कोलकाता। आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने कहाकि आदिवासियों को अपना अलग सरना धर्म (प्रकृति पूजा) कोड चाहिए। 2011 की जनगणना में प्रकृति पूजक आदिवासियों ने लगभग 50 लाख की संख्या में सरना धर्म लिखाया था और जैन धर्म लिखाने वालों की संख्या लगभग 44 लाख थी। तब हम आदिवासियों को सरना धर्म कोड की मान्यता से अब तक वंचित क्यों किया गया है? हम लोग हर हाल में 2023 में सरना धर्म कोड लेकर रहेंगे।
मुर्मू यहां शुक्रवार को कोलकाता के ब्रिगेड परेड मैदान में ' विश्व सरना धर्म कोड जनसभा' में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे। इस विशाल आयोजन में झारखंड, बिहार, बंगाल, उड़ीसा, असम, त्रिपुरा, अरुणांचल प्रदेश आदि प्रदेशों से हजारों की संख्या में आदिवासी शामिल हुए। बारिश के बावजूद भारी संख्या में स्त्री पुरूष, बच्चे और बुजुर्ग कार्यक्रम में सम्मिलित हुए।
मुर्मू ने कहा कि आदिवासी समाज को नया समाज बनाना जरूरी है ताकि प्रत्येक आदिवासी गांव- समाज में व्याप्त नशापान, अंधविश्वास, डायन प्रथा, ईर्ष्या द्वेष, जुर्माना लगाना, सामाजिक बहिष्कार करना, आदिवासी महिला विरोधी मानसिकता, बहुमूल्य वोट को हँड़िया दारु, चखना, रुपयों आदि से खरीद बिक्री करना आदि खत्म हो सके। इसके लिए आदिवासी स्वशासन व्यवस्था या ट्राइबल सेल्फ रूल सिस्टम में जनतांत्रिक और संवैधानिक सुधार भी अनिवार्य है, ताकि प्रत्येक आदिवासी गांव - समाज में वंशानुगत नियुक्त माझी परगना, मानकी मुंडा आदि की जगह गांव - समाज के सभी स्त्री-पुरुष मिलकर अपने स्वशासन के अगुआ का चयन कर कुप्रथाओं को दूर करते हुए प्रगतिशील समाज का निर्माण कर सकें।
सालखन मुर्मू ने कहाकि 30 जून 1855 को संथाल विद्रोह का आगाज़ हुआ था, मूलनिवासी अपने अधिकारों के लिए लड़े थे। आज भारत की आजादी को इतने वर्ष हो गए हैं लेकिन 13 करोड़ आदिवासियों को सच्ची आजादी तभी मिलेगी जब भारतीय संविधान में प्रदत्त आदिवासी अधिकारों को जमीन पर उतारा जाएगा। तभी उन्हें सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक आजादी मिलेगी। इसके लिए आदिवासी सेंगेल अभियान ने 15 जून को कतिपय राज्यों में भारत बंद को सफल किया है।
धरना-प्रदर्शन और भारत बंद का आह्वान करेंगे
सेंगेल अभियान द्वारा सिलसिलेवार विरोध प्रदर्शन होंगे जिसमें एक सितंबर को 7 प्रदेशों के लगभग 400 प्रखंडों में धरना प्रदर्शन का आयोजन किया जाएगा। तत्पश्चात 1 अक्टूबर को भारत बंद का आह्वान किया जाएगा और 22 दिसंबर को हासा- भाषा जीतकर माहा दुमका, संताल परगना में आयोजित किया जाएगा । मुर्मू ने सभा मे एलान किया कि जुलाई और अगस्त में 400 प्रखंडों के पांच आदिवासी गांव में सघन जन जागरण का कार्य किया जाएगा। सभी जिलेवार 1000 विद्यार्थियों ,1000 महिलाओं, 1000 नौकरी पेशा में शामिल आदिवासियों और 1000 आदिवासी स्वशासन प्रमुखों के साथ सम्पर्क किया जाएगा। प्रत्येक जिले के सभी आदिवासी जन संगठनों के साथ भी समन्वय स्थापित किया जाएगा।
आदिवासी सेंगेल अभियान सरना धर्म कोड की मान्यता को लेकर पिछले दो दशकों से संघर्षरत हैं। 2024 में लोकसभा चुनाव है। चूंकि सरना धर्म कोड केंद्र सरकार का मामला है, इसलिए केंद्र सरकार पर जनदबाव बनाने की रणनीति के तहत सेंगेल अभियान समर्थकों ने विरोध व प्रदर्शन तेज कर दिए हैं।
मुख्य रूप से झारखंड व अन्य राज्यों के प्रकृति पूजक आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड की मान्यता हेतु धार्मिक गुलामी से आजादी के लिए "विश्व सरना धर्म कोड जनसभा" कोलकाता चलो, का आह्वान किया गया।
सालखन मुर्मू कहते हैं कि आज भी झारखंड के आदिवासियों को झारखंड सरकार के प्रति घोर असंतोष है। संतालों की संताली भाषा जो संविधान के आठवीं अनुसूची में सूचीबद्ध है की घोर उपेक्षा की जा रही है। संतालों द्वारा संताली भाषा को झारखंड की राजभाषा बनाने के लिए विगत कई वर्षों से आंदोलनरत हैं किन्तु झारखंड राज्य में एक आदिवासी मुख्यमंत्री होने के बावजूद आदिवासी संताली भाषा को राजभाषा का दर्जा नहीं दिया जा रहा है जिससे आदिवासी बच्चों को पठन पाठन में कई तरह की समस्याओं को झेल रहे हैं। गैर झारखंडी जो आदिवासियों के लिए एक विदेशी भाषा की तरह है भाषा से जबरन पढ़ाई-लिखाई कराया जाता है जिससे आदिवासी समाज के बच्चों का मानसिक विकास अवरूद्ध होता जा रहा है। यही कारण है कि आदिवासी समाज के लोग हर क्षेत्र में पिछड़ेपन का शिकार हैं।
मुर्मू कहते हैं भारत सरकार द्वारा पूरे आदिवासी समुदाय को धार्मिक पहचान से वंचित कर दिया है। आदिवासी हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन और बौद्ध धर्म के नहीं है। आदिवासियों की पूजा पद्धति इन सभी धर्मों से अलग है बावजूद आदिवासियों के लिए कोई कॉलम नहीं है। जिससे आदिवासी समाज अन्य के कॉलम में अपना धर्म को लिखते हैं। आदिवासी समाज के लोग अपना धर्म को सरना लिखते हैं इसलिए वर्षों से सरना धर्म कोड की मांग कर रहे हैं किन्तु वर्तमान बीजेपी सरकार इस पर बिल्कुल भी गंभीर नहीं है। बीजेपी एवं आरएसएस जबरन आदिवासियों को हिंदू बताती है जो सीधे-सीधे आदिवासियों के धार्मिक पहचान पर हमला है।
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