MP: गोण्ड कला की परंपरा को जीवित रखती आदिवासी संतोषी श्याम का सफर, संघर्ष और समर्पण से मिली पहचान

चित्रकार संतोषी को कालिदास सम्मान समेत कई अन्य प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, वह अपनी सफलता का श्रेय अपने पिता को देती हैं।
चित्रकार संतोषी श्याम
चित्रकार संतोषी श्याम
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भोपाल। जनजातीय समाज की समृद्ध कला और संस्कृति को संरक्षित करने और प्रदर्शित करने के उद्देश्य से मध्य प्रदेश जनजातीय संग्रहालय हर महीने एक विशेष प्रदर्शनी आयोजित करता है, जिसे 'शलाका प्रदर्शनी' के नाम से जाना जाता है। इसी कड़ी में अक्टूबर 2024 में गोण्ड जनजाति की उभरती हुई चित्रकार संतोषी श्याम के चित्रों की 54वीं शलाका प्रदर्शनी का आयोजन किया गया है। यह प्रदर्शनी 3 अक्टूबर से शुरू होकर 30 अक्टूबर तक दर्शकों के लिए खुली रहेगी, जिसमें उनके चित्रों की बिक्री भी होगी।

संतोषी श्याम का जन्म डिण्डौरी जिले के पाटनगढ़ में हुआ, जो गोण्ड जनजाति की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का केंद्र है। पाटनगढ़ की पहचान उसकी पारम्परिक गोण्डी चित्रकला से है, और संतोषी इस कला की विरासत में ही पली-बढ़ी। उनके पिता नर्मदाप्रसाद टेकाम गोण्ड चित्रकला के एक प्रतिष्ठित नाम थे, जिन्होंने संतोषी को इस कला की बारीकियों से परिचित कराया। संतोषी का परिवार गोण्ड कला के महान चित्रकार रहे जनगढ़सिंह श्याम के परिवार से संबंधित है, जिनका योगदान गोण्डी कला के पुनर्जागरण में अहम माना जाता है।

हालांकि संतोषी का पालन-पोषण और शिक्षा भोपाल में हुई, लेकिन पाटनगढ़ की मिट्टी और अपने पिता की कला के प्रति समर्पण ने उनके भीतर एक अद्वितीय कला का बीज रोपा। बचपन से ही उन्होंने पारम्परिक गोण्डी चित्रकला के रंगों और आकृतियों के साथ खेला, जिन्हें वे आज अपने चित्रों में जीवंत करती हैं। उनकी कलाकृतियों में विशेष रूप से जंगली पशु-पक्षियों का चित्रण देखने को मिलता है, जो गोण्ड कला की एक प्रमुख विशेषता है।

संतोषी श्याम का जीवन एक साधारण महिला का नहीं है, बल्कि यह संघर्ष, समर्पण और कला के प्रति अटूट प्रेम की कहानी है। उनका विवाह भी एक कलाकार से हुआ, जिनका नाम राजेन्द्र कुमार श्याम, जो खुद एक गोण्ड चित्रकार हैं। इस युगल की जीवनशैली में कला और परिवार की जुगलबंदी स्पष्ट दिखाई देती है। लेकिन संतोषी के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब उनके बड़े पुत्र को दिव्यांगता का सामना करना पड़ा। अपने बेटे की विशेष देखभाल के कारण संतोषी को अपनी कला को उतना समय नहीं दे पातीं, जितना वे देना चाहती हैं। यह उनके जीवन का सबसे कठिन संघर्ष है। एक कलाकार के रूप में अपने सपनों को सीमित करना और एक माँ के रूप में अपने बच्चे की देखभाल करना।

इसके बावजूद, संतोषी ने कभी अपनी कला को पीछे नहीं छोड़ा। जब भी संभव होता है, वह अपने पति के साथ मिलकर चित्रकला में हाथ बंटाती हैं। उनके घर की दीवारें उनके रचनात्मक प्रयोगों का प्रमाण हैं, जहाँ उन्होंने अपने भावनाओं और विचारों को रंगों के माध्यम से उकेरा है।

कला के माध्यम से मातृत्व की अभिव्यक्ति

संतोषी के चित्र न केवल गोण्ड जनजाति की सांस्कृतिक धरोहर को प्रकट करते हैं, बल्कि उनके जीवन के व्यक्तिगत अनुभवों और चुनौतियों का भी प्रतिबिंब हैं। उनके चित्रों में अक्सर प्रकृति के तत्व जंगली जानवर, पेड़-पौधे और पक्षी देखने को मिलते हैं, जो उनके जीवन की जटिलताओं और संघर्षों को एक अद्वितीय रूप में व्यक्त करते हैं। वह अपने चित्रों में रंगों और आकृतियों के माध्यम से जीवन के हर पहलू को उजागर करती हैं चाहे वह एक माँ के रूप में अपने संघर्ष हों, या एक कलाकार के रूप में अपनी परंपरा को बनाए रखने की जिम्मेदारी।

संतोषी के लिए, उनकी कला केवल एक पेशा नहीं है, बल्कि यह उनके जीवन की धड़कन है। वह मानती हैं कि कला के माध्यम से वह अपनी भावनाओं को सबसे बेहतर तरीके से अभिव्यक्त कर सकती हैं। द मूकनायक प्रतिनिधि से बातचीत में संतोषी ने बताया, की उनके पिता नर्मदाप्रसाद टेकाम ने बचपन से ही उन्हें सिखाया था कि कला केवल सजावट के लिए नहीं, बल्कि जीवन को समझने और उसे महसूस करने का एक माध्यम है। आज संतोषी अपने पिता को अपनी सफलता का श्रेय देती हैं, जिनकी निरंतर प्रेरणा ने उनकी कला को निखारा और सशक्त बनाया।

कला से मिली पहचान

संतोषी श्याम का योगदान सिर्फ गोण्ड कला को समृद्ध बनाने में ही नहीं, बल्कि इसे नई पीढ़ी तक पहुंचाने में भी है। उन्होंने कई एकल और संयुक्त प्रदर्शनी में भाग लिया है, और उनकी कलाकृतियों को कला समीक्षकों और दर्शकों द्वारा समान रूप से सराहा गया है। उन्हें कालिदास सम्मान समेत कई अन्य प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जो उनके कला के प्रति समर्पण और उत्कृष्टता का प्रमाण है।

इन सम्मानों ने न केवल संतोषी को एक प्रतिष्ठित कलाकार के रूप में स्थापित किया है, बल्कि गोण्ड जनजाति की कला को भी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पहचान दिलाई है। उनकी कला में गोण्ड समुदाय की पारंपरिक धरोहर का सजीव चित्रण होता है, जिसे आधुनिकता के साथ खूबसूरती से जोड़ा गया है।

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