नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ सरकार ने आदिवासी संगठन मूलवासी बचाओ मंच पर एक साल का प्रतिबंध लगा दिया है। यह प्रतिबंध छत्तीसगढ़ विशेष जन सुरक्षा अधिनियम, 2005 की धारा 3 की उप-धारा (1) के तहत लगाया गया है। राज्य के गृह विभाग के उप-सचिव डी.पी. कौशल ने इस संबंध में अधिसूचना जारी की। इस प्रतिबंध का आधार संगठन द्वारा सुरक्षा बलों के कैंपों का विरोध करना और जनता को कथित तौर पर उकसाना बताया गया है। सरकार ने इसे राज्य की सुरक्षा और लोक व्यवस्था के लिए खतरा माना है।
हालांकि, सरकार के इस फैसले का विभिन्न आदिवासी संगठनों और कार्यकर्ताओं ने कड़ा विरोध किया है। बस्तर के आदिवासी समाजसेवियों का कहना है कि यह प्रतिबंध जल, जंगल, जमीन के मुद्दों पर संगठन की सक्रियता को रोकने का प्रयास है।
दंतेवाड़ा जिले की प्रमुख आदिवासी एक्टिविस्ट सोनी सोरी ने सरकार के इस कदम पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने द मूकनायक प्रतिनिधि से बातचीत करते हुए कहा, “सरकार मूलवासी बचाओ मंच जैसे संगठनों के संगठित होने से डर रही है। यह मंच आदिवासियों के हक की लड़ाई लड़ रहा है और सरकार को यह बर्दाश्त नहीं हो रहा। सरकार जंगलों को उद्योगपतियों को सौंपना चाहती है, इसलिए आदिवासी युवाओं के संगठन पर प्रतिबंध लगाया गया है।”
सोनी सोरी ने सरकार से पूछा, “मूलवासी बचाओ मंच ने ऐसा क्या किया जो उसे सुरक्षा विरोधी गतिविधियों में लिप्त बताया जा रहा है? सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि यह फैसला किस आधार पर लिया गया है।”
जारी की गई अधिसूचना के अनुसार, राज्य और केंद्र सरकार द्वारा माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में विकास कार्यों को बढ़ावा देने के लिए सुरक्षा बलों के कैंप स्थापित किए जा रहे हैं। लेकिन मूलवासी बचाओ मंच इन कैंपों का लगातार विरोध कर रहा है और स्थानीय जनता को इसके खिलाफ भड़का रहा है। सरकार का दावा है कि संगठन की गतिविधियों से लोक व्यवस्था और शांति भंग हो रही है, जिससे नागरिकों की सुरक्षा खतरे में है।
अधिसूचना में यह भी कहा गया है कि संगठन न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप कर रहा है और विधि द्वारा स्थापित संस्थाओं की अवज्ञा को बढ़ावा दे रहा है। इन सभी कारणों को राज्य की सुरक्षा के प्रतिकूल माना गया है।
सरकार ने मूलवासी बचाओ मंच पर यह प्रतिबंध 2005 के विशेष जन सुरक्षा अधिनियम के तहत लगाया है। अधिनियम की धारा 3 के अनुसार, किसी संगठन को प्रतिबंधित करने का अधिकार सरकार को है, यदि उसकी गतिविधियां राज्य की सुरक्षा या लोक व्यवस्था के लिए खतरा उत्पन्न करती हैं। यह प्रतिबंध अधिसूचना की तारीख से प्रभावी होकर एक साल तक लागू रहेगा।
बस्तर क्षेत्र के कई आदिवासी समाजसेवियों ने इस फैसले को आदिवासियों के हितों पर सीधा हमला बताया। उनका कहना है कि यह प्रतिबंध जल, जंगल, जमीन की रक्षा के लिए आदिवासी समुदाय की मुहिम को कमजोर करने का प्रयास है।
एक आदिवासी नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “सरकार उद्योगपतियों और बड़े कॉर्पोरेट्स को लाभ पहुंचाने के लिए आदिवासियों की आवाज दबा रही है। यह प्रतिबंध केवल एक रणनीति है ताकि आदिवासी अपनी जमीन और संसाधनों की रक्षा के लिए आवाज न उठा सकें।”
इस फैसले ने आदिवासी युवाओं के बीच भी गुस्सा पैदा कर दिया है। कई युवाओं ने इसे आदिवासी समुदाय की स्वतंत्रता और उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन बताया। बस्तर संभाग के आदिवासी इस आदेश को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बता रही है।
इस मामले में कानूनी जानकर एडवोकेट मयंक सिंह ने द मूकनायक को बताया, कि छत्तीसगढ़ विशेष जन सुरक्षा अधिनियम, 2005 का इस्तेमाल पहले भी संगठनों पर प्रतिबंध लगाने के लिए किया जा चुका है। लेकिन किसी संगठन पर प्रतिबंध लगाने के लिए ठोस सबूत और पर्याप्त कारण आवश्यक हैं।
मूलवासी बचाओ मंच के प्रतिबंध के बाद छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्रों में तनाव बढ़ सकता है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक आदिवासी संगठन इस फैसले के खिलाफ आंदोलन कर सकते हैं। मंच के प्रतिबंध के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने की भी तैयारी शुरू कर दी गई है।
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