भोपाल। मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले के कई आदिवासी गाँव में सड़क, पानी और बिजली अबतक नहीं पहुँच सकी है। द मूकनायक से बातचीत करते हुए बैंगानटोला गाँव की रहवासी 24 वर्षीय शामली बाई ने कहा कि, "हम अंधेरे में रहते हैं। हमें उजाले की उम्मीद कम है। गाँव तक बिजली पहुँचना सपने की तरह है। शाम होते ही लकड़ियां जला कर उजाला कर लेंते हैं। हमें चांदनी रात पसंद हैं, उन रातों में गांव में उजाला रहता है।"
राजधानी भोपाल से करीब 600 किलोमीटर की दूरी पर स्थित अनूपपुर जिले में बैगा जनजाति बहुल गाँव मूलभूत सुविधाओं से आज भी दूर है। इनकी समस्याओं को जानने द मूकनायक की टीम पुष्पराजगढ़ के उन इलाकों में पहुँचीं जहाँ सरकार द्वारा मुहैया कराई जाने वाली मूलभूत सुविधाएं अबतक नदारद हैं।
अनूपपुर में जनजातीय समुदाय की विशेष पिछड़ी जाति (PVTGs) बैगा समाज के लोग रहते हैं। इन क्षेत्रों में कुछ इलाके और गाँवों में जाने के लिए कोई रास्ता नहीं है, सिर्फ पैदल ही वहाँ पहुँचा जा सकता है। सबसे पहले हम पुष्पराजगढ़ क्षेत्र के ग्राम पंचायत बोधा के अंतर्गत गडीदादर गाँव में पहुँचे, आदिवासी बहुल इस गाँव की आबादी 900 के करीब होगी। लेकिन इस गाँव में देश की आजादी से किसी को बिजली देखने को नहीं मिली।
द मूकनायक से बातचीत में गड़ीदादर गांव की रहवासी इंद्रवती कहतीं हैं, "आठ साल पहले इसी गाँव के सुरेंद्र सिंह से मेरा विवाह हुआ था। और जब मैं अपने सुसराल गड़ीदादर पहुँची तो यहाँ बिजली नहीं थी। उस समय मुझे बताया गया कि कुछ दिनों बाद बिजली आएगी लेकिन अब 8 साल के बाद भी गाँव में बिजली नहीं पहुँची।"
गाँव के अन्य लोगों ने कहा कि, उन्हें हर बार यही बोला जाता है कि जल्द ही बिजली आएगी लेकिन अबतक कोई पता नहीं। गाँव के लोगों का आरोप है कि चुनाव आते ही उनके गांव में बिजली आने का वादा किया जाता है, लेकिन काम कुछ नहीं होता। इधर, पंचायत सचिव नंदकिशोर सारीवान ने बताया कि इस गाँव में सालों पहले खम्बे तो लगाए गए पर बिजली नहीं पहुँचीं है।
गड़ीदादर के बाद हम पुष्पराजगढ़ क्षेत्र के एक ऐसे गाँव में पहुँचे जहां पर दो पहिया या चार पहिया वाहन जाने का रास्ता तक नहीं है। यह गाँव शहरी क्षेत्र से एक दम कटा हुआ है। गुटटीपारा ग्राम पंचायत के अंतर्गत बैगानटोला गाँव सड़क से करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पहाड़ पर बसे यहां के दो टोले (गाँव) में बिजली, पानी, सड़क स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी मूलभूत जरुरतें यहां के बैगा आदिवासियों से दूर हैं।
यहाँ पर सारे घर कच्चे और झोपड़ीनुमा हैं, गाँव की आबादी करीब 200 लोगों की है। जो दो अलग-अलग टोला बना कर रह रहे हैं। गाँव के लोग आदिकाल पद्धत्ति की खेती करते हैं। इसके अलावा कुछ लोग मजदूरी करने गाँव से बाहर जाते हैं। यह लोग मूलभूत सुविधाओं के पाने के लिए कई बार, जनप्रतिनिधियों सहित अधिकारियों से मिले पर कोई फायदा नहीं हुआ। गाँव में पानी की समस्या है। यहाँ झिरिया खोद कर (छोटे-छोटे गड्ढे) पेय जल लिया जा रहा है।
बता दें कि, झिरिया प्राकृतिक पानी स्रोत होते हैं, गाँव के लोगों द्वारा पहाड़ से नीचे पर छोटे-छोटे गड्ढे खोदे जाते हैं। इन्हें बड़े-छोटे पत्थरों की मदद से चारों और से बांध दिया जाता है। करीब 7-8 फिट गहरे गड्ढे खोद लिए जाते है। इन्हीं गड्ढों में रात में पहाड़ों से प्राकृतिक पानी झिर कर इक्क्ठा होता है। इसीलिए गाँव के लोग इन्हें झिरिया कहते हैं।
इसी पानी का इस्तेमाल गाँव के लोग करते है। झिरिया के बगल में एक छोटी खंती बनाते है। जिसमें अतरिक्त बचे हुए पानी को इक्क्ठा किया जाता है। यह पानी पालतू मवेशियों के पीने के लिए और खेती के लिए उपयोग किया जाता है।
मगर जिस पानी का उपयोग गाँव के लोग पेय जल के रूप में कर रहे हैं, वह पूरी तरह सुरक्षित नहीं है। इससे गाँव के लोग बीमार हो रहे है। गाँव के सरपंच दादूराम पनाडिया ने द मूकनायक को बताया कि, "गाँव के लोग दूषित पानी पी रहे है। इस कारण से बीमार भी हो जाते हैं। सरपंच ने बताया कि कई लोगों की मौत सिर्फ इसलिए हो जाती है कि हम रोगी को अस्पताल लेकर नहीं जा पा रहे। जंगल और पहाड़ों के बीच बसे बैगानटोला में न सड़क है, न बिजली और न ही पानी की समुचित व्यवस्था। यहाँ के लोग इन आवश्यक मूलभूत सुविधा से पूरी तरह वंचित है।"
गाँव की रहने वाली 24 वर्षीय शामली बाई ने बताया कि वह अंधेरे में रहती है। उन्हें उजाले की उम्मीद कम है। उन्हें लगता है कि गाँव तक बिजली पहुँचना सपने की तरह है। शामली कहतीं है कि वह रोज शाम को लकड़ियां जला कर उजाला कर लेतीं है। लेकिन उन्हें घर के काम जल्दी निपटाना होते है। अंधेरे में घर के काम करना कठिन होता है।
उन्होंने बताया कि गाँव में नियम है कि कोई भी परिवार बेहिसाब लकड़ियां ख़र्च नहीं कर सकता। भले ही उन्हें वह जंगल से मुफ्त में मिल रहीं है। इसलिए रात ज्यादातर अंधेरे में निकलती है। शामली ने आगे कहा, हमें चाँद वाली रातें पसंद है। क्योंकि इन्हीं दिनों में गाँव में उजाला रहता है। "गाँव से सड़क तक जाने के लिए रास्ता नहीं है। सरकार की तरफ से कोई भी अधिकारी हम तक कभी नहीं पहुँचा। सिर्फ सरपंच और पंचायत सचिव नीचे के गाँव से महीने में एक बार आते हैं," शामली ने कहा।
बैगानटोला में दो अलग-अलग टोला है। यहाँ आने जाने के लिए एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ तक जाने के लिए करीब 800 मीटर चलना पड़ता है। एक जगह से दूसरे टोला तक पहुचने में आसानी हो इसके लिए गाँव के लोगों ने खुद ही रास्ता बना लिया है। धीरे-धीरे पहाड़ के कुछ स्थानों को काट कर एक कच्चा मार्ग बना लिया जिससे गाँव के लोग आसानी से एक जगह से गाँव के दूसरे टोला तक पहुँच पाएं।
बैगानटोला के लोग शिक्षा से भी दूर हैं। हालांकि, यहाँ के सरपंच दादूराम पढ़े-लिखे हैं। दादूराम ने कहा कि वह सड़क किनारे गाँव में रहते हैं। जिसके कारण उनका स्कूल जाना आसान था। लेकिन बैगानटोला के लोग शिक्षा से नहीं जुड़ पा रहे। जिसका कारण गाँव से सड़क तक का खराब रास्ता है। गाँव में एक प्राथमिक स्कूल है जिसमें कई-कई दिन शिक्षक नहीं आते, स्कूल लगभग बन्द रहता है। इसके बाद माध्यमिक स्कूल के लिए उन्हें ग्राम गुटटीपारा जाना पड़ता है। जहाँ तक रोज बच्चों का पहुँचना कठिन है।
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