। मैं अपने घर का सबसे बड़ा बेटा हूं। मेरा भाई बैचलर ऑफ सोशल वर्क की पढ़ाई कर रहा है। और बहन का सिलेक्शन हुआ है गांधी स्कॉलरशिप के लिए जो उड़ीसा में है। मेरे पूरे गांव में मेरी कम्युनिटी के केवल 150 परिवार रहते हैं। लेकिन उन 150 परिवार में सिर्फ हमारा ही परिवार शिक्षित है। बाकी परिवार के बच्चे दूसरे शहरों में जाकर के कहीं पर ठेला लगाते हैं या नारियल बेचते हैं या फिर वही इमारत बनाने का काम करते हैं।"

पढ़ाई के लिए किया संघर्ष

वैभव बताते हैं कि "हमारे माता-पिता नासिक में इमारती मजदूर के रूप में काम करते थे। वहां पापा का एक्सीडेंट हुआ था। इसके बाद हमें गांव वापस लौटना पड़ा। गांव वापस आने के बाद गांव के सरकारी स्कूल में जाना शुरू किया। वहां पर प्राइमरी की पढ़ाई पूरी। इसके बाद गांव से 4 किलोमीटर दूर एक स्कूल हुआ करता था। स्कूल जाने के लिए एक नदी पार करनी पड़ती थी। नदी पार करके जाना बहुत मुश्किल होता था। इसलिए मुझे पापा ने सातवीं कक्षा में हॉस्टल में रहकर पढ़ाई के लिए भेज दिया। जो मेरे घर से 50 किलोमीटर दूर था। वहां पर मैंने अपनी 12वीं की पढ़ाई पूरी की।" वैभव बताते हैं कि उन्हें किताबें पढ़ना बचपन से ही पसंद है क्योंकि उनके पापा हमेशा किताबें पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते थे। 

वैभव सोनोने अपने परिवार के साथ
वैभव सोनोने अपने परिवार के साथ

पापा ने दिया बहुत साथ

वैभव बताते हैं "मेरे पापा हमेशा यही बोलते थे कि पढ़ाई बहुत जरूरी है, और पढ़ाई ही हमारे काम आती है। एक बार की बात है जब मैंने पापा को कहा कि आने जाने में  बस से बहुत दिक्कत होती है। तो एक फोर व्हीलर ले लेते हैं। पापा ने मुझसे कहा कि एक कार खरीदने के लिए 7 से 8 लाख तक खर्च करोगे। इतने में हम अपने घर के सभी बच्चों को ऊंची तालीम दे सकते हैं। उन बच्चों की पढ़ाई से ही वह चार या पांच फोर व्हीलर आ जाएगी। अच्छी शिक्षा ही तुम्हें कामयाब बन सकती है। मैं अपने चचेरे भाई-बहन की पढ़ाई का खर्चा भी उठाता हूं। उसी के लिए पापा ने मुझे कार लेने से रोका।"

पिता थे अंबेडकर के विचारों पर चलने वाले

वैभव बताते हैं कि "मेरे पिता बाबा साहब को बहुत मानते थे। महाराष्ट्र के औरंगाबाद का एक विद्यापीठ है। उसको बाबा साहब का नाम देने के लिए 10 - 12 सालों तक बहुत बड़ा आंदोलन चला। मेरे पापा उस आंदोलन का भाग थे। हमारे घर में शुरू से ही बाबा साहब, सावित्री बाई फुले सभी हमारे साथ हमारे विचारों में रहा करते थे।"

महिलाओं के साथ बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की तस्वीर लिए वैभव सोनोने
महिलाओं के साथ बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की तस्वीर लिए वैभव सोनोने

वैभव कहते हैं, "12वीं के बाद मैंने बीएड करने की सोची। क्योंकि घर में उस समय एक नौकरी की बहुत जरूरत थी। परंतु मेरे एक प्रोफेसर थे, उन्होंने मुझे कहा कि वैभव तुम बहुत कुछ कर सकते हो। उसके बाद मैंने पुणे के लिए सोचा। पुणे जाने के किराये  के लिए घर में उस समय 2000 रुपए भी नहीं थे। फिर पापा ने अपने दोस्तों से पैसे मांगे, तब मैं पूणे पहुंचा। एक हफ्ता पुणे के रेलवे स्टेशन पर सो कर गुजारा। क्योंकि कोई पहचान का नहीं था। फिर भाग्य से कॉलेज में नंबर लग गया। फिर बाद में रिश्तेदार भी मिल गए। तो उनके साथ ही मैं रहने लगा। यहां आने के बाद बहुत कुछ समझ आने लगा। बहुत कुछ नया सीखने को मिला। 2013 से 2016 तक में पुणे में ही था। मैंने यहां अपनी डिग्री पूरी की । इसके बाद में आगे पढ़ा और किसी अच्छे कॉलेज में पीएचडी करना चाहता था। पर उस समय घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई थी। फिर पापा ने मुझे समझाया कि "हम एक रोटी कम खा लेंगे पर तुम अपनी पढ़ाई मन लगाकर करो। फिर मैं प्रोफेशनल कोर्से को चुना। डेवलपमेंट कोर्स किए। उस समय तक प्रैक्टिकल एक्सपीरियंस मुझमें आ गया था। मेलघाट महाराष्ट्र में मैंने काम किया। वहां दो-तीन महीने रुका भी।"

महिलाओं और पिछड़ों के लिए काम

वैभव बताते हैं कि "संविधान तो अधिकार देता है, पर वह वंचितों तक नहीं पहुंच पाता। मैं पीएचडी तो नहीं कर पाया पर मैंने डेवलपमेंट पर कोर्स किया। उसके बाद मुझे प्लेसमेंट लेना पड़ा। प्लेसमेंट मिला है जिसकी वजह से 'प्रधान' नाम के एनजीओ से जुड़ कर काम करने लगा। प्रधान राजस्थान से लेकर बंगाल तक इमारत बनाने वाले मजदूरों, दलित व वंचित वर्गों के लिए काम करता है। जब मैं मध्य प्रदेश के उस गांव में गया, तो वहां के कुछ लोगों ने मुझे किडनी चोर समझकर बहुत मारा । उस समय एक रैकेट चल रहा था जिसमें लोगों की हत्या कर उनकी किडनी चुराई जा रही थी।"

वैभव कहते हैं कि उस समय उन्होंने फैसला किया। "यहां इतनी गरीबी है, और पिछड़ापन है कि यहां के लोग किसी पर भरोसा नहीं करते। मैं तय किया कि यहीं रहकर इनके लिए कार्य करूंगा। मैंने वहां 5 साल तक काम किया। इसके बाद स्टडी के लिए मध्यप्रदेश के दमनपाली जाना था। परंतु लोगों ने इतना डर आया कि वहां मत जाओ काला पानी है।  मैं फिर भी वहां गया। वहां जाकर देखा कि यहां के लोग कुपोषित जैसे हैं। ज्यादातर लोगों में खून की कमी है यहां सिर्फ दाल चावल और मछली ही खाई जाती हैं। वहां रहते हुए मेरे ऊपर दो बार हमले हुए क्योंकि मैं महिलाओं और वंचितों के लिए काम कर रहा था। मेरे साथ औरतें और कुछ आदमी थे जिन्होंने मेरा साथ दिया। इसके बाद में काम कर ही रहा हूं।"

UK की 18 यूनिवर्सिटी से मिला ऑफर

वैभव बताते हैं कि "आगे की रिसर्च और वातावरण पर काम करने के लिए मैंने यूके की 18 यूनिवर्सिटी में अप्लाई किया था। सभी  यूनिवर्सिटीज से मुझे ऑफर मिला है।"

वैभव सोनोने और उनकी पत्नी
वैभव सोनोने और उनकी पत्नी

प्रेम विवाह ने बनाया मजबूत

वैभव बताते हैं कि "मैंने प्रेम विवाह किया है मेरी पत्नी एक ऊंची जाति से आती हैं तो उनके परिवार को थोड़ी परेशान थी। जिसको लेकर हमारे जीवन में परेशानियां भी आई। लेकिन मेरी पत्नी ने बहुत ही तरीके से सब कुछ संभाला। और हमारे लिए बाबासाहेब, सावित्रीबाई फुले यह हमारे प्रेरणादायक रहे हैं , उनके विचारों ने हम दोनों को बहुत मजबूत बनाया है। पिछले साल कोर्ट में हमने शादी की।"

वैभव बताते हैं कि "शादी के पहले काफी सारे लोगों ने मुझसे कहा कि आप इस लड़की को छोड़ दे। नहीं तो आप जीवन में कुछ नहीं कर पाएंगे। आज देखिए हम दोनों यूके जा रहे हैं। मेरी पत्नी भी यूके की यूनिवर्सिटी में अप्लाई किया था उनको आठ यूनिवर्सिटीज से ऑफर आया है। अगर आप मेहनत और लगन से काम करेंगे तो कामयाब जरूर होंगे।"

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