इम्फाल/चुराचांदपुर। मणिपुर में इस साल मई में शुरू हुए जातीय हिंसा के 3 महीने बाद भी प्रभावितों और राज्य के अलग-अलग हिस्सों में रिलीफ कैंपों में रह रहे शरणार्थियों के बच्चे जो कभी स्कूल, कॉलेज और ट्यूशन जाते थे अब उनका पूरा दिन राहत शिविरों में बीत रहा है। स्कूल जाने की स्मृतियां उनके दिलों-दिमाग से धूमिल होती जा रहीं हैं। कलम और किताबों के बीच दिन गुजारने वाले बच्चे रिलीफ कैंपों में अब चीख-पीड़ा, असुरक्षा, भूख, बेरोजगारी, अंधकारमय अनिश्चित भविष्य की आशंकाओं और बीमारी के हालातों में जी रहे हैं।
राजधानी इम्फाल से लगभग 63 किमी दूर जनजातीय बाहुल्य पहाड़ी क्षेत्र में बसे चुराचांदपुर (Churachandpur) जिले के आईबी रोड जिला अस्पताल (IB Road District Hospital) के पास YVA (Young Vaiphei Association) की ओर से एक पुराने ब्वॉयज हॉस्टल को रिलीफ कैम्प में तब्दील कर दिया गया है। ब्वॉयज हॉस्टल का भवन काफी जर्जर स्थित में है लेकिन धूल-धूप, आंधी-तूफान और बारिश से शरणार्थियों को बचाने के लिए एक छत का होना प्रभावितों के लिए पर्याप्त है।
हॉस्टल के दूसरे तल पर कुछ लड़कियां समूह में एक कोने में बैठी हुई हैं। द मूकनायक टीम को वहां देख उन्हें थोड़ी उम्मीद जगी की कोई हमारी परेशानियों पर बात करने के लिए आया है, और वह सभी कमरे में वहां आ पहुंची जहां द मूकनायक टीम कुछ महिलाओं से उनकी परेशानियों पर बात कर रहा था। आंतरिक रूप से विस्थापित आदिवासी महिलाओं से बात करने के बाद हमने उन लड़कियों से जानने की कोशिश की कि उनके साथ क्या हुआ था, क्या वह अब स्कूल जा पा रहीं हैं?
लड़कियों के पास उपस्थित महिलाओं में से एक ने बताया कि यह लड़कियां अपने परिवार के साथ इसी रिलीफ कैंप में रह रहीं हैं। “हिंसा के बाद लड़कियां उतांगपोकपी (Utangpokpi) गांव से परिवार सहित भाग निकलीं और अपना घर छोड़ दिया। यह लोग लगभग एक महीने तक जान बचाने के लिए जंगलों में रहीं।”
13 वर्षीय नेंगहिकोंग (Nenghoichong) कक्षा 7 की छात्र है। एग्जाम आने वाले थे तभी हिंसा शुरू हो गई। उसने बताया कि गांव छोड़ने के बाद से स्कूल नहीं गई। “हमारे घर जला दिए गए। जिसमें स्कूल बैग, किताबें, यूनिफॉर्म जल गए”, वह रुआंसी हो गई सिर्फ इतना कहकर चुप हो गई कि, “दोबारा अपने घर अपने स्कूल जाना चाहती हूँ।”
नेंगहिकोंग के साथ ही पास में बैठी 16 वर्षीय नेंगहिंकिम (Nengheikim) और 19 वर्षीय चिनकिम (Chinneikim) भावुक थीं। दोनों कक्षा 10 की छात्रा हैं। लेकिन उनके पास पढ़ाई के लिए कुछ भी नहीं है। नेंगहिकोंग के जवाब के बाद वह दोनों कुछ भी बताने में असहज दिखीं, जैसे लगा मानो उनके सामने वह बीता हुआ दृश्य ताजा होकर उभर आया हो।
यहां यह उल्लेखनीय है कि राहत शिविर में रह रहे बच्चे जो हिंसा से पहले स्कूल जा रहे थे उनके लिए यहां स्थानीय स्तर पर शिक्षा के लिए कोई भी सरकारी इंतजाम नहीं दिखाई दिए। जो बच्चे राहत शिविर में हैं वह पहाड़ी के अलग-अलग गांवों से भागकर आए हुए हैं. उनके घर तोड़ दिए गए और जला दिए गए हैं। वापस लौटने की वजह के नाम पर उनके पास कुछ भी नहीं है।
कुकी समुदाय बाहुल्य पहाड़ी क्षेत्र चुराचांदपुर में रेंगकाई रिलीफ कैम्प (Rengkai Relief Camp) में कुल 378 शरणार्थियों में 17 साल से ऊपर के 99 लड़के और 87 लड़कियों की संख्या चिंतित करती हैं कि एक-एक राहत शिविरों में इतनी संख्या में रह रहे बच्चे निरंतर शिक्षा से वंचित हो रहे हैं। YVA (Young Vaiphei Association) की ओर से बनाए गए रिलीफ कैम्प के वालंटियर जैरी (Zerry) 35, ने द मूकनायक को बताया कि हिंसा की घटना के बाद पूरे चुराचांदपुर जिले में लगभग 100 से ज्यादा रिलीफ कैम्प बनाए गए हैं. रिलीफ कैंपों की अनुमानित संख्या बताती है कि आदिवासी बच्चों की भारी संख्या कई महीनों से लगातार शिक्षा से वंचित हो रही हैं।
चुराचांदपुर जिले के पहाड़ी में बसे मोलवाईफे गांव (Muolvaiphei Village) के निवासी कैलाश (38), का परिवार ट्राइबल बाहुल्य क्षेत्र में रहने वाले गिने चुने हिन्दू परिवारों में से एक हैं। एक छोटे से चाय की दुकान चलाकर वह अपने परिवार का पेट पालते हैं। उनके दो बच्चे — एक बेटी, एक बेटा — मई से अबतक स्कूल नहीं गए।
कैलाश द मूकनायक को बताते हैं कि, “बच्चों का एक ही टेस्ट हुआ उसके बाद स्कूल बंद हो गया। बच्चों को ट्यूशन करा रहे हैं, जिससे उनकी पढ़ाई थोड़ी बहुत चल रही है।”
उन्होंने बताया कि हिंसा की घटना के बाद यहां बाहर से आने वाले समान महंगे हो गए हैं, क्योंकि सामान्य रास्ते पूरी तरह बंद कर दिए गए हैं। थोड़ा बहुत जरूरत की चीजें मिजोरम से आती है। प्रदेश में हुई जातीय हिंसा और कुकी समुदाय की महिलाओं की नग्न परेड को कैलाश शर्मनाक बताते हैं। “जो भी हुआ यह अच्छा नहीं हुआ। सबको एक दूसरे से मिलकर रहना चाहिए। सरकार को यहां ध्यान देने की जरूरत है,” कैलाश राज्य सरकार से अपील करते हुए कहते हैं।
अल्पसंख्यक आदिवासी समुदाय कुकी-जो और बहुसंख्यक मैतेई समुदाय के बीच हुई हिंसा में दोनों तरफ के लोगों को सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक और अन्य परिस्थितजन्य हानियाँ हुईं हैं, इस बात को नकारा नहीं जा सकता। दोनों समुदायों के लोग सैकड़ों राहत शिविरों में आज भी दिन गुजार रहें हैं। लेकिन घाटी में मैतेई समुदाय के राहत शिविरों में रह रहे बच्चों को स्थानीय स्तर पर स्कूल में दाखिल मिल गया है जबकि पहाड़ी में कुकी समुदाय के राहत शिविरों में रह रहे बच्चों के लिए स्थानीय स्तर पर शिक्षा देने के लिए सरकार की ओर से कोई खास कदम नहीं उठाए गए हैं।
राजधानी इम्फाल (Imphal) के नोरेम थोंग (Naorem Thong) के रिहायशी इलाके के निवासी सरकारी रिटायर्ड अध्यापक ईमो शर्मा (Imo Sharma) 65, कक्षा 10 के छात्रों को पहले इंग्लिश और सोशल स्टडीज पढ़ाते थे। राज्य में हिंसा की घटनाओं के बाद प्रभावित होने वाले बच्चों की शिक्षा के बारे में वह द मूकनायक को बताते हैं कि, “अभी एक सप्ताह पहले कक्षा 11वीं, और 12वीं की कक्षाएं शुरू हुईं हैं. लेकिन अभी तक नर्सरी स्कूल नहीं शुरू हुए हैं. उम्मीद है कि वह भी जल्द खोल दिए जाएंगे। क्योंकि जिस स्कूल में बच्चे पढ़ने जाते थे वहां आर्मी के फोर्सेज भारी संख्या में रह रहे हैं.”
राजधानी इम्फाल से 45 किमी दूर मोयरॉग (Moirang) क्षेत्र में खोयोल केथल कैम्प (Khoyol Keithel Camp) में कुल 269 विस्थापित हैं. जिसमें अधिकांश मैतेई समुदाय के विस्थापित हैं. कैम्प में 1 से 12 साल के 36 बच्चे व 32 बच्चियां तब से रह रहीं हैं जब से यहां जातीय हिंसा भड़की है। राहत शिविर के वालंटियर कुमाम डेविडसन (Kumam Davidson) 35, अपने शिविर में ही अपने वालंटियर साथियों की मदद से छोटे बच्चों को एक कमरे में पढ़ाते हैं।
इसी राहत शिविर के एक वालंटियर लैसराम (Laishram), ने द मूकनायक को बताया कि, “रिलीफ कैंप के लगभग सभी बच्चे पास के स्कूल में जाते हैं। जहां उनका फ्री में एडमिशन हुआ है। बच्चे सुबह 8 बजे स्कूल जाते हैं और शाम को 3 बजे राहत शिविर में आ जाते हैं।”
यहां यह ध्यान देने योग्य है कि मैतेई समुदाय के लगभग रिलीफ कैंपों के निकटवर्ती स्कूलों में राहत शिविर के बच्चों का प्राइमरी स्कूलों में जोर देकर एडमिशन कराया गया है। लेकिन पहाड़ी में बसे कुकी बाहुल्य क्षेत्र के राहत शिविरों में रह रहे बच्चों की पढ़ाई एकदम ठप पड़ गई है। इसके पीछे का कारण चुराचांदपुर जिले में कार्यरत एक सामाजिक संस्था की कर्मचारी ने कुकी समुदाय के लिए मणिपुर सरकार का दोयम रवैया बताया।
नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर सामाजिक संस्था की महिला चेयरपर्सन बताती हैं कि “देश की आज़ादी से पहले यहां (ट्राइबल बाहुल्य चुराचांदपुर में) कई गांव बस चुके थे. अवैध प्रवासी बताकर यहां की सरकार ने कभी इस जगह का विकास नहीं किया। सभी अच्छे कॉलेज, संस्थाएं इम्फाल में स्थापित किये गए, लेकिन यहां कुछ भी नहीं है”.
कोंजेंगबम (Konjengbam) रिलीफ कैंप में रहने वाले 28 वर्षीय मैक्स (Max) फुलबाल खिलाड़ी हैं। मैतेई समुदाय के मैक्स ने 10वीं तक पढ़ाई की है। मैक्स आरोप है कि, उनका घर जो चुराचांदपुर जिले में था, हिंसा की घटना के बीच कुकी लोगों ने जला दिया। घर वापस लौटने को लेकर क्या ख्याल है, द मूकनायक के सवाल पर मैक्स ने कहा कि, “वहां लौटकर जाने का क्या फायदा। अब तो घर भी नहीं रहा। पैसे भी नहीं है कि उसे फिर से बना सकें।”
“पूरा लाइफ बर्बाद हो गया। इस तनाव भरे माहौल के बीच फुटबाल की तैयारी के लिए भी कहीं नहीं जा सकता। वीडियो (नग्न कुकी महिलाओं की परेड) वायरल होने के बाद मेरा गुवाहाटी में फुटबाल का क्लब कैंसिल कर दिया गया। मेरे टिकट भी कैंसिल कर दिए गए, क्योंकि मैं मैतेई हूँ। तीन महीने से ऊपर हो गए यहां इंटरनेट नहीं चल रहा है। काम भी नहीं मिल रहा है, हाथ में पैसा भी नहीं है। महीनों से हम ऐसे ही रह रहे हैं”, मैक्स अपने कैरियर के खत्म होने से निराश भरे लहजे में द मूकनायक को बताया।
प्रदेश के लगभग सभी बड़े स्पेस वाले स्कूल, कॉलेजों में सुरक्षा बलों के ठिकाने बनाए गए हैं. क्योंकि जातीय हिंसा की घटना के बाद प्रदेश में मौजूदा स्थितियों को संभालने के लिए भारी संख्या में सुरक्षा बलों को तैनात किया गया है. इन सुरक्षा बलों का ठिकाना छात्रों के स्कूल, कॉलेज ही हैं. ऐसे में छात्रों के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है कि वह अपनी पढ़ाई जारी रख सकें। क्योंकि राज्य में तीन महीनों से भी ज्यादा समय से इंटरनेट सेवा भी बंद है.
इस साल मई में राज्य में, कुकी और मैतेई के बीच हिंसा के बाद विभिन्न अर्धसैनिक बलों की लगभग 125 कंपनियों, भारतीय सेना और असम राइफल्स की लगभग 164 टुकड़ियों को मणिपुर के संघर्षरत इलाकों या तनावपूर्ण जगहों में तैनात किया गया है। एक कंपनी में लगभग 120-135 कर्मचारी होते हैं। जबकि सेना की एक टुकड़ी में करीब 55-70 जवान होते हैं.
मणिपुर सरकार की शिक्षा विभाग की वेबसाइट पर 30 सितम्बर 2015 को प्रकाशित सूची के अनुसार, राज्य में कक्षा 1 से 5 तक, कक्षा 6 से 8 तक और कक्षा 9 से 12 तक कुल 54 सरकारी स्कूल और कालेज रहे. यह सभी स्कूल ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में स्थापित किये गए हैं. हालाँकि, तब से आज तक, 8 साल बाद उक्त स्कूल, कालेजों में काफी वृद्धि हुई होगी.
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