घर मे पेंटिग करती सुनीता
घर मे पेंटिग करती सुनीताफ़ोटो: द मूकनायक

MP: कोरोना में पति की नौकरी छूटी; भील पेंटिग्स बनी आदिवासी सुनीता भावोर के परिवार का रोजगार

सुनीता भावोर की चित्र प्रदर्शनी 3 सितंबर, 2024 से मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय की ‘लिखन्दरा प्रदर्शनी दीर्घा’ में प्रारंभ हो चुकी है, जो 30 सितंबर तक चलेगी। यह शलाका चित्र प्रदर्शनी का 53वां संस्करण है, जिसमें सुनीता के चित्रों का प्रदर्शन और विक्रय किया जा रहा है।
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भोपाल। मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के छोटे से गाँव खजूरखो में जन्मी और भीली कला को अपनी पहचान बनाने वाली सुनीता भावोर आज किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। भील समुदाय की इस युवा चित्रकार ने संघर्ष और कठिन परिस्थितियों के बावजूद अपनी कला के जरिए समाज में एक नई पहचान बनाई है। 30 वर्षीय सुनीता भावोर की चित्र प्रदर्शनी 3 सितंबर, 2024 से मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय की ‘लिखन्दरा प्रदर्शनी दीर्घा’ में प्रारंभ हो चुकी है, जो 30 सितंबर तक चलेगी। यह शलाका चित्र प्रदर्शनी का 53वां संस्करण है, जिसमें सुनीता के चित्रों का प्रदर्शन और विक्रय किया जा रहा है।

द मूकनायक से बात करते हुए सुनीता ने अपने जीवन के कठिन संघर्षों को साझा किया। उन्होंने बताया, "हमारा गाँव झाबुआ के दूरस्थ इलाकों में है, जहाँ शिक्षा और संसाधनों की कमी है। मेरे पिता कृषक थे और हम पाँच भाई-बहनों में सबसे बड़ी हूँ। गाँव में सिर्फ प्राथमिक स्तर तक की शिक्षा मिल पाई, उसके आगे पढ़ाई का कोई साधन नहीं था।"

सुनीता का बचपन जंगलों और पहाड़ों के बीच गुजरा, जहाँ प्राकृतिक सान्निध्य ने उनकी कल्पनाशक्ति को पंख दिए। उन्होंने कहा, "हमारी संस्कृति और परंपराओं का चित्रों में बहुत गहरा प्रभाव है," सुनीता ने बताया। शादी के बाद भोपाल आने पर उनकी कला यात्रा में नया मोड़ आया। उनके पति राकेश भावोर भी भीली चित्रकला के चर्चित कलाकार हैं। दोनों पति-पत्नी साथ मिलकर चित्रकला में अपनी पहचान बना रहे हैं।

भील चित्रकार सुनीता भावोर के द्वारा बनाया गया चित्र
भील चित्रकार सुनीता भावोर के द्वारा बनाया गया चित्र

कोरोना में पति की नौकरी छूटी

सुनीता के जीवन का सबसे कठिन दौर कोरोना काल में आया, जब उनके पति की नौकरी छूट गई। उन्होंने कहा, "तब से हम दोनों ने मिलकर चित्रकला को अपना प्रमुख पेशा बना लिया। शुरू में संघर्ष था, पर धीरे-धीरे हमारी मेहनत रंग लाई।" इस दौरान सुनीता ने भीली चित्रकला की बारीकियों को न केवल सीखा, बल्कि इसे अपनी कला में ढालकर नई ऊँचाइयाँ छुईं।

उन्होंने आगे कहा, "मैं अपनी ननद कामता ताहेड़ की हमेशा आभारी रहूँगी। उन्होंने मुझे भीली चित्रकला सिखाई और मेरे हर कदम पर साथ दिया। उनके मार्गदर्शन ने ही मुझे आत्मनिर्भर बनाया," सुनीता ने कहा। साथ ही वे पद्मश्री भूरीबाई और लाडोबाई से भी प्रेरित हैं, जो उनके परिवार का हिस्सा हैं।

चित्रों में भील संस्कृति की झलक

सुनीता भावोर की कला में भील समुदाय की सांस्कृतिक परंपराएँ स्पष्ट दिखाई देती हैं। उनके चित्रों में जंगल, पहाड़, पशु-पक्षी और जनजातीय संस्कार खासतौर पर उभरकर आते हैं। सुनीता ने इस पर कहा, "हमारी कला हमारी पहचान है। मैंने अपने चित्रों में जंगल और गाँव की हरियाली, वहाँ की जीवनशैली को जीवंत किया है,"

देशभर में आयोजित विभिन्न प्रदर्शनी में भाग लेकर सुनीता ने भीली चित्रकला को नई पहचान दिलाई है। नयी दिल्ली, बड़ौदा, इंदौर, कोयंबटूर और मदुरई में उनके चित्रों की प्रदर्शनी आयोजित हो चुकी है। सुनीता कहती हैं, "प्रदर्शनियों में शामिल होना और अपने चित्रों को लोगों के सामने लाना मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी। इससे न सिर्फ मेरी कला को पहचान मिली, बल्कि मेरे जीवन को भी एक नई दिशा मिली।"

सुनीता भावोर की कला यात्रा यहीं नहीं रुकने वाली। वे कहती हैं, "मैं चाहती हूँ कि मेरी कला के जरिए हमारी संस्कृति का प्रचार-प्रसार हो। हमारे समाज के लोग भी जानें कि उनकी कला की कितनी अहमियत है और वे भी अपनी कला को निखारने का प्रयास करें।"

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