भोपाल। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में गुरुवार को गोंड समुदाय के पारंपरिक पर्व 'कोयापुनेमी पाबुन जंगो लिंगो लाठी गोंगो' का भव्य और सांस्कृतिक आयोजन किया गया। यह आयोजन गोंडवाना भू-भाग में निवासरत गोंड समुदाय की समृद्ध संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखने के उद्देश्य से हर साल आयोजित किया जाता है। भोपाल स्थित 'सगा सग्गुम आदिम सामाजिक संस्था' पिछले 15 वर्षों से इस पर्व का आयोजन करती आ रही है, जो गोंड समुदाय की पहचान, अस्मिता और सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
गोंड समुदाय प्रकृति से गहरे जुड़े रहने के कारण अपने रीति-रिवाजों, तीज-त्योहारों, भाषा, बोली, खान-पान और रहन-सहन में हमेशा से प्रकृति के संतुलन और संरक्षण के सिद्धांतों का पालन करता आया है। कोयापुनेमी व्यवस्था, जिसे 'प्रकृतिवादी व्यवस्था' भी कहा जाता है, कोयतुर गोंडों द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाई जा रही है। इस वर्ष भी इस विशेष पर्व को मनाने के लिए मध्यप्रदेश समेत देश के विभिन्न हिस्सों से गोंड समुदाय के लोग भोपाल में एकत्र हुए थे।
कार्यक्रम की शुरुआत सुबह 9:30 बजे गोंगो स्थल पर गोंड समुदाय की पेनशक्तियों को आह्वान करने के साथ हुई। गोंगो भुमका तिरूमाल एच.एल. तेकाम और उनकी टीम के नेतृत्व में विधिवत गोंगो पूजा संपन्न हुई, जिसमें सभी मातृशक्तियों, पितृशक्तियों और बच्चों ने भाग लिया। पूजा के बाद, जंगो लिंगो के प्रतीक स्वरूप पहुआ डांग बांधा गया और पारंपरिक वेशभूषा धारण कर सांस्कृतिक रैली निकाली गई। रैली गोंगो स्थल से शुरू होकर भेल के गांधी चौराहा तक पहुंची। रैली में पारंपरिक ढोल-नगाड़ों की गूंज और हर्षोल्लास का माहौल देखने को मिला, जिसमें समुदाय के बुजुर्ग, महिलाएं, बच्चे और युवा सभी ने उत्साहपूर्वक हिस्सा लिया।
रैली के बाद आयोजित एक संक्षिप्त उद्बोधन कार्यक्रम में विभिन्न राज्यों से पधारे वरिष्ठ चिंतक और गोंड समुदाय के प्रबुद्ध व्यक्तियों ने कोयापुनेम पर्व और इसकी महत्ता पर विचार व्यक्त किए। वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि गोंड समुदाय की सांस्कृतिक धरोहर, तीज-त्योहार, भाषा और साहित्य का संरक्षण ही उनके अस्तित्व और अस्मिता का मूल आधार है।
कोयापुनेम पर्व का गोंड समुदाय के इतिहास और सांस्कृतिक जीवन में विशेष स्थान है। यह पर्व गोंड समुदाय के प्रथम गुरू "लिंगो बाबा" और वैवाहिक व्यवस्था के दर्शनकर्ता "जंगो दाई" के सम्मान में मनाया जाता है। यह पर्व न केवल गोंडवाना के गोंड बाहुल्य क्षेत्रों में, बल्कि जहां-जहां भी गोंड समुदाय के लोग निवास करते हैं, धूमधाम से मनाया जाता है।
इस पर्व का उद्देश्य गोंड समुदाय के गौरवशाली इतिहास और पुरखों के योगदान को याद करना है। कोयापुनेम का विधान, जो प्राचीन काल से गोंड समुदाय का मार्गदर्शक रहा है, प्राकृतिक संतुलन और सामाजिक जिम्मेदारी का प्रतीक है। गोंड समुदाय के पूर्वजों ने प्रकृति के सिद्धांतों के आधार पर सामाजिक संरचना का निर्माण किया, जिसमें सभी जीव-जंतु, पर्यावरण और मानव जगत का कल्याण निहित है। इस सामाजिक व्यवस्था के माध्यम से गोंड समुदाय ने हमेशा से 'हम की भावना' को मजबूत किया और सामाजिक जिम्मेदारी निभाई।
दोपहर में सामुहिक भोजन के बाद समारोह का द्वितीय सत्र 3:30 बजे सांस्कृतिक हॉल, भेल गेट न. 4 में आयोजित किया गया। इस सत्र की शुरुआत गोंगो भुमका तिरूमाल एचएल तेकाम और उनकी टीम द्वारा विधिवत पूजा से हुई। इसके बाद, मंच पर सभी अतिथियों का पारंपरिक रूप से स्वागत किया गया। सांस्कृतिक कार्यक्रम में गोंड समुदाय के पारंपरिक नृत्य और गीत प्रस्तुत किए गए, जिन्हें देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे। कलाकारों ने अपने शानदार प्रदर्शन से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।
कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण गोंड समुदाय के वरिष्ठ और विशिष्ट व्यक्तियों का सम्मान था। इस अवसर पर गोंड समुदाय के नेताओं ने कहा कि यह पर्व सिर्फ एक सांस्कृतिक उत्सव नहीं, बल्कि अपने पुरखों के योगदान को याद करने और उनके सिद्धांतों का पालन करने का एक संकल्प है।
आयोजन समिति ने सभी अतिथियों और प्रतिभागियों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि गोंड समुदाय की सांस्कृतिक पहचान और धरोहर को जीवित रखने के लिए ऐसे आयोजन बेहद महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने यह भी कहा कि भविष्य में भी इस पर्व का आयोजन इसी प्रकार बड़े पैमाने पर किया जाएगा ताकि गोंड समुदाय की नई पीढ़ी अपने इतिहास, संस्कृति और परंपराओं से जुड़ी रहे।
समारोह के अंत में सभी उपस्थित लोगों ने कोयापुनेम पर्व की शुभकामनाएं दीं और इसे गोंडवाना भू-भाग के साथ-साथ पूरे भारत में गोंड समुदाय की एकता और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक बताया।
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.