भोपाल/धार। यह कहानी है मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य धार जिले के किसानों की, जो कभी पथरीली धरती पर हरियाली को देखा करते थे। यहां के भांडाखो गाँव में कभी कपास, मक्का और गेहूं की लहलहाती फसलें किसान परिवारों की खुशहाली की गवाही देती थीं। लेकिन 14 अगस्त 2022 की रात ने उनकी ज़िंदगियों को बर्बादी के कगार पर ला खड़ा किया। जिस कारम डेम से वे उम्मीदें लगाए बैठे थे, वही अचानक जलप्रलय का कारण बन गया। पानी का जोर इतना था, कि हजारों हेक्टेयर जमीन जलमग्न हो गई और इस प्रलय के बाद जब पानी उतरा तो बची केवल पथरीली धरती, जिस पर अब कोई फसल नहीं उगती।
जब कारम डेम से रिसते पानी ने भांडाखो और आसपास के गाँवों को अपनी चपेट में लिया, तो कोई भी इसकी भयावहता की कल्पना नहीं कर सकता था। किसानों को इस बात का आभास भी नहीं था कि जिस परियोजना का उद्देश्य उनके खेतों को सिंचित करना था, वही उनकी बर्बादी का कारण बन जाएगी। 48 घंटे के भीतर 18 गांवों को खाली कराना पड़ा। सैकड़ों किसान अपने घर-खेत छोड़कर पहाड़ों की ओर भागे। यह महज एक जल-प्रलय नहीं था, बल्कि उनके भविष्य के सपनों की भी बर्बादी थी। जलप्रलय को तो तीन साल बीत गए लेकिन किसानों की मुश्किलें आज भी हल नहीं हो सकी। आदिवासी किसानों की पीड़ा के हर पहलू की पड़ताल करती पढ़िए द मूकनायक की ये ग्राउंड रिपोर्ट-
भांडाखो गाँव की कांति भील, जिनके तीन बच्चे, पति और सास-ससुर हैं, आज मजदूरी करके परिवार का गुजारा करती हैं। उनका 8 बीघा खेत जो कभी कपास और गेहूं से लहलहाता था, अब एक बंजर पथरीली जमीन में बदल चुका है। कांति का चेहरा चिंता की लकीरों से भरा हुआ था, जब उन्होंने बताया, "हमारे खेत अब सिर्फ पत्थरों से ढके हैं। पहले वहां कपास, गेहूं और मक्का उगता था। अब न मिट्टी बची है, न फसल। परिवार पालने के लिए मजदूरी करनी पड़ रही है। सरकार ने सिर्फ तीन हजार रुपये का मुआवजा दिया, जो हमारे नुकसान के सामने कुछ भी नहीं है।"
कांति के पति शिवम भी अब खेती की बजाय दिहाड़ी मजदूरी करते हैं। उनका कहना है, "हमने कभी सोचा नहीं था कि जिस डेम से हमें सिंचाई के लिए पानी मिलेगा, वही हमारे लिए बर्बादी का कारण बनेगा। अब खेतों पर मेहनत करना मुमकिन नहीं है, क्योंकि वहाँ सिर्फ पत्थर और चट्टानें बची हैं। हम सरकार से मुआवजा और जमीन को उपजाऊ बनाने की मांग कर रहे हैं, लेकिन हमें केवल आश्वासन ही मिला है।"
भांडाखो के एक अन्य किसान मुकेश, जिनकी 10 बीघा जमीन डेम के रिसाव के बाद पूरी तरह बंजर हो चुकी है, अपनी बेबसी जाहिर करते हुए कहते हैं, "हमारे खेतों की मिट्टी बहकर चली गई। अब बस पत्थर बचे हैं। सरकार के अधिकारी आए, वादे किए, लेकिन हमें कोई राहत नहीं मिली। सिर्फ पांच हजार रुपये का मुआवजा देकर हमें चुप कराने की कोशिश की गई। हमारी जमीन हमें लौटा दो या उसे फिर से उपजाऊ बना दो, यही हमारी मांग है।"
त्रासदी के बाद, धार जिले के धरमपुरी विधानसभा क्षेत्र में आने वाले लगभग 100 से 150 गाँव डूब में आ गए थे। स्थानीय प्रशासन ने डेमेज कंट्रोल की कोशिश की, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। खेतों की मिट्टी बह चुकी थी और बाढ़ के बाद बची पथरीली जमीन पर कोई फसल उगाना मुमकिन नहीं था। कई किसान, जिनके पास पहले सैकड़ो बीघा उपजाऊ जमीन थी, अब मजदूर बनकर जीने पर मजबूर हैं।
सरकार की ओर से राहत का वादा किया गया था। बाढ़ के समय तत्कालीन उद्योग मंत्री राज्यवर्धन सिंह दत्तीगांव और जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट ने प्रभावित गांवों का दौरा किया था। 15 अगस्त 2022 को जल संसाधन मंत्री ने स्वतंत्रता दिवस पर ध्वजारोहण करते हुए ग्रामीणों से वादा किया था कि उनके खेतों को फिर से उपजाऊ बनाया जाएगा और मुआवजा दिया जाएगा। परंतु, आज तीन साल बाद भी किसान इंतजार कर रहे हैं।
धरमपुरी के कांग्रेस नेता और पूर्व विधायक पांचीलाल मेड़ा ने द मूकनायक प्रतिनिधि से बातचीत में कहा, "यह डैम 300 करोड़ रुपये की लागत से बना था, लेकिन इसमें भारी भ्रष्टाचार हुआ है। डैम क्यों फूटा? और सरकार ने अधिकारियों और ठेकेदारों को क्लीन चिट कैसे दे दी? किसानों को मुआवजा नहीं मिला, उनकी जमीन बंजर हो गई। यह केवल सरकारी भ्रष्टाचार की वजह से हुआ है।"
मेड़ा ने आगे कहा, "जब डेम टूटा तो मंत्री आए और मुआवजा देने का वादा किया, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। किसान आज भी अपनी बंजर जमीन और टूटी हुई उम्मीदों के साथ संघर्ष कर रहे हैं।"
किसानों की सरकार से उम्मीदें खत्म होती दिख रही हैं। जिन खेतों से कभी वे अपना और अपने परिवार का पेट भरते थे, आज वे पथरीले मैदान बन चुके हैं। किसानों का कहना है कि अगर सरकार जल्द से जल्द उनके खेतों को फिर से उपजाऊ नहीं बनाती, तो उन्हें पलायन करने पर मजबूर होना पड़ेगा।
इस संबंध में द मूकनायक प्रतिनिधि ने धार कलेक्टर प्रियंक मिश्रा (IAS) से बातचीत की। उन्होंने बताया, फिलहाल इस संबंध में जनकारी नहीं है, आपने बताया है, तो हम सम्बंधित विभाग को उक्त क्षेत्र में जाँच के लिए निर्देश दे रहे हैं।
भांडाखो और धार जिले के सैकड़ों किसान आज सरकार से यही सवाल कर रहे हैं—क्या हमारी जमीन वापस मिलेगी? क्या हम अपने खेतों को फिर से हरा-भरा देख पाएंगे? या फिर यह पथरीली धरती ही हमारी किस्मत बनकर रह जाएगी?
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