भोपाल। मध्य प्रदेश के बड़वानी में नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) के नेतृत्व में समाजसेवी मेधा पाटकर ने एक बार फिर सरदार सरोवर बांध के बढ़ते जलस्तर और विस्थापित ग्रामीणों की समस्याओं को लेकर जल सत्याग्रह शुरू कर दिया है। यह सत्याग्रह बड़वानी जिले के कसरावद गांव में शनिवार से चल रहा है, जिसमें मेधा पाटकर और आंदोलनकारी नर्मदा नदी के पानी में पिछले 22 घंटों से खड़े हैं। आंदोलन का मुख्य उद्देश्य बांध का जल स्तर कम करने और विस्थापित परिवारों के पूर्ण पुनर्वास की मांग है।
मेधा पाटकर ने आरोप लगाया कि सरदार सरोवर बांध का जलस्तर अवैध रूप से बढ़ाया जा रहा है, जिससे आस-पास के गांवों में पानी घुस रहा है और ग्रामीणों के घर, कृषि भूमि और आजीविका बर्बाद हो रही है। पाटकर ने कहा कि बांध का जलस्तर 136 मीटर तक पहुंच चुका है, जबकि इसे नियंत्रित करके 122 मीटर पर रखा जाना चाहिए था। उन्होंने यह भी कहा कि ओंकारेश्वर और इंदिरा सागर बांधों से पानी छोड़े जाने के बाद स्थिति और गंभीर हो गई है।
पाटकर ने आरोप लगाया कि केंद्रीय जल आयोग के नियमों का उल्लंघन कर बांध का जलस्तर बढ़ाया गया है, जिससे मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात के हजारों ग्रामीण प्रभावित हुए हैं। पिछले वर्ष भी मानसून के दौरान इसी प्रकार से 170 गांव प्रभावित हुए थे, जिनका पुनर्वास अभी तक अधूरा है।
जल सत्याग्रह के दौरान बड़वानी विधायक राजन मंडलोई ने देर रात आंदोलनकारी और प्रभावित ग्रामीणों से मुलाकात की और उनकी समस्याओं को सुना। उन्होंने चर्चा के दौरान विस्थापितों की समस्याओं को लेकर आश्वासन दिया कि वे सरकार से इस विषय पर जल्द बातचीत करेंगे।
मेधा पाटकर ने जोर देकर कहा कि जब तक विस्थापित परिवारों का पूर्ण पुनर्वास नहीं किया जाता और सरदार सरोवर बांध के गेट नहीं खोले जाते, तब तक उनका जल सत्याग्रह जारी रहेगा। पाटकर ने यह भी दावा किया कि बांध के जलस्तर को समय पर नियंत्रित न करने से बड़ी संख्या में घर डूब गए हैं और लोगों की जीविका प्रभावित हो रही है। उन्होंने बताया कि बांध के गेट खोलने और प्रभावित क्षेत्रों के पुनर्वास के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे।
पाटकर के नेतृत्व में जल सत्याग्रह में शामिल ग्रामीणों ने बताया कि पिछले कई वर्षों से वे विस्थापन की मार झेल रहे हैं, लेकिन सरकार द्वारा किए गए वादे अधूरे हैं। कई प्रभावित परिवार आज भी उचित पुनर्वास का इंतजार कर रहे हैं। किसानों की जमीनें डूब चुकी हैं, जिससे उनकी आय के स्रोत खत्म हो गए हैं।
ग्रामीणों ने कहा कि उन्हें बार-बार प्रशासन से केवल आश्वासन मिलते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर उनकी समस्याओं का कोई समाधान नहीं निकला है। पिछले साल भी जलस्तर बढ़ने से उनकी कृषि भूमि तबाह हो गई थी, और इस साल भी वही स्थिति दोहराई जा रही है।
मेधा पाटकर ने कहा कि यह नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण और सरदार सरोवर नर्मदा निगम लिमिटेड की जिम्मेदारी है कि वे जलस्तर को नियंत्रित करें और विस्थापितों को पुनर्वासित करें। उन्होंने मांग की है कि सरकार तत्काल हस्तक्षेप करे और विस्थापित परिवारों के अधिकारों की रक्षा के लिए कदम उठाए।
आंदोलन में शामिल ग्रामीणों का कहना है, पाटकर और नर्मदा बचाओ आंदोलन के अन्य कार्यकर्ता इस सत्याग्रह को तब तक जारी रखने का संकल्प ले चुके हैं, जब तक कि उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं। उनका कहना है कि यह सत्याग्रह केवल बांध के गेट खोलने की मांग तक सीमित नहीं है, बल्कि विस्थापित परिवारों के लिए न्याय और उनके संवैधानिक अधिकारों की लड़ाई है।
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