भोपाल। मध्य प्रदेश में विशेष पिछड़ी जनजातियों के लिए संचालित पोषण आहार अनुदान योजना की हालात इतनी खराब है कि कई लाभार्थियों को पिछले छह महीनों से उनके बैंक खातों में राशि नहीं भेजी गई है।
द मूकनायक प्रतिनिधि से बातचीत करते हुए, अशोकनगर जिले के अरोन गाँव की रहवासी 28 वर्षीय भगवती आदिवासी ने कहा- "हम हर सप्ताह चंदेरी की एसबीआई बैंक शाखा जा रहे है। पर वहां बताया जाता है कि सरकार ने अभी पैसा खाते में नहीं भेजा है। अब छह महीने हो चुके हैं, लेकिन पैसे का एक ढेला तक खाते में नहीं आया।"
भगवती ने आगे कहा- "मेरे पति भूपत मजदूरी करते है। हमारे दो बेटे और एक बेटी है। बेटी सभी बच्चों में छोटी है, जिसकी उम्र अभी सिर्फ छह साल की है। घर चलाने में बड़ी दिक्कत हो रही है। शासकीय दुकान जो अनाज मिलता है, वह भी पूरा नहीं पड़ता। ऊपर से महंगा तेल, दाल, मसाले ये सब कहाँ से लाएं। चुनाव के पहले कहा था, पोषण आहार योजना की राशि एक हजार से बढ़ाकर पन्द्रह सौ रुपए की गई है, लेकिन अब तो पैसे ही नहीं आ रहे। जब अधिकारियों से पूछा तो उन्होंने कहा, दोबारा पासबुक, आधारकार्ड और अन्य कागजात जमा करा दो, मेरे पति ने वह भी किया। कागजात दिए हुए भी दो माह बीत गए पर खाते में पैसे नहीं आ रहे।"
अशोकनगर जिले की ही एक और लाभार्थी है, जिन्हें पिछले तीन महीने से पोषण आहार अनुदान योजना के अंतर्गत राशि का भुगतान नहीं किया गया है।
द मूकनायक से नारोन गाँव की रहवासी, 39 वर्षीय भूरी बाई ने बताया कि योजना की राशि चुनाव के पहले आई थी, इसके बाद खाते में पैसे नहीं आए । भूरी बाई कहती हैं- "सरकार का काम, जब पैसे खाते में अजाएँ तब मानो, हम बैंक जाते है तो यही बताया जाता है कि अभी पैसा ऊपर (भोपाल) से नहीं भेजा गया है।"
इधर, श्योपुर की कराहल क्षेत्र की रेखा आदिवासी भी पैसे के इंतजार में बैंक के चक्कर काट रही है। रेखा ने बताया तीन महीने बीत चुके हैं, लेकिन उनके खाते में पन्द्रह सौ रुपए की राशि नहीं आई।
रेखा आगे कहती है- "अन्य लोगों को लाडली बहना योजना का पैसा मिलता है पर हमें पोषण आहार योजना का पैसा मिलने के कारण, लाडली बहना का लाभ नहीं मिलता, जबकि उसका पैसा हर महीने समय पर बैंक खाते में आ जाता है।"
राज्य शासन की पोषण आहार अनुदान योजना की पड़ताल करने के लिए द मूकनायक टीम प्रदेश के श्योपुर, शिवपुरी और अशोकनगर जिले के ग्रामीण इलाकों में पहुँची। यहाँ जब गांव में मौजूद महिलाओं से हमने पोषण अनुदान की राशि के बारे में पूछा तो उनका गुस्सा फूट पड़ा। आदिवासी महिलाओं का कहना है कि पिछले छह महीनों से वह बैंक के चक्कर लगा रहीं है। लेकिन खाते में पैसे नहीं पहुँचे।
दरअसल, मध्य प्रदेश में विशेष पिछड़ी जनजाति (PVTGs) में सहरिया, भारिया और बैगा इन तीन जनजाति को शामिल किया है। इनके पिछड़ेपन और बच्चों में कुपोषण के मामले सर्वाधिक थे। जबकि इन जनजाति की वृद्धि संख्या शून्य है। राज्य सरकार ने पिछड़ी जनजाति को कुपोषण से उबारने के लिए 23 दिसम्बर 2017 को पोषण आहार अनुदान योजना शुरू की थी। इसमें पहले एक हजार रुपए हर महीने बैंक खाते में भेजे जाते थे, ताकि अनाज के अतरिक्त भी पौष्टिक भोजन के लिए इस पैसे का उपयोग किया जा सके। बीते साल ही सरकार ने इस राशि में बढ़ोत्तरी कर पन्द्रह सौ रुपये किए थे।
श्योपुर में आदिवासियों के लिए काम कर रहीं संस्था एकता परिषद के सदस्य जय सिंह जादौन ने बताया कि हमें जानकारी मिली है की पोषण आहार की राशि आदिवासी महिलाओं के खातों में महीनों से नहीं भेजी गई है। कुछ के खातों में राशि पहुँची है तो कुछ महिलाएं बैंक के चक्कर काट रही हैं।
शिवपुरी में सहरिया क्रांति संगठन के सदस्य राजकुमार आदिवासी ने बताया कि जिले में सैकड़ों आदिवासी महिलाएं हैं, जिनके खाते में पिछले कुछ महीनों से पोषण आहार अनुदान योजना के अंतर्गत मिलने वाली राशि नहीं पहुँचीं है। उन्होंने कहा, "सहरिया समाज के अधिकांश बच्चे आंशिक रूप से कुपोषण के शिकार जन्म से ही हो जाते हैं। इसका कारण, गरीबी और रोजगार के लिए पलायन कर जाना है, इसी कारण यहां कुपोषण बना रहता है।"
इस पूरे मामले में शासन का पक्ष जानने के लिए द मूकनायक प्रतिनिधि ने जनजातीय कार्य विभाग की उप सचिव मीनाक्षी सिंह (IAS) से बातचीत की उन्होंने कहा, "इस बारे में जानकारी नहीं है। इस योजना का काम अपर आयुक्त वंदना वैद्य देख रही है, आप उन्ही से बात करिए।" हमने अपर आयुक्त वंदना वैद्य के कार्यालय में भी फोन किया पर उनसे बात नहीं हो सकी।
मध्य प्रदेश वर्ष 2022 में पोषण आहार घोटाला भी सामने आया था। तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सरकार पर पोषण आहार में गड़बड़ी को लेकर आरोप लगे थे। दरअसल कैग की रिपोर्ट में प्रदेश में पोषण आहार बांटने में गड़बड़ी होने का खुलासा हुआ था।
बता दें मध्यप्रदेश में महिला एवं बाल विकास विभाग के तहत काम करने वाली आंगनवाड़ियों में कुपोषित बच्चों और गर्भवती महिलाओं को सरकार की ओर से पोषण आहार वितरित किया जाता है। इस पोषण आहार को लोगों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी जिन निजी कंपनियों को दी गई थी, उन्होंने राशन को लोगों तक नहीं पहुंचाकर सिर्फ कागजों पर इसकी खनापूर्ती कर दी।
कैग रिपोर्ट में यह सामने आया था कि भोपाल, छिंदवाड़ा, धार झाबुआ, रीवा, सागर, सतना और शिवपुरी, श्योपुर जिलों में करीब 97 हजार मैट्रिक टन पोषण आहार का स्टॉक के बारे में बताया गया था, लेकिन उसमें से सिर्फ 87 हजार मीट्रिक टन पोषण आहार बांटने के बारे में बताया गया है। यानी करीब 10 हजार टन आहार में गड़बड़ी हुई है। हेराफेरी कर कागजों में बटें इस आहार की कीमत करीब 62 करोड़ रुपए बताई गई थी।
इसी प्रकार मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिले के दो विकासखंडों खनियाधाना और कोलारस में सिर्फ आठ महीने के भीतर पांच करोड़ के आहार के भुगतान की अनुमति दे दी गई, लेकिन इसकी जांच होने पर स्टॉक के रजिस्टर तक नहीं मिले थे।
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