भोपाल। मध्य प्रदेश में आदिवासियों की करोड़ों की जमीनों में हेराफेरी कर बेचे जाने का मामला सामने आया है। इस मामले में मध्य प्रदेश कैडर के चार आईएएस पर लोकायुक्त ने मामला दर्ज किया है। जानकारी के मुताबिक जबलपुर और कटनी जिलों में आदिवासियों की 500 करोड़ की जमीनें गैर आदिवासियों को बेचने की मंजूरी देने के मामले में लोकायुक्त ने 4 आईएएस अफसरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है।
आदिवासियों की जमीनों में हेराफेरी कर लगभग 500 करोड़ की जमीन को बेचा गया था। कुल 13 मामलों में करीब 50 हैक्टेयर से अधिक जमीनों का हस्तांतरण गैर आदिवासियों के नाम किया गया। जानकारी के अनुसार सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 मामले का खुलासा हुआ है। 2013 से 2015 के बीच जमीनों को बेचने की अनुमति देकर गैर आदिवासियों को बेची गई थी।
सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत आदिवासी जमीनों को नियम विरुद्ध बेचे जाने का खुलासा होने के बाद 2015 में भोपाल के भुवनेश्वर प्रसाद मिश्रा ने इसकी शिकायत लोकायुक्त में की थी। लोकायुक्त की जबलपुर संभाग स्तरीय सतर्कता समिति शिकायत पर जांच कर रही थी। जांच समिति ने 13 फरवरी 2023 को जांच रिपोर्ट लोकायुक्त को सौंपी, जिसमें इस पूरे मामले को एक सुनियोजित षड्यंत्र और सामूहिक भ्रष्टाचार बताया और इसमें शामिल चार आईएएस अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया है।
आदिवासियों की जमीनों पर गैर आदिवासी को बेचे जाने वाले चार आईएएस अधिकारियों पर लोकायुक्त ने एफआईआर दर्ज की है। आईएएस अफसर दीपक सिंह, ओमप्रकाश श्रीवास्तव, बसंत कुर्रे और एमपी पटेल 2006 से 2011 के बीच जबलपुर जिले में अपर कलेक्टर के पद पर थे। इसी दौरान आदिवासियों की जमीनें हेरफेर कर बेची गईं। कुल 13 प्रकरणों में से सर्वाधिक 7 अनुमतियां आईएएस अधिकारी बसंत कुर्रे ने जारी की थीं। इसके बाद 3 मामलों में ओमप्रकाश श्रीवास्तव ने, 2 मामलों में एमपी पटेल और 1 मामले में दीपक सिंह ने गैर आदिवासियों को जमीन हस्तांतरण की अनुमति दी थी।
लोकायुक्त की एफआईआर के मुताबिक मध्य प्रदेश लैंड रेवेन्यू कोड की धारा 165 का खुला उल्लंघन कर यह जमीनें बेची गईं। ज्यादातर जमीनों को जबलपुर के मीना अग्रवाल का परिवार और एक सत्यपाल दरियानी के परिवार ने खरीदा था। वहीं जमीन हस्तांतरण के इस मामले में चारों आईएएस अधिकारियों ने कानून के उल्लंघन के साथ-साथ पद का दुरुपयोग किया।
पूरे षड्यंत्र में कुछ आदिवासी भी शामिल थे। जिसमें मांगीलाल मरावी, जगदीश सिंह गोंड, समलू सिंह मरावी नाम के यह आदिवासी पहले छोटे-छोटे गरीब आदिवासियों की जमीन खुद खरीदते थे। एक-डेढ़ साल बाद कभी आर्थिक तंगी और कभी जमीन को एक हिस्से को बंजर बताकर दूसरे हिस्से को उपजाऊ बनाने के लिए पैसे की जरूरत बताकर जमीन बेचने की मंजूरी का आवेदन अपर कलेक्टर के यहां लगाते थे। जमीन खरीद-फरोख्त में शामिल चारों ही अपर कलेक्टर जमीनें बेचने की अनुमति देते थे। बाद में यही लोग मीना अग्रवाल और सत्यपाल दरयानी के परिवार के सदस्यों को जमीन बेच देते थे।
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