अम्बेडकरवादी फिल्म निर्देशक पा. रंजीत की पहली हिंदी फिल्म होगी 'बिरसा मुंडा'

रंजीत 2019 में अपनी पहली गैर-तमिल परियोजना 'बिरसा मुंडा' के जीवन पर आधारित बायोपिक पर काम कर रहे थे। बाद में इस फिल्म को कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया गया जिसके बाद रंजीत ने सारपट्टा परंबरई की पटकथा लिखी और उसे निर्देशित किया।
वर्ष 2021 में भारत सरकार ने बिरसा मुंडा की जयंती 15 नवंबर को 'जनजातीय गौरव दिवस' के रूप में घोषित किया।
वर्ष 2021 में भारत सरकार ने बिरसा मुंडा की जयंती 15 नवंबर को 'जनजातीय गौरव दिवस' के रूप में घोषित किया।
Published on

चेन्नई- कबाली, काला, और सारपट्टा परंबरई जैसी चर्चित फिल्मों के लिए माने जाने वाले प्रसिद्ध तमिल फिल्म निर्देशक पा. रंजीत अपनी पहली हिंदी फिल्म की तैयारी में हैं। यह फिल्म भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और आदिवासी नायक बिरसा मुंडा पर आधारित होगी। हालाँकि निर्देशक ने अभी फिल्म के कथानक या इससे जुडी कोई जानकारी नहीं दी है. रंजीत अम्बेडकरवादी सोच और सामाजिक मुद्दों पर आधारित फिल्मों के लिए जाने जाते हैं.

रंजीत ने हाल ही में एक इंटरव्यू में पुष्टि की है कि उनकी अगली फिल्म का नाम 'बिरसा मुंडा' रखा गया है और इसकी पटकथा रंजीत और उनके दोस्त ने लिखी है जो लगभग पूरी हो चुकी है। उन्होंने यह भी बताया कि वे कलाकारों का चयन कर रहे हैं और जल्द ही इस पर आधिकारिक घोषणा करेंगे। बताया जाता है की इस फिल्म के लिए अक्षय कुमार और रणवीर सिंह के नामों पर चर्चा चल रही है.

जानकारी के अनुसार रंजीत 2019 में बिरसा मुंडा के जीवन पर आधारित बायोपिक पर काम कर रहे थे और इसे रंजीत की पहली गैर-तमिल परियोजना माना जा रहा था। फिल्म का निर्माण नमः पिक्चर्स द्वारा किया जाना था जो 2018 में ईरानी फिल्म निर्माता माजिद मजीदी की बियॉन्ड द क्लाउड्स का सह-निर्माण कर चुकी है। हालांकि, फिल्म की कास्ट की घोषणा नहीं की गई।

2019 में शुरू होने की योजना के बावजूद, इस परियोजना को कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया गया था, जिसके बाद रंजीत ने सारपट्टा परंबरई की पटकथा लिखी और उसे निर्देशित किया। लेकिन अब, बिरसा मुंडा पर आधारित यह फिल्म उनकी पहली हिंदी फिल्म होगी, जो भारतीय आदिवासी नायक की वीरगाथा को बड़े पर्दे पर जीवंत करेगी।

फिल्म बिरसा मुंडा के जीवन और उनके संघर्षों को प्रदर्शित करेगी, जिन्होंने आदिवासी समुदायों के अधिकारों के लिए अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। उनके नेतृत्व में हुआ मुंडा विद्रोह या उलगुलान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय माना जाता है।

फिलहाल, पा रंजीत द्वारा निर्देशित तथा चियान विक्रम और मालविका मोहनन द्वारा अभिनीत  ऐतिहासिक ड्रामा 'थंगालान' 15 अगस्त को रिलीज होने के बाद से ही तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम में व्यापक प्रशंसा और बॉक्स ऑफिस पर सफलता मिल चुकी है।

 बिरसा मुंडा के घर उलिहातु, खूँटी में दर्शन करने के लिए आज भी लोग दूर दूर से आते हैं.
बिरसा मुंडा के घर उलिहातु, खूँटी में दर्शन करने के लिए आज भी लोग दूर दूर से आते हैं.

कौन थे बिरसा मुंडा ?

बिरसा मुंडा एक आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी, धार्मिक नेता और छोटानागपुर पठार क्षेत्र के मुंडा जनजाति से संबंधित लोक नायक थे. 19वीं शताब्दी में, बिरसा मुंडा ने बंगाल प्रेसीडेंसी (वर्तमान झारखंड) में एक आदिवासी धार्मिक सहस्राब्दी आंदोलन शुरू किया था.

"अबुआ राज सेटर जना, महारानी राज टुंडु जना" (महारानी का राज्य समाप्त हो और हमारा राज्य स्थापित हो) यह नारा बिरसा मुंडा ने दिया था, जिन्हें भारतीय आदिवासी समुदायों में 'भगवान' के रूप में भी पूजा जाता है।

बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर, 1875 को झारखंड के खूँटी जिले के उलीहातु गांव में हुआ था। वे केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी और आदिवासी नेता ही नहीं थे, बल्कि धार्मिक सुधारक भी थे, वर्ष 2021 में भारत सरकार ने बिरसा मुंडा की जयंती 15 नवंबर को 'जनजातीय गौरव दिवस' के रूप में घोषित किया।

जब ब्रिटिश सरकार ने छोटानागपुर में जमींदारी जैसी नई भूमि निपटान प्रणाली लागू की और मौजूदा आदिवासी व्यवस्था 'खुंटकट्टी' की जगह ले ली, जिसने पूरे समुदाय को भूमि का मालिकाना हक दिया था, तो आदिवासियों के जीवन और कार्य की स्थिति पर इसका गहरा असर पड़ा। इस नई निपटान प्रणाली के तहत, बाहरी लोगों जैसे महाजनों, जमींदारों और व्यापारियों ने आदिवासी भूमि पर कब्जा कर लिया और आदिवासियों को जमीन के मालिक से भूमिहीन मजदूर बना दिया। नए जमींदारों ने 'बंधुआ मजदूरी' या जबरन श्रम लागू किया और अक्सर आदिवासियों को खराब कामकाजी परिस्थितियों में बिना उचित भुगतान के काम करने के लिए मजबूर किया। इसके अलावा, अगर मुंडा लोग किसी भूमि पर खेती करते थे, तो जमींदार उनसे उच्च किराया वसूलते थे और उन्हें उच्च ब्याज दरों का भी सामना करना पड़ता था।

मुंडा विद्रोह, जिसे 'उलगुलान' या 'महान उथल-पुथल आंदोलन' के नाम से भी जाना जाता है, इन भूमि अतिक्रमण और जबरन धर्मांतरण प्रथाओं के खिलाफ प्रतिक्रिया के रूप में उभरा। इसके परिणामस्वरूप, बिरसा ने 1894 से मुंडा आदिवासियों को उपनिवेशवादियों और बाहरी लोगों, जिन्हें 'दिकू' कहा जाता था, के खिलाफ संगठित करना शुरू किया और 1895 में एक स्वतंत्र 'मुंडा राज' की स्थापना की। उन्होंने एक सफेद झंडा भी अपनाया और इसे स्वतंत्र मुंडा राज का प्रतीक घोषित किया। इस समूह के विद्रोहियों ने गुरिल्ला युद्धनीति अपनाई और चर्चों, पुलिस थानों और अन्य ब्रिटिश शासन के प्रतीकों पर सशस्त्र हमले किए।

बिरसा की संगठनात्मक और वक्तृत्व कौशल के साथ, उन्होंने छोटानागपुर, बंगाल और ओडिशा के जंगलों की विभिन्न आदिवासी समुदायों को एकजुट किया और अंग्रेजों के खिलाफ खरिया और उरांव समुदायों को एक मंच पर लाया। हालांकि, मार्च 1900 में, जब बिरसाऔर उनके अनुयायी जंगल में सो रहे थे, ब्रिटिश सेना ने उन्हें गिरफ्तार किया। उन्हें जेल में डाल दिया गया और कुछ महीनों बाद हैजे के कारण उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु से विद्रोह को भारी झटका लगा, और अंग्रेजों ने नियमित जवाबी हमलों के माध्यम से विद्रोह को दबा दिया। कई विद्रोहियों को गिरफ्तार, कैद या फांसी दी गई, जिससे 1900 के दशक के मध्य तक विद्रोह पूरी तरह से दबा दिया गया। हालांकि, विद्रोह के दब जाने के बावजूद, इसने आदिवासियों की अन्याय के खिलाफ लड़ने की क्षमता को उजागर किया और उत्पीड़न का विरोध किया।

द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.

The Mooknayak - आवाज़ आपकी
www.themooknayak.com