भोपाल। आदिवासी चित्रकला और चित्रकार अब कम ही देखने को मिलते हैं, एक्टविस्ट इसका कारण रोजगार की तलाश में गाँव से आदिवासियों का पलायन मानते हैं। इन सब के बावजूद भी विलुप्त हो रही खास चित्रकला को महिलाएं आने वाली पीढ़ी तक पहुँचाकर इसका संरक्षण कर रही हैं।
भील जनजाति की संस्कृति को दीवारों और कैनवास पर उकरने वाली भील चित्रकार पद्मश्री भूरी बाई भील चित्रकला को आगे की पीढ़ी तक पहुँचाने का काम कर रही है। भूरी बाई ने इसकी शुरुआत अपने घर से ही की है। उन्होंने चित्रकला घर के छोटे बच्चों और अपने बेटे की पत्नी (पुत्रवधु) कमिला बारिया को भी सिखाई है। अब कमिला बारिया भी उनके साथ मिलकर चित्रकला को आगे की पीढ़ी तक ले जा रही हैं।
कमिला बारिया भील चित्रकला में इतनी माहिर हो गई है कि अब उनके द्वारा बनाए गए चित्र जनजातीय संग्राहलय में हरमाह आयोजित होने वाली चित्रप्रदर्शनी "शलाका" में भी प्रदर्शित किए जाते हैं।
साल 1990 में जन्मी कमिला बारिया भील समुदाय की उदीयमान चित्रकार हैं। दाहौद (गुजरात) के किसान परिवार में पली-बढ़ी कमिला तीन भाइयों की इकलौती बहन हैं। वर्ष 2008 में मूलत: झाबुआ निवासी कमलेश बारिया से विवाह के बाद रोजगार के लिए वह अपने पति के साथ भोपाल में ही आ गईं। प्रख्यात भील चित्रकार पद्मश्री भूरी बाई कमिला की सास हैं।
द मूकनायक से बातचीत करते हुए कमिला ने बताया- "चित्रकला के प्रारंभिक गुर अपनी सास भूरी बाई से सीखे। भूरी बाई की प्रेरणा और प्रोत्साहन से कमिला ने भी, धीरे-धीरे चित्रकारी करना शुरू किया। प्रारम्भ में अपनी सास के बनाए गए चित्रों की प्रतिकृतियों को बनाना सीखा। फिर धीरे-धीरे अपनी कल्पना के आधार पर नई रंग-संरचनाएँ भी बनाने लगीं।
पिछले 10 वर्षों से कमिला ने चित्रकारी की निरंतरता को बनाए रखा है। अपने देखे-भोगे जीवन अनुभवों और जनजातीय जीवनबोध को रंग-कूची की सहायता से वे रूपाकार दे रही हैं। दिन में वे मजदूरी करती हैं तो शाम को चित्रकर्म करती हैं।
कमिला ने विभिन्न कला-प्रदर्शनियों एवं चित्र-शिविरों में सक्रिय भागीदारी की है। कई शासकीय-अशासकीय प्रतिष्ठानों एवं संस्थानों के संग्रह में कमिला की कला-कृतियों को संकलित किया गया है। अपनी सफलता का पूरा श्रेय अपनी सास एवं गुरु भूरी बाई को देती हैं। वर्तमान में कमिला विभिन्न कला संस्थाओं से जुडक़र नई पीढ़ी को भी चित्रकर्म के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं।
30 मार्च 2023 को भोपाल के जनजातीय संग्रहालय में शलाका के 35 वे अंक में चित्रकला प्रदर्शनी में भील समुदाय की चित्रकार कमिला बारिया के चित्रों की प्रदर्शनी और विक्रय का संयोजन किया गया था। प्रदर्शनी में कमिला के द्वारा बनाए गए पर्यावरण, जीव-जन्तु,पक्षी के साथ कथाओं पर आधिरत चित्रों को प्रदर्शित किया गया था।
साल 2021 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा राष्ट्रपति भवन में 'भूरी बाई' को कला के क्षेत्र में उत्कृष्ठ कार्य करने के लिए पद्मश्री दिया गया था। आदिवासी समुदाय से आने वाली भूरी बाई, मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के पिटोल गांव की रहने वाली हैं। बचपन से ही भूरी बाई चित्रकारी करने की शौकीन थी। उन्होंने कैनवास का इस्तेमाल कर आदिवासियों के जीवन से जुड़ी चित्रकारी को करने की शुरूआत की और देखते ही देखते ही उनकी पहचान पूरी देश में हो गई।
भूरी बाई की बनाई गई पेटिंग्स ने न केवल देश बल्कि विदेशों में भी पहचान बनाई। हालांकि भूरी बाई को यहां तक पहुंचना आसान नहीं था। उनका बचपन गरीबी में बीता था भूरी बाई पहली आदिवासी महिला हैं, जिन्होंने गांव में घर की दीवारों पर पिथोरा पेंटिंग करने की शुरूआत की। बाद में उनकी पेटिंग की पहचान सब जगह में होने लगी। इसके बाद भूरी बाई भोपाल आकर मजदूरी करने लगी। उस दौर में भोपाल में पेटिंग बनाने का काम करती थीं।
बाद में संस्कृति विभाग की तरफ से उन्हें पेटिंग बनाने का काम दिया गया। जिसके बाद वे भोपाल के भारत भवन में पेटिंग करने लगी। उन्हें 1986-87 में मध्य प्रदेश सरकार के सर्वोच्च पुरस्कार शिखर सम्मान से सम्मानित किया भी किया। इसके अलावा 1998 में मध्य प्रदेश सरकार ने ही उन्हें अहिल्या सम्मान से भी सम्मानित किया था।
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