मणिपुर में मौजूदा हालात: हजारों की संख्या में राहत शिविरों में अभी भी दिन गुजार रहे लोग, घर और गांव जलने से आगे कोई रास्ता नहीं!

मणिपुर में मौजूदा स्थिति अभी भी तनाव पूर्ण बनी हुई है. हिंसा से प्रभावित हजारों की संख्या में लोग अभी भी राहत शिविरों में जिंदगियां काट रहे हैं.
मणिपुर के चुराचांदपुर जिले के रेंकाई स्कूल में बनाए गए एक राहत शिविर में एक कुकी महिला अपने बच्चे को खाना खिलाते हुए.
मणिपुर के चुराचांदपुर जिले के रेंकाई स्कूल में बनाए गए एक राहत शिविर में एक कुकी महिला अपने बच्चे को खाना खिलाते हुए.फोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक
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नई दिल्ली: भारत के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में पिछले साल मई में दो समुदायों के बीच शुरू हुए जातीय हिंसा के आज लगभग नौ महीने हो चुके हैं. कुकी आदिवासी और मैतेई के बीच शुरू हुए हिंसा में हजारों की संख्या में लोग राज्य से बाहर देश के अन्य हिस्सों में विस्थापित होने के लिए मजबूर हो गए. सैकड़ों की संख्या में दोनों समुदायों की ओर से लोग मारे गए. लेकिन राज्य में मौजूदा स्थिति अभी भी तनाव पूर्ण बनी हुई है. हिंसा से प्रभावित हजारों की संख्या में लोग अभी भी राहत शिविरों में जिंदगियां काट रहे हैं.

कुकी बाहुल्य क्षेत्र चुराचांदपुर के एक स्थानीय ट्राइबल संगठन की सदस्य ने द मूकनायक को बताया कि, वे (विस्थापित लोग) अभी भी राहत शिविरों में हैं. वे अभी भी अपने गांव लौटने में असमर्थ हैं क्योंकि उनमें से अधिकांश के घर जलकर राख हो गए हैं, और उनके पास अब घर नहीं हैं. महिलाओं और बच्चों की स्थिति भी लगभग एक जैसी ही है। अधिकांश राहत शिविरों को बुनियादी आवश्यकताओं के अलावा चिकित्सा और पोषण की भी आवश्यकता है, जिनकी उनमें अत्यधिक कमी है।

उन्होंने आरोप लगाया कि, “मैतेई अभी भी हमले की तैयारी कर रहे हैं और छिटपुट हमले अभी भी हो रहे हैं और राज्य सरकार पर अरामबाई टेंगोल ने कब्जा कर लिया है, और केंद्र अभी भी राज्य सरकार की बात सुन रहा है। क्योंकि राज्य और केंद्र दोनों में भाजपा ही सत्ता में है”

चुराचांदपुर निवासी एक सामाजिक कार्यकर्ता ने नाम न लिखने की शर्त पर द मूकनायक को जानकारी दी कि, “मैतेई का हमला नहीं रुकने से राहत शिविरों की संख्या बढ़ती जा रही है। विशेष रूप से, मोरेह (Moreh) और तेंग्नौपाल (tengnoupal) से। शिविरों में लोग सरकारी राशन- चावल और दाल से जीवित हैं। इनकी हालत दयनीय है लेकिन कोई विकल्प नहीं है। शिविरों में 99% लोग पहले ही अपना सब कुछ खो चुके हैं। वह कहीं नहीं जा सकते, कहीं लौट नहीं सकते…!”

चुराचांदपुर जिले के एक राहत शिविर में हाथ में ब्रेड लिए बच्चे.
चुराचांदपुर जिले के एक राहत शिविर में हाथ में ब्रेड लिए बच्चे.फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक

उन्होंने बताया कि, राहत शिविर में नवजात शिशु, बच्चे, महिलाएं और वृद्ध सभी जीवित अवस्था में हैं, लेकिन वह पहले की तरह उनकी जिंदगी सामान्य नहीं है, कुछ नया नहीं है, उनके लिए कुछ नहीं बदलाव... चुराचांदपुर के लम्का में 100 से अधिक राहत शिविर हैं।

“चिंताजनक बात यह है कि शिविरों में 80 से अधिक लोगों की मृत्यु आघात, कुपोषण, बड़े रोग/बीमारी और उचित स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं की कमी और अपर्याप्त दवाओं के कारण हुई है”, उन्होंने बताया.

वह बताती हैं कि, म्यांमार सैन्य जुंटा (Myanmer Military Junta) की सेवा करने वाले मैतेई सैनिक वापस इम्फा में केंद्रीय सरकार के साथ एसओओ पर हस्ताक्षर कर रहे हैं और वे मणिपुर राज्य कमांडो और एमआर फर्जी आईडी के साथ नागरिकों पर हमला कर रहे हैं। अब राज्य और केंद्र सरकार सीमा बनाने की कोशिश में व्यस्त हैं। कर्फ्यू घोषित करो और बाड़ लगाओ. लोगों को पता ही नहीं है कि छिपा हुआ एजेंडा क्या है.

ज़ोमी स्टूडेंट्स फेडरेशन के उपाध्यक्ष (External), थोंग थांगसिंग (Thong Thangsing) ने बताया कि, हिंसा के दौरान सीधे प्रभावित लोगों में से अधिकांश अभी भी शिविरों में हैं, जबकि कुछ सरकारी कर्मचारियों को किराए के लिए बाहर जाने के लिए कहा गया था। हालांकि, उनमें से कुछ अपने घरों में वापस लौट गए हैं, खासकर वे जो बफर जोन के करीब नहीं थे। शिविर में वह पीड़ित अभी भी मौजूद हैं जिनके सभी घर और गाँव पूरी तरह से जल गए थे। महिलाएं और नवजात बच्चे अभी सबसे अधिक प्रभावित हैं.

नोट- हमने घाटी क्षेत्र के कुछ मैतेई बाहुल्य क्षेत्रों के राहत शिविरों में काम करने वाले वालंटियर्स से संपर्क करके मौजूदा स्थिति के बारे में पूछा है. लेकिन खबर लिखे जाने तक उनका कोई अपडेट नहीं मिला. जानकारी मिलते ही मैतेई बाहुल्य क्षेत्रों में स्थित राहत शिविरों की सूचना खबर में अपडेट कर दी जाएगी.

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