भोपाल: "पिछली साल फरवरी में मुझे एनजीओ 'दिव्य ज्योति सोशल डेवलपमेंट सेंटर' ने जन स्वास्थ्य सहयोगी (जेजेएस) के पद पर नियुक्त किया था। संस्थान ग्रामीण क्षेत्र में टीबी मरीजों के सैम्पल कलेक्शन का काम करती है। हमें 15 हजार प्रतिमाह की सैलरी पर नौकरी में रखा गया था, लेकिन कुछ समय बाद एनजीओ ने पैसा काटना शुरू कर दिया। टारगेट पूरा करने के बावजूद भी पैसे काटने लगे। फिर सैलरी देना ही बंद कर दिया, जब हमने सैलरी मांगने के लिए एनजीओ के डायरेक्टर और अन्य से बात की तो वह अभद्रता करने लगे। पुलिस से भी शिकायत की मगर कुछ नहीं हुआ!" यह पीड़ा मंडला जिले की निवासी आदिवासी चंद्रकला धुर्वे की है।
समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर आदिवासी किसान परिवार के बेटी को समाज सेवी संस्था ने ही ठग लिया! यह पीड़ा चन्द्रकला के साथ दर्जनों आदिवासी लड़कियों की है। जिन्हें एनजीओ ने पहले रोजगार का वादा किया, बाद में सैलरी देना बंद कर दिया। पुलिस से शिकायत की, लेकिन कार्यवाही नहीं हुई।
मध्य प्रदेश में आदिवासी इलाकों में टीबी के रोगियों के लिए काम कर रही 'दिव्य ज्योति सोशल डेवलपमेंट सेंटर' नाम की एनजीओ ने पहले तो आदिवासी युवाओं को नौकरी दी बाद में कई महीने काम कराने के बाद उन्हें बगैर तनख्वाह दिए हटा दिया। संस्थान आदिवासी बहुल जिले डिंडोरी, अनूपपुर, उमरिया, शहडोल और खरगोन में काम करती है। उक्त एनजीओ को सरकार से चार साल का प्रोजेक्ट मिला है।
जिसमें एनजीओ स्वास्थ्य विभाग के अंतर्गत कार्य करेगा। वर्ष 2022-25 के बीच चलने वाले प्रोजेक्ट में एनजीओ को आदिवासी इलाकों के युवाओं से गाँवों में डोर-टू-डोर सर्वे कर टीबी के मरीजों के सैम्पल कलेक्ट कर जिले की लैब को भेजने थे। इसके साथ टीबी से बचाव और इलाज के लिए जागरूकता अभियान चलाने थे।
दिव्य ज्योति नाम के एनजीओ ने इसके लिए इन जिलों में आदिवासी शिक्षित लड़के, लड़कियों की इंटरव्यू के माध्यम से जन स्वास्थ्य सहयोगी (जेजेएस) के पद पर भर्ती की थी। कुछ समय बाद नियुक्त किए गए जेजेएस को टारगेट दिए गए। इसमें प्रतिमाह 15 से 20 सैम्पल कलेक्शन करने को कहा गया। यह टारगेट भी एनजीओ में काम कर रहे लड़के, लड़कियां पूरा कर रहे थे। लेकिन बावजूद इसके एनजीओ ने सैलरी में कटौती करना शुरू कर दिया। जब इस बात का विरोध शुरू हुआ तो एनजीओ के अधिकारी कर्मचारियों से अभद्रता करने लगे। कुछ लोगों को बिना कारण अचानक नौकरी से निकाल दिया गया।
द मूकनायक से बातचीत करते हुए चंद्रकला धुर्वे ने बताया कि एनजीओ ने जब सैलरी कटौती करना शुरू की तो हमने भोपाल स्थित दिव्य ज्योति एनजीओ के डायरेक्टर अनिल शर्मा को फोन किया तो उन्होंने कहा कि भोपाल ऑफिस में हम आपको काम देंगे। मैं जब सारा सामान लेकर भोपाल पहुचीं तो मुझे नौकरी नहीं दी। तीन महीने की सैलरी भी रोक ली। वापस अनूपपुर जाकर मैने कोतवाली पुलिस में शिकायत की, लेकिन कोई कार्यवाही नहीं की गई।
इधर, अनूपपुर जिले की इंद्रवती गौंड ने बताया कि अप्रैल 2022 में उन्हें भी दिव्य ज्योति एनजीओ ने जन स्वास्थ्य सहयोगी (जेजेएस) के पद पर नियुक्त किया था। बाद में पैसे काटना शुरू कर दिए जब हमने एनजीओ के अधिकारियों से बात की तो वह फोन पर अभद्रता करते थे। मेरी अगस्त महीने की पूरी सैलरी एनजीओ ने नहीं दी इसके अलावा तीन महीने तक मेरी सैलरी से दो से चार हजार तक रुपए काट लिए। एनजीओ ने मेरे जैसे दर्जनों आदिवासी युवाओं को नौकरी के नाम पर ठगा है। लगभग सभी को बिना बताए हटा दिया है। पुलिस में शिकायत के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हुई।
इस मामले में दिव्य ज्योति सोशल डेवलपमेंट सेंटर' के डायरेक्टर अनिल शर्मा का पक्ष जानने के लिए हमने उनके मोबाइल नम्बर पर कई बार कॉल किए पर उन्होंने फोन नहीं उठाया। इधर जनजाति कल्याण विभाग के आयुक्त संजीव सिंह से भी बात नहीं हो सकी।
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