पचपन बरस की उम्र में जब शरीर के अंग भी धीरे-धीरे कमज़ोर होने लगते हैं, उस उम्र में भी वरदा गमेती सैकड़ों ग्रामीणों के लिए खेवनहार बनकर निस्वार्थ सेवा कर रहे हैं। राजस्थान के राजसमंद जिले के खमनोर में बाघेरी नाका डूब क्षेत्र में दो तटों पर बसे दो गांवों के निवासियों को इधर से उधर पहुंचाने का बीड़ा वरदा पिछले 4 सालों से निभा रहे हैं। गरीब वरदा बा इस कार्य को सेवा मानते हैं और अपनी मेहनत के एवज में किसी से पैसा या मेहनताना नहीं लेते। इसके लिए उन्होंने अपने हाथों से बांस, रस्सियों, टायर और ट्यूबों की मदद से जुगाड़ की नाव भी बनाई है, जिसमे वे लोगों को बांध के एक छोर से दूसरी छोर ले जाते हैं।
वरदा गमेती चारणों का मदार ग्राम के निवासी हैं, जिनका खेत जाखमा गाँव में पड़ता है जो बाघेरी नाका बांध के दूसरे तट पर है। दोनों गांव के बीच आने-जाने के लिए वर्षों पहले एक पुराना पुलिया था, लेकिन बांध बन जाने के बाद पुलिया डूब गया। सड़क मार्ग से जाने पर रास्ता 18-20 किलोमीटर पड़ता है। दोनों बस्ती के लोगों की परेशानी देखकर वरदा को जुगाड़ की नाव बनाने का ख्याल आया। सड़क से कठार या मचीन्द मार्ग से दोनों गांव का रास्ता काफी लंबा पड़ता है लेकिन वरदा की नाव से फासला महज 5- 7 मिनट के सफर में तय हो जाता है। दोनों गांवों के बीच रोटी-बेटी के सम्बंध होने से लोगों को सामाजिक मेलमिलाप के लिए आना-जाना पड़ता है। ऐसे में वरदा लोगों के खेवनहार बनकर अपनी जुगाड़ी नैया से नदिया पार करवाते हैं।
क्षेत्र के युवा सामाजिक कार्यकर्ता गिरीश पालीवाल बताते हैं कि, वरदा निरक्षर होते हुए भी इलाके की गहरी समझ रखते हैं। वरदा ये जानते है कि गहरे पानी में जुगाड़ की नाव से सवारी ले जाना जोख़िम भरा कार्य है, लेकिन घर और खेतों में आने-जाने की मजबूरी के चलते लोग उन्हें नदी पार करवाने को कहते हैं और दूसरों की मदद से मिलने वाली संतुष्टि के लिए वरदा उनका कहा मानते हैं। कई बार लोग तट पर आकर आवाज़ लगाते हैं तो अपने खेत पर काम छोड़कर वरदा उनकी मदद को चले जाते हैं। वरदा ने दोनों तटों की जमीन पर खूंटे बांध कर रस्सी से जोड़ रखा है। जुगाड़ पर सवारी के बैठने के बाद वरदा रस्सी खींचना शुरू कर देते हैं और थोड़ी ही देर मे बेड़ा पार लग जाता है। वे जुगाड़ पर एक समय में चार से पांच लोगों को बड़ी सावधानी से तट पार करवाते हैं और इतने सजग रहते हैं, जिससे अभी तक कोई संकट की स्थिति नहीं बनी।
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