MP: आदिवासी बाहुल्य गांवों में भीषण पेयजल संकट, दूषित पानी पीने को मजबूर ग्रामीण!-ग्राउंड रिपोर्ट

ग्राम पंचायत स्तर पर पानी के टैंकर की व्यवस्था की जाती है। मगर इतना पानी ग्रामीणों के लिए पर्याप्त नहीं हैं। पन्ना और सीहोर जिले की तस्वीरों से यह जाहिर है कि ग्रामीण अपनी प्यास बुझाने के लिए झिरियों पर आश्रित हैं।
पन्ना में कीचड़ के पानी को छान कर पी रहे ग्रामीण।
पन्ना में कीचड़ के पानी को छान कर पी रहे ग्रामीण।फोटो: अंकित पचौरी, द मूकनायक
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भोपाल। मध्य प्रदेश में बढ़ती गर्मी और हीट वेव के अलर्ट के बीच पेयजल संकट गहरा गया है। भोपाल, बुंदेलखंड, ग्वालियर-चंबल और विंध्य के संभागों में बाहुल्य सैकड़ों गाँव के हैंडपंप सूख चुके हैं। लोग पेयजल के लिए प्राकृतिक जलस्रोतों पर आश्रित हो गए है। इनसे भी दूषित पानी इस्तेमाल के लिए मिल रहा है।

द मूकनायक से बातचीत करते हुए सीहोर जिले के आदिवासी बहुल गांव आंवलीखेड़ा की रहवासी सरोज ने कहा, "हम सुबह से ही झिरी (प्राकृतिक पानी का गड्ढा) पर पहुँच जाते हैं। रातभर झिरी में पानी एकत्र हो जाता है। सुबह यहां से पानी भर लेते हैं। गाँव में कई सालों से पीने के पानी की समस्या है। गांव के प्राइमरी स्कूल में एक हैंडपंप लगा था, जो पिछले एक साल से बन्द पड़ा है।"

आंवलीखेड़ा गाँव में लोग झिरी से दूषित पानी पीने को मजबूर है। इसका कारण मई के इस गर्मी भरे महीने में पेयजल का संकट पैदा हो जाना। ग्रामीणों के मुताबिक पीएचई विभाग को शिकायत की गई पर हैंडपंप ठीक नहीं हो पाया।

सीहोर में झिरी से पानी भर रहे ग्रामीण.
सीहोर में झिरी से पानी भर रहे ग्रामीण.

इधर, बुंदेलखंड के पन्ना ज़िले में भी पीने के पानी की किल्लत है। यहां मचली गाँव की महिलाएं तपती धूप में पानी भरने के लिए जंगल जा रहीं हैं।

द मूकनायक को अपनी समस्या बताते हुए रामबाई आदिवासी कहतीं हैं- "वर्षों बीत गए, लेकिन पानी की समस्या खत्म नहीं होती। हमें तपती धूप में गाँव से तीन किलोमीटर दूर जंगल में पैदल जाकर पत्थरों से बह रहे पानी को भरना पड़ता है। गाँव के हैंडपंप गर्मी के मौसम में पानी नहीं देते। दो साल पहले जंगल में पानी लेने गए एक व्यक्ति पर भालू ने हमला कर दिया था।"

पन्ना जिले से निकली केन नदी के सूखने के कारण इस समय यहां जल संकट गहरा गया है। नदी सूखने के कारण लोग किनारों पर गड्ढा खोदकर पानी निकाल रहे है। नदी की ऊपरी सतह पर सिर्फ कीचड़ है। गाँव के लोग नदी के पास गड्ढा खोदकर पानी निकाल रहे है। नदी का पानी बेहद गंदा है। इस मौसम में नदी के पानी में बहाव नहीं है, इसलिए पानी शुद्ध नहीं है। ग्रामीणों ने बताया कि पानी की समस्या के लिए पंचायत से लेकर जिले के अधिकारियों तक शिकायत कर चुके हैं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होती है।

गर्मी के कारण गांव में पसरा सन्नाटा.
गर्मी के कारण गांव में पसरा सन्नाटा.द मूकनायक

मुड़वारी गाँव के रहवासी महेश अहिरवार ने बताया कि दलित बस्तियों में पानी की समस्या बहुत ज्यादा है। महेश ने कहा -"नदी में पानी सूख चुका है, सिर्फ कीचड़ बचा है, गड्ढा खोदकर उसमें से छाना हुआ पानी ले रहे हैं।"

ग्रामीणों का आरोप है कि शासकीय हैंडपंपों की मरम्मत नहीं की जा रही है एवं जिन जगहों पर वाटर लेवल नीचे गया है, उन बोर का गहरीकरण भी नहीं हो रहा है। इस संबंध में हमने पन्ना कलेक्टर सुरेश कुमार से बातचीत के लिए फोन किया पर उनसे बात नहीं हो पाई।

मैहर और सतना से गुजरने वाली तमस नदी भी सूख चुकी है, यह नदी इन दोनों जिलों की लाइफलाइन है। नदी के सूखने के बाद ग्राउंड वाटर पर असर पड़ा है। इसके साथ ही तमस नदी के पानी से ही शहरी और कस्बों की नल जल योजना संचालित होती है, लेकिन नदी सूखने के बाद पिछले एक महीने से नलों में पानी नहीं आया। यहां नदी में कीचड़ जैसी स्थिति निर्मित हो चुकी है।

ट्यूबवेल से पानी आने का इंतजर करते ग्रामीण.
ट्यूबवेल से पानी आने का इंतजर करते ग्रामीण. द मूकनायक

मैहर जिले के शहरी क्षेत्र के समीप बसे नखतरा गाँव के केशव पटेल ने बताया कि उनका गाँव तेज गर्मी में पानी की समस्या से जूझ रहा है, पंचायत द्वारा दिन में एक टैंकर आ रहा है, लेकिन इतना पानी पर्याप्त नहीं है। गाँव में लोगों के पास पालतू पशु भी हैं, जिन्हें पानी चाहिए।

केशव ने कहा- "गाँव में तीन शासकीय हैंडपंप है, गर्मी के मौसम में दो हैंडपंप सूख चुके हैं। सिर्फ एक हैंडपंप में तीन घण्टे में 5 से 7 बाल्टी पानी आ रहा है। लोगों के निजी ट्यूबवेल भी सूखने की कगार पर हैं।"

शिवपुरी जिले के आदिवासी बहुल गाँव भैंसावन में सहरिया समाज के लोग भी पानी के संकट से जूझ रहे हैं। इस गाँव के शासकीय हैंडपंप सूख चुके हैं।

द मूकनायक से ज्ञानी आदिवासी बतातें हैं कि पीने के पानी के लिए हम लोग गाँव के निजी ट्यूबवेल पर आश्रित हैं। लेकिन पूरे गाँव के लिए पानी पर्याप्त नहीं हो रहा है। ज्ञानी ने कहा, "शासकीय हैंडपंप के पास बने गड्ढे में जो पानी एकत्र होता था, उसी पानी को मवेशियों को पिलाते थे। लेकिन अब हमें ही पानी नहीं मिल रहा था, जानवरों की व्यवस्था कैसें करें?"

गंदा पानी पीने को मजबूर!

मध्य प्रदेश के सैकड़ों गाँव भारी जल संकट का सामना कर रहे है। भीषण गर्मी में पेयजल की व्यवस्था करना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती बन चुकी है। जिन गाँव में नल जल योजना के तहत पाइप लाइन बिछ भी गई है, वहां पानी स्रोत नहीं होने से नलों में पानी नहीं आ रहा है। ग्राम पंचायत स्तर पर पानी के टैंकर की व्यवस्था की जाती है। मगर इतना पानी ग्रामीणों के लिए पर्याप्त नहीं हैं।

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) भोपाल की बायोकेमिस्ट्री विभाग की प्रोफेसर डॉ. रश्मि चौधरी ने द मूकनायक प्रतिनिधि से बताया कि यदि ग्रामीण कीचड़ युक्त पानी को पीने के लिए उपयोग में ले रहे है, तो यह उनके स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है। पानी को छान लेना या उबाल कर पीना सिर्फ बैक्ट्रिया को खत्म कर सकता है। इसके अलावा गंदे पानी में कई तरह के मेटलिक तत्व हो सकते हैं जो किडनी और लिवर को बड़ा नुकसान पहुँचा सकते हैं।

डॉ. चौधरी ने आगे कहा, "इस तरह के अशुद्ध पानी का सेवन भविष्य में बड़ी बीमारियों को जन्म दे सकता है। इसलिए किसी को भी गंदा पानी नहीं पीना चाहिए।"

प्रदेश में भीषण गर्मी

मई के महीने में तापमान बढ़ता ही जा रहा है। अधिकतम जिलों का तापमान 40 डिग्री के पार जा रहा है। 25 मई से नौतपे की शुरुआत भी होने वाली है। इसके बाद गर्मी में और वृद्धि हो सकती है। लू के साथ रात का तापमान भी बढ़ेगा।

वरिष्ट मौसम वैज्ञानिक डॉ. वेद प्रकाश ने बताया कि प्रदेश के कई जिलों में हीट वेव का अलर्ट जारी किया गया है। इसमें राजधानी भोपाल के साथ इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर, दतिया, सागर, भिंड, मुरैना, उज्जैन, रीवा, धार, दमोह भी शामिल है। आगामी एक हफ्ते तक प्रदेश में गर्मी का प्रकोप बना रह सकता है।

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