लोकसभा चुनाव 2024ः दलित-आदिवासियों की 60 प्रतिशत जमीन पर मनबढ़ों का कब्जा, फिर भी यह चुनावी मुद्दा नहीं!

चुनाव में आदिवासी इलाकों में जाकर कांग्रेस-भाजपा के प्रत्याशी अपनी-अपनी सरकारों के वह काम गिना रहे हैं जो आदिवासियों के लिए किए गए, लेकिन उनकी जमीनों पर कब्जे को हटाए जाने की बात राजनीतिक पार्टियां नहीं कर रही हैं।
सांकेतिक फोटो।
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भोपाल। मध्य प्रदेश में 22 साल पहले दलित-आदिवासियों को दिए गए भूमि पट्टों में आज भी ज़्यादातर लोग भूमि पर कब्जे के इंतजार में हैं। तत्कालीन कांग्रेस की दिग्विजय सिंह सरकार में नदी, नाले, पहाड़ जंगल सबका पट्टा बांट दिया गया था, लेकिन जब पट्टे धारी मौके पर पहुंचे तो ठगे से रह गए। क्योंकि उन ज़मीनों पर कब्जा था। सरकारें बदल गईं, लेकिन पट्टे की जमीन पर कब्जा नहीं मिला पाया। आज इन पट्टों पर कब्जा को लेकर दर्जनों विवाद सामने आ रहे है, कुछ में तो दलित-आदिवासियों की हत्या तक कर दी गई। 

भाजपा की डबल इंजन सरकार दलित-आदिवासियों के अधिकारों पर गंभीर होने का दावा कर रही है। लेकिन इन सब से इतर जमीनी हकीकत यह स्पष्ट कर रही हैं कि वंचित वर्ग के लोग आज भी अपने हकों को पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। लोकसभा चुनाव 2024 में आदिवासी इलाकों में जाकर कांग्रेस-भाजपा के प्रत्याशी अपनी-अपनी सरकारों के वह काम गिना रहे हैं, जो आदिवासियों के लिए किए गए। लेकिन की उनकी जमीनों पर कब्जे को हटाए जाने की बात राजनीतिक पार्टियां नहीं कर रही हैं। 

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मध्य प्रदेश: पट्टे पर मिली जमीन पर कब्जा करने के लिए दलित परिवार पर जानलेवा हमला, 8 घायल, एक की मौत

दरअसल, 1999 से 2002 के बीच मध्य प्रदेश सरकार ने निर्धन भूमिहीन दलित/आदिवासी परिवारों के लिए उनके ही गाँव की सरकारी चरनोई जमीन में से खेती के लिए जमीन के पट्टे बाँटे थे। प्रदेश के 344329 अनुसूचित जाति, और अनुसूचित जनजाति परिवारों को 698576 एकड़ जमीन आवंटित की गई थी। वंचित वर्ग के अधिकारों के लिए काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं का दावा है कि 22 वर्ष बाद भी करीब 60 प्रतिशत लोग पट्टे की जमीन पर काबिज नहीं हो पाए। 

फरवरी 2013 में तत्कालीन राजस्व मन्त्री करण सिंह वर्मा ने कांग्रेस विधायक केपी सिंह के प्रश्न के जवाब में बताया था कि प्रदेश के कई जिलों में पट्टेधारकों को उनकी जमीन पर काबिज नहीं कराया जा सका है। हालाँकि उन्होंने 60 प्रतिशत का ही आँकड़ा विधानसभा में बताया था लेकिन प्रदेशभर में सर्वे करने वाली संस्था भू-अधिकार अभियान का दावा है कि 70 प्रतिशत परिवार पट्टा–पावती हाथ में लिए इन्तजार कर रहे हैं न जाने कब इनके भाग जागेंगे।

जिम्मेदारी से भाग रहा प्रशासन!

सरकार ने जमीन के पट्टे जब दलित आदिवासियों को सौंपे थे तभी घोषणापत्र में स्पष्ट उल्लेख किया था कि इन्हें अपनी जमीन पर काबिज करने का पूरा जिम्मा प्रशासन का होगा और जिला कलेक्टर इसकी मोनिटरिंग करेंगे। बावजूद इसके प्रदेश में कहीं कोई कार्यवाही नहीं हो पा रही। सबसे ज्यादा बुरी स्थिति छतरपुर, टीकमगढ़, दमोह, उज्जैन, देवास, शाजापुर, नीमच, मंदसौर, विदिशा, सागर, गुना और इंदौर जिलों की है। यहाँ पर सर्वाधिक पट्टों की जमीन विवादों में घिरी हैं।  

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आदिवासी अधिकारों के लिए काम कर रहे एडवोकेट सुनील कुमार आदिवासी ने कहा कि प्रदेश में आदिवासियों की पट्टे की ज़मीनों पर कब्जा है। इसका कारण राजस्व विभाग का सीमांकन नहीं करना है। पीड़ित परिवार तहसीलदार, एसडीएम को शिकायत भी करते है, लेकिन शिकायतों को यह कह कर निराकरण कर दिया जाता है कि मौके पर कब्जा नहीं मिला। जब आदिवासी परिवार उक्त जमीन पर खेती करने जाता है तो दबंग उन्हें वहां हल चलाने से रोक देते हैं। सुनील ने कहा- "मध्य प्रदेश में हज़ारों एकड़ पट्टे की जमीन प्रभावशाली लोगों के के कब्जा होने के कारण विवाद में फसी हैं।"

प्रशासन की लापरवाही में पिस रहा दलित-आदिवासी:  कांग्रेस 

दलित-आदिवासियों पर हो रहे अत्याचार के मामले में कांग्रेस ने भाजपा सरकार को जिम्मेदार बताते हुए प्रशासन पर लापरवाही बरतने का आरोप लगाया है। द मूकनायक प्रतिनिधि से बातचीत में आदिवासी कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष रामू टेकाम ने कहा- "प्रशासन की लापरवाही के कारण दलित-आदिवासियों की जमीन कब्जा मुक्त नहीं हो रही, प्रशासन ठीक से काम करे तो निरीक्षण कर कब्जा हटाएं जा सकते हैं। सरकार का भी इस ओर ध्यान नहीं है इसलिए वंचित वर्ग के खिलाफ घटनाएं हो रही हैं।"

यह घटनाएं आईं सामने

केस-1 घटना 3 जुलाई 2022 की है, मध्य प्रदेश के गुना जिले के बमोरी थाना इलाके के धनोरिया गांव में एक आदिवासी महिला को कुछ लोगों ने जिंदा जलाने की कोशिश की थी। आरोपियों ने खेत पर काम कर रही महिला के ऊपर डीजल डालकर उसमें आग लगा दी थी, जिससे महिला 70 से 80 फीसदी  झुलस गई थी। जिसके उपचार के दौरान उसकी मौत हो गई थी।  

यह घटना जमीनी विवाद के चलते हुई थी, पीड़ित आदिवासी परिवार की पट्टे की जमीन पर आरोपी कब्जा करना चाहते थे जब महिला ने विरोध किया तो उस पर डीजल डालकर आग लगा दी। आदिवासी महिला को जिंदा जलाने की कोशिश की गई है थी।  पीड़िता के पति अर्जुन ने बताया था, कि गांव के ही कथित आरोपी हनुमत, प्रताप और श्याम किरार उनकी जमीन पर कब्जा करने के लिए दबाव बना रहे हैं। शनिवार शाम को पता लगा कि आरोपी द्वारा जमीन की जुताई की जा रही है, सूचना मिलने पर महिला रामप्यारी खेत पर पहुंच गई और उसके बाद आरोपियों ने महिला पर डीजल डालकर उसे जिंदा जला दिया था। 

केस-2 साल 2023 में एक और घटना पेश आई जिसमें अनुसूचित जाति परिवार के पट्टे की जमीन पर कब्जा करने की कोशिश की गई। परिवार के सदस्यों के इतनी बेरहमी से पीटा गया कि एक व्यक्ति को मौत हो गई थी। मामला इंदौर जिले के गौतमपुरा क्षेत्र के देपालपुर के मुंडला कलमा गांव के दलित परिवार का है। यहां मायाराम का परिवार रहता है। मायाराम अनुसूचित जाति समाज के व्यक्ति है और खेती किसानी करते है। यह घटना 16 मार्च 2023 की है। परिवार के सभी सदस्य सुबह साढ़े 10 बजे कांकवा गांव में अपने खेत गेहूं की फसल काटने गए थे। यही आरोपियों ने परिवार पर लाठी-डंडों से हमला कर दिया जिसके बाद एक व्यक्ति की मौत हो गई। 

केस- 3 शिवपुरी में मनबढ़ों ने एक दलित परिवार की डेढ़ बीघा कृषि भूमि पर 25 साल से कब्जा कर रखा है। यह घटना अप्रेल 2023 की है। यहां भी दलित परिवार के पट्टे की जमीन पर कब्जा के कारण विवाद हुआ था। जानकारी के मुताबिक मामला सिरसौद थाना के खरई भाट गांव का था। परिवार ने जमीन का सीमाकंन कराया तो उनकी डेढ़ बीघा जमीन कब्जे में पाई गई थी। लेकिन मनबढ़ दलित परिवार को कब्जा नहीं दे रहे थे। उल्टा परिवार के साथ मारपीट कर दी। पीड़ित परिवार ने सिरसौद पुलिस में शिकायत कराई लेकिन वहां उनकी सुनवाई नहीं हुई। इसके बाद उन्होंने पहले एसपी बाद में कलेक्ट्रेट परिसर में धरने पर बैठ गए थे। 

केस- 4 सीहोर जिले के बुधनी तहसील के अंतर्गत आने वाले होड़ा गांव की 70 वर्षीय बुजुर्ग महिला अपनी जमीन को मनबढ़ के कब्जे से मुक्त कराने के लिए भटक रही है। आदिवासी सुमन बाई अपने परिवार के साथ होडा गाँव में रहती हैं। भूमिहीन होने के कारण सरकार ने वर्ष 2010-11 में उन्हें कृषि भूमि के लिए 1.272 हेक्टेयर जमीन का पट्टा उनके गांव होड़ा में ही दिया था। 

उस कृषि भूमि का पट्टा क्रमांक 937923 है और खसरा नंबर 44 / 6 है। मगर अफसोस की बात यह है कि 70 वर्षीय सुमन बाई का परिवार और वह खुद आज तक उस जमीन पर कभी फसल नहीं उगा पाईं, कभी उस जमीन का फायदा नहीं ले पाई। सुमन बाई को सरकार से जब पट्टा मिला तो वह बेहद खुश थी कि अब उनके परिवार का खेती करके गुजारा आराम से हो पायेगा। जब जमीन का पट्टा सुमन बाई को मिला उसके बाद ही उस पर कब्जा हो चुका था। अक्टूबर 2023 में सुमन बाई ने कलेक्टर के यहां जनसुनवाई में शिकायत की, लेकिन प्रशासन ने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि उक्त भूमि पर मौके पर कोई कब्जा नहीं मिला।

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