असम के इतिहास का स्याह दिन: गुवाहाटी की सड़कों पर किशोरी को दौड़ाया था निर्वस्त्र, आज भी कांप उठती है रूह

2007 बेलटोला कांड की सरवाइवर लक्ष्मी ओरंग ने द मूकनायक से कहा- मुझे बेइज्जत करने वाले आज घूम रहे बेखौफ, आदिवासी बेटियों को नहीं मिलता इस देश में न्याय
24 नंवबर 2007 का वो भयावह मंजर
24 नंवबर 2007 का वो भयावह मंजर इंटरनेट
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गुवाहाटी। बात 2007 की है, तब वह महज 16 साल की थी। दसवीं क्लास में पढ़ती थी। तीन भाइयों की सबसे छोटी और इकलौती बहन- परिवार में सबकी लाड़ली। सोनीतपुर जिले में ऑल आदिवासी स्टूडेंट्स एसोसिएशन ऑफ असम (आसा) की बिश्वनाथ चरियाली यूनिट की सदस्य थी। चाय के बागान के  कामगरों की जनजाति दर्जे की मांग को लेकर आसा ने 24 नंवबर को 'चलो दिसपुर' प्रदर्शन कार्यक्रम रखा। 

पिता ने कहा था, अभी तुम बहुत छोटी हो इस काम के लिए, मत जाओ। लेकिन लाडली बेटी ने बाबा से अपनी जिद मनवा ही ली। अल्हड़ लक्ष्मी अपने भाईयों और चचेरी बहन के साथ गुवाहाटी पहुंची। उसे इल्म नहीं था कि पहली बार गुवाहाटी देखने का उसका यह उल्लास कपूर की तरह काफूर होने वाला है। पलक झपकने भर की देर में शांति से मार्च कर रहे आदिवासी प्रदर्शनकारियों और स्थानीय जनों के बीच ना जाने कैसे किस बात पर तनातनी हो गई और देखते ही देखते बेलटोला तिनियाली से दिसपुर तक की सड़क पर 3 घंटे उन्माद ने ऐसा तांडव किया जिसमें लक्ष्मी की अस्मिता रुसवा हो गयी। उन्मादी भीड़ ने बेबस छात्रा को घेर लिया। बुरी कदर पीटा और फिर....। मणिपुर में महिलाओं के नग्न परेड और जलालत की दिल दहलाने वाली घटना सामने आने पर द मूकनायक ने पंद्रह साल पूर्व ऐसी ही एक बर्बरता को भोग चुकी बेलटोला कांड की साहसी योद्धा लक्ष्मी की ख़ोजखबर ली। लक्ष्मी ने द मूकनायक से अपनी पीड़ा साझा की। उन्होंने बताया कि आज भी 24 नवंबर 2007 का वो स्याह दिन किसी डरावने सपने की तरह उन्हें आतंकित करता है। जानिए लक्ष्मी की आपबीती और संघर्ष से भरे अब तक के सफर के बारे में - 

" एक आदमी ने मुझे पेट पर जोर से  लात मारी, मैं चीख उठी..."- लक्ष्मी
" एक आदमी ने मुझे पेट पर जोर से लात मारी, मैं चीख उठी..."- लक्ष्मीइंटरनेट

'चाहे जान से मार दो लेकिन कपड़े मत उतारो'

बेलटोला कांड को असम के इतिहास का सबसे कलंकित दिवस माना जाता है। सरकारी रेकॉर्ड में 1 मौत और घायलों की संख्या 230 बताई जाती है लेकिन चोटों और मृत्यु से भी भयावह था महिलाओं के साथ की गई दरिंदगी। 40 वर्षीया एक महिला का गैंग रेप किया गया और एक आदिवासी किशोरी को निर्वस्त्र कर पीटा जिसकी तस्वीरें जब दुनिया के सामने आई तो देशवासियों का सिर शर्म से झुक गया। "हम शांति से चल रहे थे। आदिवासी संस्कृति के प्रतीक स्वरूप  तीर कमान कुछ युवाओं ने ले रखे थे लेकिन वह सिर्फ सांकेतिक प्रदर्शन के लिए था। ना जाने एक बाइकर कहाँ से आया और एक आदिवासी छात्रा को टक्कर मार दी। मामले ने हिंसक मोड़ ले लिया और लोग एक दूसरे से लड़ने मारने पर उतारू हो गए" लक्ष्मी ने द मूकनायक को बताया। भागमभाग में भाई बिछड़ गए।

 "मेरी चचेरी बहन जिसका नाम भी लक्ष्मी है, के साथ मैं भी भागी लेकिन कुछ लोगों ने मुझे घेर लिया। डंडे ,लात और घूंसे बरसाए और चाकू से वार किया जिसपर मैंने हाथों से रोकने की कोशिश की तो हाथ पर ज़ख्म हो गए। भीड़ में से किसी ने चीखते हुए कहा- इसके कपड़े उतारो और फिर मारो।" लक्ष्मी ने कहा, यह सुनकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए। मैं चीखने लगी और उनसे कहा कि जितना चाहे मारो, भले मुझे जान से मार डालो लेकिन मेरे कपड़े मत उतारो, बेइज्जत ना करो। उन्होंने मेरी नहीं सुनी.. मेरे वस्त्र फाड़ दिए। बहुत सारे हाथ मेरे शरीर पर थे, यहां वहां...शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था, सड़क पर बहुत सारे लोग। मैं बदहवास इधर से उधर भागती रही, मदद के लिए पुकारती रही, घरों के बाहर औरतें खड़ी थी लेकिन मेरी मदद किसी ने नहीं की। कुछ ट्रैफिक पुलिस वाले थे लेकिन वे तमाशा देखते रहे। एक आदमी ने मुझे जोर से  लात मारी, मैं चीख उठी...पुरुष ठहाके लगा रहे थे, मेरे पीछे-पीछे भाग रहे थे, महिलाएं खामोश थीं। बचने के लिए मैं 2 किलोमीटर तक भागती रही, पुलिस देर से आई और दोषियों को पकड़ने की बजाय हम आदिवासियों पर लाठीचार्ज कर दिया, मुझे भी मारा। 

लक्ष्मी जनजाति अधिकारों पर व्याख्यान देने कई राज्यों में जाती है।
लक्ष्मी जनजाति अधिकारों पर व्याख्यान देने कई राज्यों में जाती है।

"इतने में एक आदमी आया और उसने अपनी पहनी हुई टी-शर्ट उतार कर मेरे शरीर को ढका और एक दुपट्टा मेरी कमर पर बांध दिया। मुझे पुलिस की जीप में बिठाकर उनको विनती की कि मुझे अस्पताल ले जाएं। 

क्ष्मी को बचाने वाले भुगीराम बर्मन एक चाय रिटेलर थे जो उपद्रव देखकर अपने दुकान पर ताला लगाकर निकल रहे थे। "उस बदहवास किशोरी की तरफ नजर उठा कर देखने की हिम्मत नहीं हुई, मैंने अपना टी-शर्ट उतारा और उसके सीने को ढक दिया, सड़क पर बहुत दुप्पट्टे गिरे हुए थे, एक उठाकर उसकी कमर से बांधा और उसको बोला तुम भागो पुलिस के पास जाओ" भुगिराम ने 'लक्ष्मी - एक आवाज' डॉक्यूमेंट्री में वृतांत सुनाया। 

मानसिक संतुलन खो बैठी, लोगों ने किया अपमान

लक्ष्मी कहती हैं सड़कों पर वह दहशत भरी दौड़ तो खत्म हो गयी लेकिन यातनाओं का लंबा दौर बाकी था जो कई वर्षों तक सही। वो उन्मादी लोग गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज में भी उसे खोजने आए लेकिन लक्ष्मी छिपने में कामयाब हुई। तब तक पूरी दुनिया को बेलटोला कांड की खबर मिल चुकी थी। रात को लक्ष्मी ने पिता को फोन किया और रोते हुए कहा अब वह घर नहीं लौटेगी। "मुझमें दुनिया का सामना करने की हिम्मत नहीं थी। लेकिन बाबा बोले इसमें तुम्हारा कोई दोष नही है, घर लौट आओ, हम सब तुम्हारे साथ हैं" कहते हुए लक्ष्मी की आवाज भर्रा जाती है। उधर उसके चाचा को जब खबर मिली कि लक्ष्मी को निर्वस्त्र कर परेड करवाया तो  उन्हें लगा ये उनकी बेटी लक्ष्मी है और सदमे से उनका हार्ट फेल हो गया जिससे उनका उसी दिन निधन हो गया। " लगभग एक-दो महीने तक मेरा मेंटल बेलेंस ठीक नहीं रहा, घर से बाहर निकलने की सोचकर कांप जाती थी लेकिन फिर मुझे एक दिन एहसास हुआ कि मेरी कोई गलती नहीं, ये किसी भी लड़की के साथ हो सकता है। इस दौरान दसवीं की परीक्षा आ गयी, मैं सदमे में होने से पढ़ाई नहीं कर सकी, फेल हो गयी और इस तरह मेरी पढ़ाई छूट गई- मैं पढ़ने में बुरी नहीं थी , लेकिन इस हादसे ने मेरी जिंदगी बदल दी थी"।

दूसरों के लिए लड़ने वाली लक्ष्मी को अभी तक नहीं मिला न्याय
दूसरों के लिए लड़ने वाली लक्ष्मी को अभी तक नहीं मिला न्याय

आदिवासी महिलाओं की मदद को बनाया मकसद, ट्राइबल आइकन बनी

लक्ष्मी कहती हैं कि जिनके साथ बीतती है, वहीं उसकी वेदना जान सकता है। मैं निर्दोष थी लेकिन गांववालों ने, मिलने जुलने वाले लोगों ने मेरे लिए बहुत गलत बातें कहीं, मेरा अपमान होता रहा लेकिन मुझे भगवान ने इन सब बातों को सहन करने की असीम शक्ति दी। मैंने ठान लिया कि मेरी मदद को कोई नहीं आया लेकिन मैं आदिवासी समुदाय खासकर महिलाओं की समस्या दूर करने में अपना जीवन बिताउंगी। " मेरे बाबा और मां के अलावा तीनों भाइयों ने मेरा हर कदम पर साथ दिया जिसकी वजह से मैं वापस सामान्य जीवन की तरफ लौटी। 2009 में तेजपुर संसदीय क्षेत्र से लोकसभा चुनाव लड़ने का भी प्रयास किया लेकिन चुनाव लड़ने की उम्र नही होने से मेरा नामांकन निरस्त हो गया। लक्ष्मी कहती हैं कि चुनाव लड़ने के पीछे मंशा आदिवासी समुदाय के लिए कुछ करने की इच्छा थी। राजनीति में प्रवेश नहीं हो सका तो  स्वयं सेवी संगठन के जरिये समुदाय के अधिकारों को लेकर अभियान प्रारंभ किये। 

लक्ष्मी ने महिलाओं और बालिकाओं की तस्करी, उन्हें देह व्यापार में धकेलने वाले गिरोहों,  आदिवासियों के साथ जमीनों के फर्जीवाड़े के मामले उजागर करने और घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं आदि के बचाव के सार्थक प्रयास किये। जनजाति अधिकारों पर व्याख्यान देने वो अब झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, त्रिपुरा, बंगाल के कई भागों में जाती है। 

हाईकोर्ट में केस हुआ डिसमिस

लक्ष्मी कहती हैं उसके साथ जो घटना हुई उसकी तस्वीरें पूरी दुनिया ने देखी। "जिन्होंने मुझे बेइज्जत किया उनका चेहरा साफ दिखाई दे रहा है लेकिन पुलिस ने केवल चार लोगों को गिरफ्तार किया। लेकिन वो भी बच गए, आज वो गुवाहाटी में बेखौफ घूम रहे हैं । जो मेरे साथ हुआ अगर किसी गैर आदिवासी के साथ होता तो पुलिस आरोपियों को गिरफ्तार कर सजा दिलवा चुकी होती लेकिन इस देश में गरीब आदिवासी लोगों खासकर बेटियों की इज्जत का कोई मोल नहीं है। लक्ष्मी कहती हैं कुछ समय पहले तक हाइकोर्ट में केस चला। "केवल एक बार मेरे पास कोर्ट में हाजिर होने का समन आया लेकिन मैं उस वक्त 7 माह की गर्भवती थी इसलिए अदालत के समक्ष हाजिर नहीं हो सकी। बाद में बताया गया कि कोर्ट ने केस बंद कर दिया"। वो आगे कहती हैं कि कोर्ट में लड़ने के लिए आर्थिक संसाधन नहीं होने के कारण केस नहीं लड़ पा रही हूं। घटना को 15 साल हो चुके हैं लेकिन मुझे अब तक ना तो पुलिस से, ना सरकार या न्यायपालिका से न्याय मिला है। इतने महिला संगठन हैं लेकिन मेरी मदद को कोई भी आगे नहीं आया। काश कोई एक वकील सामने आकर कहता कि मैं निशुल्क लड़ूंगा आपका केस, सुप्रीम कोर्ट जाना है लेकिन मेरे पास पैसे नहीं हैं"।

खेत में काम करती हुई लक्ष्मी
खेत में काम करती हुई लक्ष्मी

सरकारी नौकरी और 1 लाख रुपये मुआवजा ठुकराया

लक्ष्मी को राज्य सरकार की ओर से 1 लाख रुपये मुआवजा और सरकारी नौकरी की पेशकश की गई थी जिसे उसने अस्वीकार कर दिया। लक्ष्मी कहती हैं जो लोग मुझे न्याय नहीं दे सकते उनसे पैसा या नौकरी लेकर मैं क्या करूँ? लक्ष्मी कहती हैं वो तत्कालीन मुख्यमंत्री से मिली लेकिन उनसे सिर्फ आश्वासन मिला। कॉंग्रेस की केंद्र सरकार ने कभी उसकी सुध नहीं ली। 

लक्ष्मी के दिल में आदिवासी समुदाय के साथ होने वाले भेदभाव को लेकर गहरी पीड़ा है. वे मानती हैं कि सत्ताधारियों के लिए एक आदिवासी के जीवन का कोई मोल नहीं है. वो कहती हैं कि "2013 में गुवाहाटी में एक बीयर बार में एक ब्राह्मण लड़की के साथ 30 जनों ने बदसलूकी की जिसको लेकर बहुत बवाल मचा। उसे सरकारी नौकरी, एक करोड़ रूपये मुआवजा दिया गया. उसके आरोपियों को सजा हुई. दिल्ली से सोनिया गांधी और राहुल गांधी गुवाहाटी आये लेकिन मेरे मामले में कोई भी बोलने नहीं आया। पूछिये असम के सीएम से क्या वो लक्ष्मी ओरंग को जानते भी हैं? "

लक्ष्मी का विवाह 2014 में भोलूराम मुरारी से हुआ और दंपति का 8 साल का पुत्र साहिल है जो तीसरी क्लास में पढ़ता है। 

लक्ष्मी अब आगे पढाई करना चाहती है
लक्ष्मी अब आगे पढाई करना चाहती है

दुबारा शुरू की शिक्षा, राष्ट्रपति से मिलने की इच्छा

2007 के हादसे के कारण लक्ष्मी पढ़ाई से दूर हुई लेकिन आज उसे शिक्षा के महत्व की समझ है। "हथियार से नहीं कलम से जंग जीती जा सकती है- इस दृढ़ निश्चय के साथ लक्ष्मी ने अब फिर से कॉपी- कलम उठा लिया है। प्राइवेट परीक्षा पद्धति से स्कूली शिक्षा पूरी कर आगे स्नातक डिग्री भी हासिल करना चाहती है। लक्ष्मी कहती हैं वह शादी करने से डरती थी।" मुझे डर था कोई मुझे अपनाने को तैयार नहीं होगा। अगर कोई शादी करेगा तो भी जीवन पर उस हादसे की दर्दभरी यादें जीने नहीं देंगी लेकिन मेरा ससुराल और पति बहुत खुले विचारों वाले लोग हैं जिन्होंने मुझे कहा कि जो हादसा हुआ है उसमें मेरा कोई दोष नहीं है। ससुराल में पूरा मान सम्मान मिलता है, वहीं मायके में मां और तीनों भाई अभी भी हर कदम पर सपोर्ट करते हैं।

आजीविका के लिए लक्ष्मी अपने पति के साथ खेती बाड़ी करती है। वो आगे कहती हैं कि उसे आदिवासी महिलाओं से बहुत स्नेह मिलता है जो उसे एक मॉडल के रूप में देखता है। लक्ष्मी की बड़ी ख्वाहिश है कि वह राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मिले। बकौल लक्ष्मी " मैं यदि उनसे मिल सकूं तो उनको कहूंगी कि आदिवासी समुदाय से होने के अलावा सबसे ऊपर वो एक महिला है , औरत होने और देश के सर्वोच्च पद पर होने के बावजूद आज मणिपुर जैसे मामले और देशभर में महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचारों को रोकने के लिए वो कुछ नहीं कर पा रही हैं तो राजनीति के कोई मायने नहीं है।" 

चाय बागानों के कामगर मांग रहे आदिवासी का दर्जा

19वी सदी में अंग्रेजों ने असम के चाय बागानों में काम करने के लिए बिहार, मध्यप्रदेश, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों से आदिवासी परिवारों को असम में लाकर बसाया। ये आदिवासी अपने मूल प्रान्तों में एसटी केटेगरी में शामिल हैं लेकिन असम में चाय बागान में काम करने के लिए आकर बसने वालों को एसटी दर्जा नही है जिससे वर्षों से वे आरक्षण से वंचित हैं। असम में यह कामगर अभी ओबीसी और एमओबीसी केटेगरी में हैं। राज्य सरकार द्वारा अनेक बार एसटी दर्जा ग्रांट होने का आश्वासन दिया जाता रहा है लेकिन यह मांग वर्षों से लंबित है। चाय बगानों में काम करने वाले इस आदिवासी समुदाय की बदौलत असम देश का सबसे बड़ा चाय उत्पादक राज्य है लेकिन इनका जीवन चायपत्ती के दानों के ही समान कड़क और कड़वाहट भरा है। 

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