5 आदिवासी महिलाएं जिन्होंने अपने कार्य क्षेत्र में पहला स्थान प्राप्त कर समाज का मान बढ़ाया

5 आदिवासी महिलाएं जिन्होंने अपने कार्य क्षेत्र में पहला स्थान प्राप्त कर समाज का मान बढ़ाया
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नई दिल्ली। झारखंड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू का नाम जैसे ही राष्ट्रपति के लिए घोषित किया गया, पूरे देश में आदिवासी समाज में खुशी की लहर दौड़ गई। हर कोई इस बात से खुश था कि पहली बार देश को आदिवासी राष्ट्रपति मिलने जा रहा है। शुक्रवार को पूरे दिन देश के अलग-अलग हिस्सों में खुशी मनाई गई।


नवनिर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ओडिशा के मयूरभंज जिले से ताल्लुक रखती है और यहीं से उन्होंने अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया। उन्होंने गांव के सरपंच से लेकर राष्ट्रपति बनने तक का सफर तय किया है। अब मुर्मू देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति हैं। इस बात की चर्चा आपने खुद देखी और सुनी होगी। लेकिन और भी कई आदिवासी महिलाएं हैं जिन्होंने पहली बार किसी मुकाम को प्राप्त कर आदिवासी समाज का मान बढ़ाया है। तो चलिए जानते हैं उन आदिवासी महिलाओं के बारे में।

डॉ. सोना झरिया मिंज


झारखंड राज्य की राजधानी रांची से ताल्लुक रखने वाली डॉ. सोन झरिया मिंज प्रथम आदिवासी कुलपति नहीं, प्रथम आदिवासी महिला कुलपति हैं। साल 2020 में झारखंड राज्य की तत्कालिक राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें वीसी के लिए नियुक्त किया था। डॉ. झरिया की नियुक्ति हजारीबाज जिले के सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय के लिए हुई थी। इससे पहले वह जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में कंप्यूटर साइंस की डीन भी रह चुकी थीं। इसके साथ ही सामाजिक कार्यों से जुड़ी हुई हैं। डॉ. झरिया झारखंड के जाने-माने गोससनर कॉलेज रांची के संस्थापक प्राचार्य और एनडब्लू जीएल चर्च के प्रथम बिशप डॉ. निर्मल मिंज की बेटी हैं। डॉ. झरिया ने अपनी प्राथमिक शिक्षा रांची के एक हिंदी मीडियम स्कूल से पूरी की। उसके बाद दिल्ली, बंगलुरु, और चेन्नई से आगे की पढ़ाई पूरी की। पढ़ाई पूरी होने के बाद साल 1991 में इनकी नियुक्ति जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर हुई। जहां वह लगातार दलित शोषित स्टूडेंट्स की मदद करती रहीं। इसका सबसे बड़ा कारण है। उन्होंने खुद आदिवासी होने के नाते भेदभाव को देखा था। एक इंटरव्यू में डॉ. झरिया बताती हैं कि एक आदिवासी पादरी की बेटी होने के कारण उनका किसी अच्छे कॉवेंट स्कूल में एडमिशन नहीं हुआ। इसके बाद जब एक हिंदी मीडियम स्कूल एडमिशन हुआ भी तो मैथ्स और संस्कृत में अच्छे नंबर आने के बाद भी टीचर उन्हें कम आंकते थे और आगे की पढ़ाई के लिए मैथ्स नहीं लेने की सलाह देते थे। लेकिन डॉ. झरिया ने सारी बातों को दरकिनार करते हुए आगे की पढ़ाई मैथ्स से की और देश की प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय की प्रोफेसर बनी।

श्रीधन्या सुरेश


हिंदी पट्टी में हो सकता है बहुत लोगों ने इस नाम को नहीं सुना हो, लेकिन दक्षिण भारत में लोग इस नाम से परिचित हैं। श्रीधन्या केरल की पहली आदिवासी आईएएस है। एक गरीब परिवार में पैदा हुई श्रीधन्या ने अपनी मेहनत के दम पर वो मुकाम हासिल किया है, जिसका लोग सपना देखते हैं। इनके माता-पिता दोनों ही तीर धनुष बाजार में मजदूर थे। लेकिन बेटी को मजदूर नहीं बनाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने बेटी की पढ़ाई में उसकी खूब मदद की। श्रीधन्या केरल के वायनाड जिले से ताल्लुक रखती हैं। इन्होंने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई वायनाड से की और उसके बाद जूलॉजी में स्नातक और परास्नातक किया। यूपीएससी क्रैक करने से पहले श्रीधन्या केरल राज्य सरकार के अनुसूचित जनजाति विभाग में क्लर्क थीं। यही उस वक्त के वायनाड जिले के कलेक्टर श्रीराम राव ने इन्हें यूपीएससी की तैयारी करने की सलाह दी। श्रीधन्या इस सलाह को स्वीकार करते हुए तैयारी शुरू की और सफलता प्राप्त की। इस समय भी परेशानियों ने इनका पीछा नहीं छोड़ा। दिल्ली में यूपीएससी का इंटरव्यू के देने के लिए श्रीधन्या के पास पैसे नहीं थे। ऐसी परिस्थिति में उनके दोस्त उनकी मदद को आगे आए और नतीजा यह हुआ कि श्रीधन्या ने किसी को भी निराश नहीं किया।

रेणुका सिंह सरुता-


छत्तीसगढ़ आदिवासी बहुल राज्य है। लेकिन आजादी के इतने सालों बाद यहां आदिवासी महिला केंद्रीय मंत्री नहीं बनी। रेणुका सिंह, मोदी सरकार में छत्तीसगढ़ से पहली महिला केंद्रीय मंत्री बनी। उन्हें जनजातीय कार्य मंत्रालय दिया गया। रेणुका सिंह ने 2019 लोकसभा चुनाव में सरगुजा संभाग सीट से चुनाव जीता था। केंद्रीय मंत्री बनने के बाद छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदाय में खुशी की लहर थी।

रिया तिर्की –


रिया पहली आदिवासी महिला है। जिन्होंने फेमिना मिस इंडिया प्रतियोगिता का सफर पूरा किया है। रिया ने भले ही यह खिताब नहीं जीता हो, लेकिन आदिवासी समाज के लिए ये गौरव का पल था। रिया झारखंड की राजधानी रांची से ताल्लुक रखती हैं। इन्होंने फेमिना मिस इंडिया 2022 में हिस्सा लिया था। रिया के लिए यहां तक का सफर इतना आसान नहीं था। वह साल 2015 से फेमिना मिस इंडिया में ऑडिशन दे रही थीं। लेकिन हर बार निराशा ही हाथ लगी। लगभग सात साल बाद उन्हें इस बार सफलता मिल पाई। रिया को मिस इंडिया झारखंड से नवाजा गया। फिनाले खत्म होने के बाद मुंबई से रांची वापस आई रिया ने रांची एयरपोर्ट पर आदिवासी नृत्य कर अपने यहां तक के सफर की खुशी जाहिर की। साथ ही रिया ने कहा कि उन्हें आदिवासी होने पर गर्व है। आपको बता दें 24 वर्षीय रिया ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई रांची से की और उच्च शिक्षा विशाखापत्तनम से प्राप्त की है। रिया के पिता बैंक मैनेजर है और मां गृहणी हैं।

रेनी कुजूर-


रेनी आदिवासी समाज का वो नाम है जो आज किसी पहचान का मोहताज नहीं है। रेनी को लोग हॉलीवुड की पॉप सिंगर रेहाना के नाम से इंडियन रेहाना के तौर पर जानते हैं। रेनी ने अपने सांवले रंग से वो कर दिखाया। जिसके लिए लोग उसे काली परी कहते थे। दरअसल रेनी एक सफल मॉडल बनाना चाहती थीं। लेकिन उनके सांवले रंग के कारण कोई भी उनको आगे नहीं आने दे रहा था। यहां तक की मेकअप आर्टिस्ट भी उसका मेकअप करने से कतराते थे। क्योंकि आज भी ब्यूटी की दुनिया में गोरे रंग को ज्यादा तवज्जो दिया जाता है।

इसलिए रेनी के सांवले रंग के कारण उनके साथ भेदभाव होता था। छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के एक छोटे से गांव में रहने वाली रेनी का परिवार भी इतना सम्पन्न नहीं था। लेकिन रेनी ने बचपन में ही मॉडल बनने का सपना देख लिया था। एक बार बचपन में जब वह स्कूल में फैंसी ड्रेस कंपीटीशन में गईं तो स्टेज पर चढ़ने से पहले ही लोग उसे काली परी कहकर पुकारने लगे। लेकिन रेनी ने कभी इन चीजों को अपने पर हावी नहीं होने दिया। वह लगातार दिल्ली आ कर मॉडलिंग की कोशिश करती।

लेकिन सांवला रंग होने के कारण लोग उन्हें रिजेक्ट कर देते। धीरे-धीरे ये सारी चीजें उसे परेशान करने लगी। इसी बीच रेनी की किसी फ्रेंड ने उसे रेहाना जैसा फोटोशूट कराने की सलाह दी। इस सलाह ने रेनी की जिंदगी को पूरी तरह से बदल दी। वह तुरंत इंटरनेट सेंसेशन बन गईं। खुद रेहाना, रेनी को इंटरनेट पर देखकर हैरान हो गईं। इसके बाद से रेनी की जिंदगी बदल गई और आज वह एक सफल मॉडल है।

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