राजस्थानः करौली आदिवासी बालिका कथित रेप व हत्या मामले में पुलिस की जांच से असंतुष्ट परिजन क्यों कर रहे है CBI जांच की मांग?

करौली पुलिस ने आदिवासी नाबालिग के मौत के मामले में माता-पिता और मामा को ही भेज दिया जेल,पुलिस की थ्योरी और अधिकारियों से पत्राचार के तथ्य विरोधाभासी।
करौली के हिण्डौन में घटनास्थल का दिखाता एक बच्चा (फाइल फोटो)।
करौली के हिण्डौन में घटनास्थल का दिखाता एक बच्चा (फाइल फोटो)।
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जयपुर। राजस्थान के करौली जिले के हिंडौन सिटी में 9 वर्ष की मूकबधिर बालिका के साथ हुई दिलदहला देने वाली घटना का पुलिस ने खुलासा करते हुए उसके माता-पिता और मामा को जेल भेज दिया, लेकिन पुलिस की इस कार्रवाई को बालिका के अन्य परिजनों ने नकार दिया है। आरोप है कि पुलिस मामले को उलझाकर आरोपी को बचाना चाहती है।

उल्लेखनीय है कि मूक बधिर बालिका बुरी तरह झुलसी हालत में गांव के पास ही एक खेत में मिली थी, जिसकी इलाज के दौरान मौत हो गई थी। परिजनों ने रेप के बाद सबूत मिटाने के लिए जलाने का आरोप लगाया था।

इस मामले में जांच रिपोर्ट, पीड़िता के बयान और पुलिस द्वारा जारी की गई प्रेस विज्ञप्ति को लेकर विरोधाभासी तथ्यों पर सवाल उठाये हैं। परिजनों का कहना है पुलिस हर बार अलग-अलग तथ्य पेश करके मामले में लीपापोती करने की कोशिश कर रही है। पीड़ित परिवार के अन्य सदस्य आज भी आरोपी के खिलाफ कार्रवाई किये जाने की मांग को लेकर धरने पर बैठे हैं और मामले की सीबीआई (केन्द्रीय जांच ब्यूरो) जांच की मांग कर रहे है।

जानिए पुलिस ने खुलासे में क्या दावा किया है ?

पुलिस ने मामले का खुलासा करते हुए बताया कि 'पीड़िता की उसकी मां से लड़ाई होने के उपरान्त गुस्सा होकर भाग कर स्वयं को ज्वलनशील पदार्थ (पैट्रोल) से जलाने की कोशिश की। इसके कारण पीड़िता को बर्न इंजरी (जलने पर होने वाला घाव) हुई। मां द्वारा इस तथ्य (बात) को छुपाकर मौके से संदिग्ध पैट्रोल वाली बोतल को लाकर अपने घर में छिपा दिया गया और पुलिस को घटना के बाद इस सम्बंध में कोई भी जानकारी नहीं दी गई। दो दिन उपरान्त सोच समझकर दो अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया। पीड़िता के मामा द्वारा पीड़िता को ललित शर्मा की 9 वर्ष पुरानी फोटो पहचान करवाकर इस केस में ललित को आरोपी बनाने की कोशिश की गई।'

वहीं इस मामले में पीड़िता के माता-पिता को जेल भेजने के बाद उसके चाचा ने द मूकनायक से बताते हैं- 'वह छोटी बच्ची थी,पेट्रोल कहां से लेकर आएगी इस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। पुलिस ने कह दिया कि मां से लड़ाई के बाद बच्ची ने पेट्रोल डालकर खुदको आग लगा ली,यह बात पूरी तरह झूठ है।'

द मूकनायक ने पीड़िता के जले हुए निशानों और मानसिक स्थिति को लेकर फॉरेंसिक एक्सपर्ट ( ऐसा व्यक्ति,जो अपराध स्थल पर एकत्र किए गए साक्ष्य का विश्लेषण/ जांच करते हैं) डॉक्टर अमरनाथ मिश्र पीड़िता के जले हुए शरीर को देखकर और परिजनों द्वारा लगाए गए आरोपों को सुनकर कहते हैं- 'जिस तरह के जलने के निशान पाए गए हैं,वह तस्वीरें देखकर पता लग रहा है कि बच्ची के स्तन को जलाने की कोशिश की गई है। इसके साथ ही उसके कमर से लेकर घुटने तक के जले हुए हिस्से को देखकर लगता है कि इस घटना को किसी अन्य ने अंजाम दिया है। यह एक से अधिक व्यक्ति का काम है। सम्भवतः पाक्सो केस से बचने के लिए टार्गेटेटड (जानबूझकर) जगह को जलाया गया है। इस कारण भी है क्योंकि पीड़िता के कुछ विशेष अंग ही जले हैं।'

फोरेंसिक एक्सपर्ट कहते हैं-'यदि यह कहा जाए कि पीड़िता ने खुद आत्मदाह (खुद को जलाने की कोशिश करना) की कोशिश की,तो यह भी संदेह पैदा करता है। एक दस साल की बच्ची पेट्रोल डालकर खुद को आग लगाने का सोच नहीं सकती। सम्भवतः ऐसा होता भी है तो वह सिर या कंधे से पेट्रोल डालेगी। जिससे उसकी छाती जल जायेगी। सिर के बाल भी जल जाएंगे। वहीं तस्वीरों में साफ दिख रहा है, उसके तलवे आंशिक (थोड़ा जला होना) रूप जले हैं। कमर से नीचे और घुटनों तक जलने के निशान हैं। पीड़िता यदि खुद ऐसा करती तो उसका पैर के पंजे में तलवा नहीं जलता और पंजे का ऊपरी भाग जल जाता,क्योंकि शरीर से बहकर पेट्रोल पैर के पजों तक जाता और वह भीग जाते,आग लगाने से उसमें आसानी से आग पकड़ लेती और वह जल जाते। लेकिन तस्वीरों में ऐसा नहीं दिख रहा है। पंजे का ऊपरी हिस्सा नहीं जला है। जबकि पंजा आंशिक रूप से जला हुआ है।'

आगे पुलिस ने मामले का खुलासा करते हुए दावा किया है -'मेडिकल बोर्ड (डाक्टरों का समूह) के फाइनल ओपिनियन (अंतिम निष्कर्ष/अंतिम दावा) के अनुसार पीड़िता के मृत्यु के लगभग 24 घण्टे के बीच Organophosphorous Insecticide कीटनाशक (फसलों में डाला जाने वाला रसायन,यह बच्चों के लिए हानिकारक होता है) का सेवन पीड़िता को कराया गया। इस जहर के सेवन के उपरान्त पीड़िता की सांस फूलने पर दिनांक 19 मई को डॉक्टर्स द्वारा ऑक्सीजन सपोर्ट लगाने की औपचारिक सहमति मांगी गई, लेकिन उद्देश्यानुसार मामा राजेश द्वारा माता-पिता से विचार-विमर्श कर लिखित में सहमति से इनकार किया गया। जिसके चंद घण्टों उपरान्त ही 19-20 मई की मध्य रात्रि को पीड़िता की मृत्यु हो गई।'

पुलिस ने कहा- "करंट लगने से जलने की बात जांच में सामने आई"

यह घटना 09 मई 2024 को हुई थी। सूत्रों के मुताबिक़ इस पूरी घटना से संबंधित एक विस्तृत रिपोर्ट पुलिस ने अतिरिक्त मुख्त सचिव गृह विभाग को भेजी थी। रिपोर्ट में पुलिस ने बताया था कि घटना के बाद सीओ गिरधर सिंह और थानेदार रामकिशन यादव घटनास्थल पर गए थे। उस दौरान पुलिस को घटनास्थल से मिले 'कपड़ों में किसी भी प्रकार के रासायनिक पदार्थ की गंध' आने से इंकार किया था। इस रिपोर्ट में पुलिस का दावा था कि अधिकारियों ने आस-पास मौजूद लोगों से बातचीत कि थी जिसमे लोगों ने 'करंट लगने से जलने की आशंका' जताई थी।

इस मामले में फोरेंसिक एक्सपर्ट डॉक्टर अमरनाथ मिश्र कहते हैं-' जले हुए निशानों को देखकर बिलकुल नहीं लगता है यह बिजली से जलने के निशान है। बिजली से जब कोई जलता है तो इसका एक नियम है। इस तरह के हादसे में 'Entry' (एक तरफ से करंट का घुसना/प्रवेश होना/दाखिल हो जाना) और 'Eject' (दूसरे सिरे से निकलना) होता है। एक तरफ से शरीर में करंट घुसता है और दूसरी तरफ से निकल जाता है। इसलिए जले हुए निशानों से यह बिलकुल नहीं कहा जा सकता कि यह बिजली से जलने के निशान हैं।

पुलिस ने एक्सपर्ट बुलाकर करवाए बयान

सूत्रों के मुताबिक़ गृह विभाग को भेजी गई रिपोर्ट में दावा किया गया है कि चूंकि बच्ची मूक और बधिर (ऐसा व्यक्ति जो बोल और सुन नहीं सकता) थी इसलिए क्षेत्रीय पुलिस ने 'पुलिस बधिर सहायता केंद्र,यादगार भवन पुलिस कंट्रोल रूम अजमेरी गेट जयपुर से स्वयं पत्राचार किया जिसके बाद एक्सस्पर्ट आसिफा और मनोज भारद्वाज ने पीड़िता से सीआरपीसी (कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर (Code of Criminal Procedure) के तहत 161 का बयान (सीआरपीसी 1973 के सेक्शन 161 को आप इस तरह से समझ सकते हैं कि किसी भी मामले में पुलिस द्वारा की जाने वाली जांच है। सेक्शन 161 के तहत पुलिस केस के सभी गवाहों और सबूतों की जांच और उनका परीक्षण करती है। इस जांच के दौरान पुलिस मामले के गवाहों के बयान भी लेती है। धारा-161 के तहत पुलिस के समक्ष दिये गए बयान को शपथ नहीं माना जाता है और ना ही इस बयान के लिए आपको जिरह पर परखा जाता है। इस तरह के बयान को ठोस सबूत नहीं माना जाता है। लेकिन मृत्यु हो जाने के दशा में यही बयान कलमबन्द हो जाता है) दर्ज करवाया।

इस बयान की वीडियोग्राफी भी कराई गई है। जिसमें पीड़िता ने ललित शर्मा नाम के युवक द्वारा पेट्रोल से जलाये जाने की पुष्टि की। पीड़िता ने बिजली के करंट लगने या अन्य किसी कारण जलने से मना किया था।

सूत्रों के मुताबिक़ 14 मई 2024 को पीड़िता के बयान लिए गए थे। 164 के बयान (सीआरपीसी की धारा 164 के तहत इकबालिया बयान दर्ज किया जाता है। कोई मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट या ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट इन्हें दर्ज करा सकता है। बयान दर्ज कराने से पहले मजिस्ट्रेट बताते हैं कि व्यक्ति के लिए ऐसा इकबालिया बयान दर्ज कराना अनिवार्य नहीं है। यह पूरी तरह से उस व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह बयान दर्ज कराए या नहीं। 164 के तहत दर्ज बयान की अहमियत है। लेकिन इन्हें ठोस सबूत नहीं माना जाता है। सिर्फ पुष्टि के लिए इन्हें इस्तेमाल किया जाता है।) लेने से पहले ही उसकी 19 मई को मौत हो गई।

आरोपी की दो किमी दूर पाई गई मौजूदगी

इस मामले में अतिरिक्त मुख्त सचिव गृह विभाग को पुलिस द्वारा भेजी गई, रिपोर्ट में दावा किया गया है कि आरोपी घटनास्थल से मात्र दो किमी कि दूरी पर ही मौजूद था।

पोस्टमॉर्टम करने वाले पैनल ने कहा इंफेक्शन से हुई मौत

सूत्रों के मुताबिक़ गृह विभाग को भेजी गई रिपोर्ट में कहा गया है 20 मई 2024 को पीड़िता की मौत हो गई थी। शव का पोस्टमार्टम डाक्टरों के पैनल (डाक्टरों का समूह) से कराया गया। पोस्टमॉर्टम के मुताबिक़ डाक्टरों ने लिखा है-' (We the members of the medical board are of opinion that cause of death is “SEPTICCAMEIA”. Brought about as a result of secondary infection consequent to ante mortem burns & there is 60-65% of total burnt body surface area which is sufficient to cause of death in ordinary course of nature . Finding are suggestive of penetration of vaginal orifice. However for opinion regarding recent sexual intercourse, above mentioned samples are collected, preserved ,sealed , labelled ,and handover to accompanying police person for FSL examination. Final opinion regarding nature of burn will be given after concerned FSL report.’) हम मेडिकल बोर्ड के सदस्यों की राय है कि मृत्यु का कारण "सेप्टिककैमिया" (जलने के बाद घावों में होने वाला संक्रमण,बैक्ट्रिया) है। यह मृत्यु पूर्व जलने के परिणामस्वरूप होने वाले द्वितीयक संक्रमण के परिणामस्वरूप होता है और कुल जले हुए शरीर की सतह का 60-65% क्षेत्र होता है जो प्रकृति के सामान्य क्रम में मृत्यु का कारण बनने के लिए पर्याप्त है। संभोग के संकेत है। हालाँकि, हाल के संभोग के संबंध में राय के लिए, उपरोक्त नमूने एकत्र किए जाते हैं, संरक्षित किए जाते हैं, सील किए जाते हैं, लेबल लगाए जाते हैं और एफएसएल जांच के लिए साथ आए पुलिस व्यक्ति को सौंप दिए जाते हैं। जलने की प्रकृति के बारे में अंतिम राय संबंधित एफएसएल रिपोर्ट के बाद दी जाएगी।

माता-पिता को जेल भेजने पर पुलिस ने यह किया दावा

पुलिस ने शुरूआती जांच में दावा किया था कि बच्ची के कपड़ों से किसी भी प्रकार कि रासायन की गंध नहीं आ रही थी। वहीं पुलिस ने कुछ लोगों से पूछताछ की थी,जिसमे पुलिस का दावा था कि लोगों ने जलने का कारण करंट लगना बताया गया था। वहीं पुलिस द्वारा मामले का खुलासा करते हुए बताया गया कि एफएसएल रिपोर्ट में पुलिस को कपड़ों, स्किन व हैयर सैम्पल (बालों से लिए गया सैम्पल) पर पेट्रोलियम हाइड्रोकार्बन (गाड़ी चलाने के लिए इस्तेमाल होने वाला ईंधन) और हाइड्रोक्लोरिक एसिड (शौचालय में प्रयोग करने के तेज़ाब/प्रयोगशाला में प्रयोग होने वाला रसायन) के ट्रेस पाए गए हैं। हलांकि पुलिस एफ०एस०एल० में रेप की पुष्टि नहीं हुई है। वहीं एफएसएल रिपोर्ट में मौत का कारण कीटनाशक जहर का सेवन बताया है।

रेप के मिट गए होंगे सबूत

एफएसएल रिपोर्ट में रेप न होने की पुष्टि हुई है। इस मामले में फोरेंसिक एक्सपर्ट अमरनाथ मिश्र कहते हैं-'यदि रेप जैसे गंभीर आरोप लगे थे तो मेडिकल टीम को तत्काल इससे संबंधित साक्ष्य संकलित करने चाहिए थे। इस मामले में पीड़िता को जलाया गया था। यदि एफएसएल के लिए स्लाइड पोस्टमॉर्टम के समय बनाई गई है तो इलाज के दौरान हुई पीड़िता की साफ़-सफाई के दौरान सभी साक्ष्य मिटने की संभावना है। वहीं घटना के 10 दिन बाद स्लाइड बनाकर भेजने पर भी रिपोर्ट प्रभावित होगी और रेप की पुष्टि नहीं हो पाएगी।

पीड़िता को जहर दिए जाने के मामले में धरने पर बैठे परिजनों ने दावा किया है पीड़िता की जब मौत हुई उसके 24 घंटे पहले से ही उसके माता-पिता घर पर मौजूद थे। पीड़िता पुलिस अभिरक्षा में थी और डाक्टर इलाज कर रहे थे।

एंटी रेप एक्टिविटिस्ट ने भी पुलिस पर उठाये सवाल

पूरे मामले को लेकर एंटी रेप एक्टिविटिस्ट योगिता भयाना ने भी पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठाये हैं। उन्होंने अपने सोशल मीडिया एक्स अकाउंट पर किये एक पोस्ट में लिखा है- 'ये तो राजस्थान सरकार की खुली गुंडागर्दी है...राजस्थान के करौली जिले में हाल ही में एक मासूम मूक बधिर लड़की का बलात्कार कर उसे जला दिया गया। बच्ची की मौत के बाद भी पुलिस और प्रशासन ने आरोपियों को नहीं पकड़ा। सत्ताधारी पार्टी से जुड़े होने वाला आरोपी आज भी खुलेआम घूम रहा है। सरकार अपनी आंख बंद कर सो रही है और ऐसे आरोपियों को संरक्षण दे रही है। जिस पीड़िता ने आरोपी को पहचाना उसे छोड़कर पुलिस ने माता-पिता और परिजन को जेल में डाल दिया। ये कहा का न्याय है…राजस्थान सरकार के खिलाफ तमाम संगठन आवाज उठा रहे है, लेकिन सरकार के कान पर जूं नहीं रेंग रही। पुलिस खुलेआम गुंडागर्दी कर रही है। परिजन,माता-पिता और हम जैसे संगठनों को लगातार धमका रही है,मेरी आप सभी अपील है कि राजस्थान सरकार और राजस्थान पुलिस की गुंडागर्दी के खिलाफ एक होकर हम सबको लड़ना होगा,एक मासूम को न्याय दिलाना होगा !!

एसपी ने बताई एक अलग कहानी

इस पूरे मामले में द मूकनायक ने एसपी करौली बृजेश उपाध्याय से सभी पहलुओं पर एक बार फिर बातचीत की। एसपी ने इस मामले में पुलिस के खुलासे और गृह विभाग को भेजी गई रिपोर्ट से अलग एक नई काहनी बताई है। एसपी बृजेश उपध्याय ने द मूकनायक को बताया - 'नाबालिग बच्ची को उसकी मां ने कपड़े उतारकर जलाया है। बच्ची की मां का किसी अन्य व्यक्ति के साथ अवैध संबंध था। इसकी जानकारी बच्ची को होने के कारण बच्ची की उससे लड़ाई हुई। जिसके बाद बच्ची की मां ने यह कदम उठाया है।' - प्रेम प्रसंग और बच्ची को जलाने के मामले शामिल व्यक्ति के विषय में प्रश्न करने पर एसपी ने पूरी बात चार्जशीट में दाखिल किये जाने की बात की है। वहीं उस व्यक्ति की गिरफ्तारी के विषय में भी एसपी ने कोई जानकारी देने से मना कर दिया।

इस मामले में वरिष्ठ पत्रकार और आदिवासी एक्टिविटिस्ट हंसराज मीणा द मूकनायक से कहते हैं- ' इस मामले में सीबीआई जांच के लिए पीड़ित परिवार लगातार मांग कर रहा है। मेरी भी यही मांग है कि मामले में सीबीआई जांच हो ताकि पूरा मामला खुलकर सामने आ सके।"

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