MP के श्योपुर में पिछले एक महीने में 3 कमजोर आदिवासी बच्चों की मौत, क्षेत्र में कुपोषण बढ़ने की आशंका!

श्योपुर के सहराना गांव में अभी भी कुछ बच्चे बीमार हैं, जबकि कई बच्चे उनकी आयु के अनुपात के लिहाज से काफी कमजोर हैं। जो बच्चे कमजोरी के कारण ज्यादा गंभीर हैं। इन्हीं में से तीन बच्चों की मौत हो चुकी है।
सांकेतिक फोटो
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भोपाल। मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल इलाकों में एक बार फिर कुपोषण के मामले तेजी से सामने आने लगे हैं। ताजा मामला श्योपुर जिले के ग्राम पंचायत टर्राकलां के कोलू के सहराना गांव का हैं। यहां एक महीने में तीन बच्चों की मौत हो चुकी है। एक स्थानीय समाचार पत्र में प्रकाशित खबर के मुताबिक तीनों मौतों का कारण कुपोषण हैं।

बताया जा रहा है कि, मौत का कारण और समय तो ग्रामीण अलग-अलग बता रहे हैं, लेकिन ग्रामीणों के मुताबिक सभी मरने वाले बच्चे कमजोर थे। मतलब, इन बच्चों की मौत कुपोषण के कारण होने की आशंका है। इस क्षेत्र में आदिवासियों का सबसे पिछड़ा समुदाय सहरिया समाज के लोग रहते हैं। यहां पूर्व में भी कुपोषण से बच्चों की मौत की घटनाएं सामने आईं है। प्रदेश का श्योपुर जिला सर्वाधिक कुपोषण ग्रसित जिला है।

ग्रामीणों के मुताबिक, सहराना गांव में अभी भी कुछ बच्चे बीमार हैं, जबकि कई बच्चे उनकी आयु के अनुपात के लिहाज से काफी कमजोर हैं। जो बच्चे कमजोरी के कारण ज्यादा गंभीर हैं, उनमें नरेश आदिवासी की बेटी सैथल भी है। उसकी उम्र एक साल है।

नरेश आदिवासी ने एक स्थानीय दैनिक अखबार को बताया कि उनकी बड़ी बेटी मैथल जो 3 साल की थी, उसकी महीनेभर पहले मौत हो गई थी। अब उन्हें छोटी बेटी सैथल की चिंता सता रही है। वह बेटी को शुक्रवार को ही गांव के डॉक्टर को दिखाकर लाए हैं, पर आराम नहीं मिल रहा। गांव में रहने वाले बल्लू आदिवासी का बेटा भी कमजोर था जिसकी करीब 14-15 दिन पहले मौत हो गई। इसके साथ ही कीर्ति पुत्री रामपाल की मौत चार दिन पहले हुई है, वह भी बहुत कमजोर थी। यानी कुपोषण की चपेट में थी।

इधर, उप स्वास्थ्य केंद्र, टर्राकलां के प्रभारी नरेंद्र शर्मा ने बताया की गाँव में बच्चों के मौत होने की जानकारी मिली है। गाँव से मरीज तो रोज आते ही जानकारी कर रहे हैं।

कोलू का सहराना गांव में आदिवासी सहरिया बहुल गाँव है। यहां करीब 200 घर हैं। यहां के लोग मजदूरी करते हैं, ज्यादातर लोग काम की तलाश में गाँव से पलायन कर जाते हैं। श्योपुर में आदिवासी के लिए काम कर रहीं संस्था एकता परिषद के सदस्य जय सिंह जादौन ने बताया इस मौसम में कमजोर बच्चे जल्द ही अन्य बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। ज्यादातर घटनाएं बारिश के मौसम में सामने आती हैं।

क्या है कुपोषण?

कुपोषण के मायने होते हैं आयु और शरीर के अनुरूप पर्याप्त शारीरिक विकास नहीं होना, एक स्तर के बाद यह मानसिक विकास की प्रक्रिया को भी अवरुद्ध करने लगता है। बहुत छोटे बच्चों खासतौर पर जन्म से लेकर 5 वर्ष की आयु तक के बच्चों को भोजन के जरिए पर्याप्त पोषण आहार नहीं मिलने के कारण उनमें कुपोषण की समस्या जन्म ले लेती है। इसके परिणाम स्वरूप बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता का कम होना होता है और छोटी-छोटी बीमारियाँ उनकी मृत्यु का कारण बन जाती हैं। ऐसे बच्चो में प्रोटीन, विटामिन्स, आदि की कमी होती है। रोगप्रतिरोधक झमता कम होने के कारण वह छोटे-मोटे रोग से भी नहीं लड़ पाते और मौत हो जाने का खतरा बढ़ जाता है।

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