मध्य प्रदेश: राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय में आदिवासी वर्ग के छात्रों का 50% आरक्षण घटाकर 7.5% किया, जानिए क्या है कारण?

आरक्षण घटने से आदिवासी छात्रों में रोष, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने राष्ट्रपति को लिखी चिट्ठी.
मध्य प्रदेश: राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय में आदिवासी वर्ग के छात्रों का 50% आरक्षण घटाकर 7.5% किया, जानिए क्या है कारण?
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भोपाल। जनजातीय समाज के सांस्कृतिक अध्ययन और आदिवासी समुदायों पर अनुसंधान करने के लिए एवं प्रौद्योगिक, उच्च शिक्षा से जोड़ने के लिए मध्य प्रदेश के अमरकंटक में स्थापित इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय में आदिवासी छात्रों के आरक्षण में कटौती की गई है। विश्वविद्यालय स्थापना के बाद यहाँ आदिवासी छात्र-छात्राओं के लिए 50 प्रतिशत का आरक्षण था। लेकिन हाल में इसे घटाकर 7.5 प्रतिशत कर दिया गया है। इसके साथ आदिवासी समुदाय की संस्कृति को संरक्षित करने बजाय यहां धार्मिक गतिविधियों को बढ़ाया दिया जा रहा है।

इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय का उद्देश्य आदिवासी वर्ग के छात्र-छात्राओं को उच्च शिक्षा, आदिवासी संस्कृति, आदिवासी समुदाय के उत्थान जैसे अवसर प्रदान करना था, लेकिन अब आरोप लग रहे हैं कि वर्तमान सरकार आदिवासी छात्रों को मिलने वाले अधिकारों से वंचित कर रही है। यूनिवर्सिटी में अध्ययनरत छात्रों ने आरोप लगाया है कि उन्हें उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। छात्र सोशल मीडिया के माध्यम से प्रधानमंत्री से सवाल कर रहे हैं कि आदिवासी को मिलने वाले अधिकारों से सरकार इतनी नफरत क्यों कर रही है?

द मूकनायक से बातचीत करते हुए आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता कृतिका ठाकुर ने बताया कि अमरकंटक इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय में आदिवासी छात्रों के हकों को छीना जा रहा है। जनजातीय विश्वविद्यालय होने के बावजूद भी आदिवासी आरक्षण को घटाकर 7.5 प्रतिशत किया गया है, जबकि यह आरक्षण पूर्व में 50 प्रतिशत था। कृतिका ने कहा सरकार यूनिवर्सिटी में आदिवासियों की भागीदारी कम कर रही हैं। जबकि अनूपपुर और अमरकंटक आदिवासी बहुल इलाके हैं।

आदिवासी प्रोफेसर की भी कमी

आदिवासी छात्रों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप है कि विश्वविद्यालय में 200 की संख्या में प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर है, जिनमें से मात्र 4 असिस्टेंट प्रोफेसर एवं 1 एसोसिएट प्रोफेसर ही जनजातीय (आदिवासी) वर्ग के हैं। छात्रों ने इन्हें बढ़ाने की भी मांग सरकार से की है। आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता कृतिका ठाकुर और सुनील कुमार आदिवासी के साथ यूनिवर्सिटी के छात्रों ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को ज्ञापन दिया था। आरोप है कि सरकार में बैठे जिम्मेदार लोगों को कई बार समस्याओं से संबंधित चिठ्ठी लिखी गई, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई।

इन उद्देश्यों के लिए ट्राइबल यूनिवर्सिटी की हुई स्थापना

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय , अमरकंटक देश के संसद के एक अधिनियम द्वारा स्थापित किया गया था। यह विश्वविद्यालय 2007 में अस्तित्व में आया और जुलाई 2008 को कार्रवाई में आया। विश्वविद्यालय के क्षेत्राधिकार पूरे देश में है और यह पूरी तरह से विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के माध्यम से केन्द्र सरकार द्वारा वित्त पोषित है। यूनिवर्सिटी का एक क्षेत्रीय शिक्षण संस्थान मणिपुर में भी स्थापित किया गया है।

आदिवासी समुदाय के लोगों की सांस्कृतिक विरासत, कला और शिल्प के कौशल से समृद्ध होते हैं, लेकिन वे अभी भी उच्च शिक्षा के संबंध के रूप में अच्छी तरह से जीवन के अन्य क्षेत्रों में हाशिए पर हैं। समाज प्रौद्योगिकी के साथ उच्च शिक्षा के क्षेत्र में उन्नत करने की दिशा में और उनकी संस्कृति के संरक्षण के लिए विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी।

ट्राइबल मॉडल स्कूल के आरक्षण में भी कटौती

ट्राइबल विश्वविद्यालय की एक्ट से स्थापित ट्राइबल मॉडल स्कूल के जनजातीय आरक्षण को कम किया गया है। यहां इस स्कूल में 80 प्रतिशत से 7.5 प्रतिशत आरक्षण किया गया है। अब यहाँ भी आदिवासी समुदाय के बच्चों को एडमिशन के लिए परेशानी हो रही है।

यूनिवर्सिटी में लगभग 4 हजार सीटें

प्रदेश के अनूपपुर जिले के अमरकंटक में स्थित इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय में छात्रों के लिए करीब चार हजार सीटें है, जिनमें परंपरागत कोर्स संचालित है। द मूकनायक से बातचीत करते हुए यूनिवर्सिटी के शोध छात्र एवं जनजातीय यूनिवर्सिटी छात्र संघ के उपाध्यक्ष रोहित मरावी ने बताया कि वर्ष 2022 में यूनिवर्सिटी में जनजाति समुदाय के छात्रों ने एडमिशन करीब 7 प्रतिशत ही रहे है। जबकि विश्वविद्यालय की स्थापना का उद्देश्य विशेषकर आदिवासी छात्रों को उच्च शिक्षा से जोड़ना था। अन्य छात्रों के मुताबिक यूनिवर्सिटी ने ट्राइबल मॉडल स्कूल के लिए पहले एक कमेटी बनाई और आरक्षण को 80 प्रतिशत से घटा कर 7.5 प्रतिशत कर दिया।

दिग्विजय सिंह ने लिखा राष्ट्रपति को पत्र

अमरकंटक इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय में व्याप्त समस्याओं को लेकर मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को पत्र लिखा है। पत्र में दिग्विजय सिंह ने राष्ट्रपति से अनुरोध किया की छात्रों द्वारा अनूपपुर जिले में संचालित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक में जनजातीय समुदाय के विद्यार्थियों के हितों का ध्यान नहीं रखे जाने की शिकायत की है।

जनजाति समाज के युवाओं के बीच में कार्यरत कृतिका ठाकुर के साथ आये छात्रों के प्रतिनिधिमंडल ने बताया है कि इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक की स्थापना वर्ष 2007 में जनजातीय समुदाय के विद्यार्थियों के उज्जवल भविष्य एवं जनजातीय समुदाय की कला एवं संस्कृति को संरक्षित रखने के उद्देश्य से की गई थी। स्थापना वर्ष में विश्वविद्यालय में जनजातीय वर्ग के विद्यार्थियों की संख्या 70-80 प्रतिशत थी जो वर्ष 2012-13 से निरंतर कम होकर वर्ष 2022 में मात्र 14.44 प्रतिशत रह गई है। इसी प्रकार विश्वविद्यालय में 200 की संख्या में प्रोफेसर / एसोसिएट प्रोफेसर/ असिस्टेंट प्रोफेसर है जिनमें से मात्र 4 असिस्टेंट प्रोफेसर एवं 1 एसोसिएट प्रोफेसर ही जनजातीय वर्ग के है। विद्यार्थियों ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक में जनजातीय वर्ग की विभिन्न समस्याओं का निराकरण किए जाने का निवेदन किया है।

मेरा आपसे अनुरोध है कि इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक में स्थापना वर्ष की तुलना में वर्तमान में जनजातीय वर्ग के विद्यार्थियों एवं स्टाफ की संख्या में कमी आने के कारणों का पता लगाने एवं इनके हितों के संरक्षण के लिये संबंधित को समुचित निर्देश प्रदान करने का कष्ट करें।

दिग्विजय सिंह ने इस पूरे मामले में भारत सरकार के जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा को भी पत्र लिखा है। इसमें में भी उन्होंने छात्रों की मांग पर कार्यवाही की जाने की बात कही है।

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