धर्म बदला तो एसटी स्टेटस नहीं- जनजाति सुरक्षा मंच, मांग गैर वाजिब, आदिवासी पहले- बाद में आया धर्म: विरोधी

18 जून को जनजाति समाज उदयपुर में भरेगा डीलिस्टिंग की हुंकार, 1.5 लाख जुटेंगे
हुंकार महारैली में भाग लेने के लिए गांव गांव बांटे जा रहे हैं पत्रक
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उदयपुर। जनजाति समाज के हक और उनकी संस्कृति को बचाने के ध्येय से जनजाति सुरक्षा मंच राजस्थान के आह्वान पर  18 जून को उदयपुर में हुंकार डीलिस्टिंग महारैली का आयोजन किया जाएगा जिसमें करीब डेढ़ लाख लोग जुटेंगे। आयोजन की तैयारियां युद्ध स्तर पर जारी हैं। महारैली के माध्यम से यह मांग उठाई जाएगी कि जनजाति समाज के जिस व्यक्ति ने अपना धर्म बदल लिया है, उनका एसटी का स्टेटस हटाया जाए और एसटी के नाते संविधान प्रदत्त सुविधाएं नहीं दी जाएं। महारैली में सम्पूर्ण राजस्थान का जनजाति समाज पहुंचेगा और एक स्वर में धर्मपरिवर्तन कर लेने वाले जनजाति परिवारों को संविधान प्रदत्त विशेष प्रावधानों से हटाने की हुंकार भरेगा।

शहर में पांच जगह से रैलियां शुरू होंगी। यह रैलियां विभिन्न मार्गों से होते हुए गांधी ग्राउण्ड पहुंचेगी। महारैली में पूरे राजस्थान से जनजाति समाज के लोग अपनी पारम्परिक वेशभूष एवं वाद्ययंत्रों के साथ एकत्र होंगे। महारैली को लेकर राजस्थान के हाड़ौती, मेवाड़, वागड़, कांठल, भोमट और मारवाड़ क्षेत्र में जागरण-सम्पर्क का दौर जारी है। उदयपुर शहर में भी जनजाति बंधु-बांधवों के आगमन पर उनके भव्य स्वागत की तैयारियां की जा रही हैं। 

इसलिए हो रही है हुंकार रैली

जनजाति सुरक्षा मंच के संरक्षक व सामाजिक कार्यकर्ता भगवान सहाय ने द मूकनायक को बताया कि डी-लिस्टिंग महारैली जनजाति समाज के अधिकारों की रक्षा के लिए आहूत की जा रही है। धर्म परिवर्तन कर चुके जनजाति वर्ग के लोगों से एसटी का स्टेटस वापस लेने और उन्हें आरक्षण लाभ से वंचित करने के उद्देश्य से आयोजन हो रहा है। जब अनुसूचित जाति (एससी) वर्ग के लिए संविधान में यह नियम लागू है तो अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्ग के लिए भी यह प्रावधान संविधान में जोड़ा जाना चाहिए। धर्म बदलने वाले अपनी चतुराई से दोहरा लाभ उठा रहे हैं, जबकि मूल आदिवासी अपनी ही मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझ रहा है। 

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1968 में हुई थी डिलिस्टिंग की कवायद, लोकसभा भंग होने से मिशन अधूरा

जनजाति सुरक्षा मंच राजस्थान के प्रदेश संयोजक लालूराम कटारा ने बताया कि इस संबंध में सन 1968 में डॉ. कार्तिक उरांव, जनजाति नेता/पूर्व सांसद ने, इस संवैधानिक/कानूनी विसंगति को दूर करने के प्रयास किए एवं विस्तृत अध्ययन भी किया। जनजाति नेता डॉ. कार्तिक उरांव ने 1968 में किए अपने अध्ययन में पाया कि 5 प्रतिशत धर्मांतरित ईसाई, अखिल भारतीय स्तर पर कुल एसटी की लगभग 70 प्रतिशत नौकरियां, छात्रवृत्तियां एवं शासकीय अनुदान ले रहे, साथ ही प्रति व्यक्ति अनुदान आवंटन का अंतर उल्लेखनीय रूप से गैर-अनुपातिक था।  इस प्रकार की मूलभूत विसंगति को दूर करने के लिए संसद की संयुक्त संसदीय समिति का गठन हुआ जिसने अनुशंसा की कि अनुच्छेद 342 से धर्मांतरित लोगों को एसटी की सूची से बाहर करने के लिए राष्ट्रपति के 1950 वाले आदेश में संसदीय कानून द्वारा संशोधन किया जाना जरूर है। इस मसौदे पर तत्कालीन 348 सांसदगण का समर्थन भी प्राप्त हुआ था। परंतु, सन 1970 के दशक इस हेतु विचाराधीन मसौदे पर कानून बनने से पूर्व ही लोकसभा भंग हो गई। 

धर्मांतरित लोग उठा रहे हैं अनुसूचित जनजातियों को प्रदत्त सुविधाओं को लाभ

सन 2001 की जनगणना और भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद के सदस्य एंथ्रोपोलोजिस्ट पद्मश्री डॉ. जेके बजाज का 2009 का अध्ययन भी इस गैर-आनुपातिक और दोहरा लाभ हड़पने की समस्या की विकरालता को उजागर करते हैं कि धर्मांतरित ईसाई एवं मुसलमान अनुसूचित जनजातियों के अधिकांश सुविधाओं को हड़प रहे हैं और दोहरा लाभ ले रहे हैं। धर्मान्तरण के कारण गांव-गांव में पारिवारिक समस्याएं भी आ रही हैं। कहीं-कहीं बहन भाई के बीच राखी का त्योहार खत्म हो गया है। इन सभी विडम्बनाओं का समाधान संविधान के आर्टिकल 342 में संशोधन है जिसके लिए पूरे देश में जनजाति समाज एकजुट हुआ है और अन्य राज्यों में राज्यस्तरीय डीलिस्टिंग रैलियों के बाद अब 18 जून को राजस्थान में हुंकार डीलिस्टिंग महारैली आहूत की गई हैं।

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रैली को लेकर जागरूकता अभियान

महारैली के संयोजक नारायण लाल गमेती ने द मूकनायक को बताया कि डीलिस्टिंग क्यों जरूरी है। "इसे लेकर युवाओं में जागरूकता बढ़ रही है। जागरूक जनजाति युवा गांव-गांव, ढाणी-ढाणी जाकर समझा रहे हैं कि सिर्फ संविधान प्रदत्त विभिन्न प्रावधानों के लिए ही नहीं, बल्कि जनजाति संस्कृति के भविष्य के लिए भी डीलिस्टिंग अतिआवश्यक है। सोशल मीडिया पर भी विभिन्न नारों के साथ जनजाति समाज को 18 जून को उदयपुर पहुंचने का आह्वान किया जा रहा है। इधर, उदयपुर शहर में जनजाति बंधुओं के इस आयोजन में आगमन के मद्देनजर विभिन्न सामाजिक व स्वयंसेवी संगठन सहयोग में जुटे हैं। शहर में पांच स्थानों से निकलने वाली शोभायात्राओं के मार्ग पर विभिन्न सामाजिक संगठनों की ओर से शीतल पेय की व्यवस्था निर्धारित की जा रही है", उन्होंने कहा।

आएंगे डेढ़ लाख लोग, भोजन पैकेट बटेंगे

इस रैली में आ रहे एक से डेढ़ लाख की संख्या में जनजाति बंधुओं के आने का आंकलन है । उनके लिए पेयजल से लेकर भोजन की व्यवस्था के लिए उदयपुर शहर जुटेगा। घर-घर से भोजन पैकेट तैयार होंगे। भोजन पैकेट के लिए थैलियां छपकर तैयार है। 

कटारा ने बताया कि उदयपुर शहर के घर-घर तक भोजन पैकेट तैयार करने के आग्रह के साथ थैलियां पहुंचाई जाएंगी। इन थैलियों पर 18 जून के कार्यक्रम के संक्षिप्त विवरण के साथ भोजन सामग्री की भी जानकारी अंकित की गई है। सभी से आग्रह किया जाएगा कि एक थैली में 10 पूड़ी या छह परांठे, केरी की लौंजी, गुड़, हरी मिर्च कटकी ही रखें ताकि गर्मी के मौसम का असर भोजन पर न पड़े। इन थैलियों पर मनुहार दर्शाती दो पंक्तियां ‘‘धन्य धन्य मेवाड़ धरा है, तुम आए प्रिय पावणा। जीमो भोेजन म्हे जीमावां, हरख हरख मन भावणा।।’’ भी अंकित की गई हैं। भोजन के बाद थैली को सड़क पर नहीं फेंके जाने का भी आग्रह थैली पर अंकित किया गया है। 

.....और इधर डिलिस्टिंग महारैली का विरोध

आदिवासी जन अधिकार एकता मंच राजस्थान ने आर एस एस के संगठन  जनजाति सुरक्षा मंच की डीलिस्टिंग की मांग को गैर वाज़िब बताकर महारैली का विरोध किया। एकता मंच के प्रदेश महासचिव विमल भगोरा ने कहा कि, भाजपा - आरएसएस के अनुसांगिक संगठन वनवासी कल्याण परिषद ,जनजाति सुरक्षा मंच की आड़ में पूरे देश में जातीय ,धार्मिक, क्षेत्रीयता के आधार पर अल्पसंख्यक लोगों के नाम पर बहुसंख्यकवाद के जरिए लड़ाकर सता हासिल करना चाहते है। हिंदु बनाम मुस्लिम, आदिवासी बनाम गैर आदिवासी, पंजाब बनाम हरियाणा, मेतई बनाम कुकी ,हिंदु आदिवासी बनाम गैर आदिवासी हिंदु जैसे खेल ,खेल कर "बांटो और राज करो की नीति" अपना रहे है। 

भगोरा ने कहा कि धरती पर आदिवासी पहले, धर्म बाद में आया है। मानव जीवन के विकास का इतिहास बताता है कि आदिवासी केवल प्रकृति के उपासक है न कि किसी धर्म विशेष के। भारत के संविधान का अनुच्छेद 25 में देश के प्रत्येक नागरिक को धार्मिक आचरण की स्वतंत्रता देता है। अत: किसी व्यक्ति द्वारा किस धार्मिक आचरण का पालन करेगा ,यह शुद्ध रुप से व्यक्तिगत मामला है। 

ऊंचे पदों पर आरक्षण की हकीकत 

कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के मंत्री जितेंद्र सिंह ने 2017 में सूचना दी थी कि केंद्र सरकार में डायरेक्टर से और उससे ऊपर के कुल 747 पदों में से एससी अफसर सिर्फ 60 और एसटी अफसर सिर्फ 24 हैं।  

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लोक सभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने बताया है कि देश के 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से सिर्फ एक-एक उपकुलपति है, सात ओबीसी समाज से हैं. इसी तरह रजिस्ट्रार, प्रोफेसर आदि जैसे पदों और टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ में भी वंचित वर्गों का प्रतिनिधित्व बहुत कम है। 45 रजिस्ट्रारों में से सिर्फ दो अनुसूचित जाति से, पांच अनुसूचित जनजाति से और तीन ओबीसी से हैं. कुल 1005 प्रोफेसरों में से 864 सामान्य श्रेणी से हैं जबकि 69 अनुसूचित जाति से, 15 अनुसूचित जनजाति से और 41 ओबीसी से हैं। कुल 2700 एसोसिएट प्रोफेसरों में से 2275 सामान्य श्रेणी से हैं जबकि 195 अनुसूचित जाति से, 63 अनुसूचित जनजाति से और 132 ओबीसी से हैं। असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर भी कुल 8,668 लोगों में से 5,247 सामान्य श्रेणी से हैं जबकि 1,042 अनुसूचित जाती से, 490 अनुसूचित जनजाति से और 1,567 ओबीसी से हैं. अनुसूचित जनजाति के लिए 7.5 प्रतिशत, अनुसूचित जाति के लिए  15 प्रतिशत, ओबीसी के लिए  27  फीसदी आरक्षण की हकीकतत और ईडब्ल्यूएस के लिए 10 प्रतिशत सीटें आरक्षित की जाती हैं.इस फॉर्मूले के हिसाब से 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुल 1005 प्रोफेसरों में कम से कम 75 अनुसूचित जनजाति से होने चाहिए, लेकिन हैं सिर्फ 15. अनुसूचित जाति से कम से कम 151 प्रोफेसर होने चाहिए, लेकिन हैं सिर्फ 69. लेटरल एन्ट्री के जरिये होने वाली नियुक्तियों तथा निजि क्षेत्रों में कोई आरक्षण लागू नहीं है।

डिलिस्टिंग से आदिवासियों का प्रतिनिधित्व घटाने की साजिश

जानकारों का कहना है कि डीलिस्टिंग किए जाने के बाद देश में आदिवासियों की जनसंख्या का अनुपात घटेगा जिसकी वजह से आदिवासियों को लोकसभा एवं राज्यों की विधानसभाओं में प्रतिनिधित्व प्रतिनिधित्व घटेगा। आदिवासियों को शिक्षा व रोजगार में मिलने वाला आरक्षण घटेगा। आदिवासियों के विकास एवं कल्याणकारी योजनाओं के लिए आवंटित होने वाले बजट में कमी होगी ।संविधान की पांचवी व छठी अनुसूची के तहत मिले विशेष अधिकार भी प्रभावित होंगे। क्योंकि यह अधिकार भी जनसंख्या के आधार पर ही मिले हैं। जनसंख्या का अनुपात घटते ही क‌ई क्षेत्र जनजाति उपयोजना क्षेत्र से बाहर हो जाएंगे। पंचायती राज में सरपंच प्रधान व जिला प्रमुख के पद टीएसपी क्षेत्र में आरक्षित है वह कम हो जाएंगे । इसी प्रकार छठी अनुसूची क्षेत्र में स्वायत्त जिला परिषदों के अधिकार भी प्रभावित होंगे। 

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