भोपाल। मध्य प्रदेश जनजातीय संग्रहालय की ‘लिखन्दरा प्रदर्शनी दीर्घा’ में इस महीने भील समुदाय की युवा चित्रकार अंजली बरिया की 55वीं शलाका प्रदर्शनी का आयोजन किया गया है। यह प्रदर्शनी 3 नवंबर से 30 नवंबर 2024 तक निरंतर चलेगी, जिसमें अंजली के अद्वितीय चित्रों को प्रदर्शित करने के साथ-साथ विक्रय के लिए भी उपलब्ध कराया गया है। इस पहल के माध्यम से जनजातीय चित्रकारों को अपने चित्रों का प्रदर्शन और बिक्री का एक सशक्त मंच दिया जाता है।
अंजली बरिया का जन्म भोपाल में हुआ, लेकिन उनके परिवार की जड़ें जनजातीय बहुल झाबुआ जिले से जुड़ी हुई हैं। उनके पिता, दुबु बारिया, खुद एक प्रख्यात भीली चित्रकार हैं और वर्तमान में मानव संग्रहालय, भोपाल में कार्यरत हैं। उनकी दादी, पद्मश्री भूरीबाई, जो मध्यप्रदेश की कला जगत में एक प्रसिद्ध नाम हैं, उन्होंने भी अंजली को अपने चित्रकर्म से प्रेरित किया। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि अंजली के खून में चित्रकला का हुनर रचा-बसा है। कला की यह विरासत अंजली को न केवल एक अद्वितीय कलाकार बनाती है, बल्कि उन्हें अपनी जनजातीय पहचान और संस्कृति के प्रति भी प्रगाढ़ लगाव का अनुभव कराती है।
तीन भाई-बहनों में मंझली अंजली, बचपन से ही चित्रकला के प्रति आकर्षित रही हैं। अपने पिता के मार्गदर्शन में उन्होंने इस कला की बारीकियां सीखीं और समय-समय पर उनके चित्रकर्म में सहायता भी की। अपने चित्रों में अंजली ने हिरण, मोर, साही जैसे जनजातीय चित्रकला के पारंपरिक तत्वों को आधुनिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है। उनके चित्रों में प्रकृति का सौंदर्य, वन्यजीवन और जीवंत रंगों का अद्भुत संयोजन दृष्टिगत होता है।
अंजली ने स्नातक तक की शिक्षा प्राप्त की है और वर्तमान में वे चित्रकला को व्यावसायिक रूप से अपनाते हुए इसे अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा बना चुकी हैं। उन्होंने हैदराबाद, नई दिल्ली जैसे विभिन्न शहरों में आयोजित कई एकल और संयुक्त प्रदर्शनियों में भाग लिया है, जहाँ उनकी कला को दर्शकों ने बहुत सराहा। उनकी चित्रकारी में प्रकृति की सुंदरता और भीली जनजातीय जीवन का यथार्थता से चित्रण देखने को मिलता है।
द मूकनायक से बातचीत में अंजली अपनी सफलता का संपूर्ण श्रेय अपने पिता दुबु बारिया को देती हैं। उन्होंने कहा, "पिता ने न केवल मुझे चित्रकला का सही मार्ग दिखाया, बल्कि हमेशा प्रेरणा दी। उनके सानिध्य में मैंने भीली चित्रकला की विशिष्टताओं को समझा और इसे अपने चित्रों में जीवंतता के साथ प्रस्तुत करने का प्रयास किया।" दुबु बारिया की सतत प्रेरणा और मार्गदर्शन ने अंजली की कला को एक नई दिशा दी, जिससे वे आज भीली चित्रकला की महत्वपूर्ण हस्ती बन पाई हैं।
भीली चित्रकला में हर चित्र की अपनी कहानी होती है, और अंजली की कला में यह कहानी विशेष रूप से सुंदर और सजीव बनकर उभरती है। उनके चित्रों में वन्यजीवन के साथ प्रकृति का विविध रंग और जीवंतता परिलक्षित होती है। उनके चित्रों में हिरण, मोर और साही जैसे जीवों का चित्रण अद्भुत है, जो उनके जनजातीय जीवन और परंपराओं के साथ उनके गहरे संबंध को दर्शाता है।
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