जयपुर। प्रदेश की जनता आगामी माह की 25 तारीख को सरकार चुनने के लिए मतदान करेगी, लेकिन ट्रांसजेंडर समुदाय का एक बड़ा तबका मतदान से वंचित रह जाएगा। निर्वाचन विभाग के आंकड़ों के हिसाब से राजस्थान में ट्रांसजेंडर मतदाताओं की संख्या पांच साल में करीब तीन गुनी हो गई है, लेकिन हकीकत इसके एकदम विपरीत है। हजारों ट्रांसजेंडर गायब हो गए है, इसके लिए जितना लापरवाह निर्वाचन विभाग है उतना ही कसूरवार सरकारी सिस्टम है जो समाज में जागरूकता लाने में नाकाम रहा है। निर्वाचन विभाग ने पहली बार वर्ष 2018 में ट्रांसजेंडर मतदाताओं की संख्या को पृथक से दर्शाया था।
राज्य निर्वाचन विभाग की वर्ष 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान में तब ट्रांसजेंडर मतदाताओं की संख्या 228 थी जो 2023 में बढ़कर 606 हो गई। साल 2011 की जनगणना के अनुसार राजस्थान में ट्रांसजेंडर की संख्या 16517 थी। इसमें 2012 ऐसे थे, जिनकी उम्र 0-6 वर्ष थी। मोटे तौर पर जो ट्रांसजेंडर 2011 में 6 साल का था वो 2023 में 18 वर्ष की उम्र पूरी कर चुका है। यानि की वर्तमान में लगभग 1 हजार से अधिक नए मतदाताओं के नाम वोटरलिस्ट में आने चाहिए थे, जबकि इस तबके के मतदाता 606 ही हैं।
वर्ष 2011 की जनगणना को माना जाए तो इस समय राज्य में ट्रांसजेंडर की संख्या 16517 से अधिक होनी चाहिए, इतनी बड़ी संख्या के बीच मतदाताओं की संख्या सिर्फ 606 होना दर्शाता है कि जनगणना में कहीं न कहीं गड़बड़ी हुई है। यह चूक किस स्तर पर हुई है। यह जांच का विषय है। यदि हम वर्ष 2011 की जनगणना के 2012 ट्रांसजेंडर को हटा भी दें तो 14505 ट्रांसजेंडर के वजूद को नकार नहीं सकते हैं। आखिर 14 हजार से अधिक ट्रांसजेंडर को मतदाता सूची से जोड़कर इनके मतदाता कार्ड क्यों नहीं बनाए गए हैं, यह सवाल खड़े हो रहे हैं।
इस बारे में द मूकनायक से बात करते हुए राजस्थान ट्रांसजेंडर वेलफेयर बोर्ड की सदस्य पुष्पा माई ने बताया कि ट्रांसजेंडर को बतौर ट्रांस पर्सन वोट देने के लिए सबसे पहले ट्रांसजेंडर आईडी बनवानी पड़ती है। उसके बाद ही सरकारी दस्तावेज में थर्ड जेंडर के तौर पर उसका नाम दर्ज होता है। अफसोस इस बात का है कि आज भी समाज में इस जेंडर के प्रति जागरूकता का अभाव है। सरकार भी इस दिशा में लोगों को जागरूक नहीं करती है। इसी का नतीजा है कि हजारों की तादाद में ट्रांसजेंडर होने के बावजूद केवल 606 ट्रांसपर्सन का नाम मतदाता सूची में जुड़ पाया है।
चुनाव से तकरीबन दो तीन महीने पहले चुनाव आयोग जनता को जागरूक करने के लिए तरह तरह के अभियान चलाता है। यदि हम अभियान को ट्रांसजेंडर की दृष्टिकोण से देखें तो अभियान को विफलता की श्रेणी में रख सकते हैं। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि ट्रांसजेंडर को बतौर थर्ड जेंडर मतदान के लिए जागरूक करने में निर्वाचन विभाग असमर्थ साबित हुआ है।
जागरूकता के अभाव में कई ट्रांसजेंडर स्वयं को महिला या पुरूष की श्रेणी में रखकर मतदान करते हैं। 24 वर्षीय ट्रांसपर्सन मोनू ने बताया कि उसे इस बात की कोई जानकारी नहीं थी कि उसके जैसे लोगों का विशेष आईडी कार्ड बनता है। तीन दिन पहले पुष्पा माई उनके पास आई तो इस बात का पता चला। "अब मेरा ट्रांसपर्सन पहचान के साथ मतदाता कार्ड बन गया है", मोनू ने बताया।
जयपुर निवासी ट्रांसजेंडर सपना ने बताया कि मुझे मतदाता पहचानपत्र बनवाना है, लेकिन मेरे पास एड्रेस प्रूफ नहीं है। इसलिए मेरा मतदाता पहचान पत्र नहीं बन पा रहा है। सपना मूल रूप से अजमेर के पास ब्यावर की रहने वाली है। अपना घर छोड़ते समय उन्होंने कोई भी एड्रेस प्रूफ अपने साथ नहीं रखा था।
स्थानीय मीडिया में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, मुख्य निर्वाचन अधिकारी प्रवीण गुप्ता ने बताया कि "हमारे पास डाटा ऑनलाइन आता है। उसी के आधार पर जांच पड़ताल कर वोटर आईडी कार्ड बनाते हैं। यह जिम्मेदारी हमारी नहीं है कि पता करें कौन ट्रांसजेंडर है कौन नहीं। ट्रांसजेंडर की जिम्मेदारी ह्यूमन कमीशन की है। वे जो हमको डाटा देते हैं। हम उसी के अनुसार चलते हैं। वैसे जागरूकता के लिए हमने बहुत से अभियान चलाए है, लेकिन ट्रांसजेंडर को वोटर कार्ड में कोई दिलचस्पी नहीं होती है।"
दरअसल, इस तबके के लोगों को वोटर आईडी कार्ड से कोई लाभ नहीं मिलता है। ट्रांसजेंडर की दिलचस्पी इस बात की होती है कि उनको सरकारी योजना का लाभ कैसे मिल सकता है। यदि कोई ट्रांसजेंडर अपना नाम सरकारी दस्तावेज में अपनी पहचान ट्रांसपर्सन के नाम से दर्ज कराता है तो भी वह समाज में अपनी पहचान छुपा लेता है।
पुष्पा माई बताती है कि उन्होंने थर्ड जेंडर को जागरूक करने के लिए कई काम किए हैं, लेकिन सरकार का पूरा समर्थन नहीं मिलने से वह अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाई है। जहां तक वोटर आईडी की बात है तो इस बनाने के लिए सबसे पहले एड्रेस प्रूफ की जरूरत पड़ती है। अधिकतर ट्रांसजेंडर अपने घरों से भागकर आते है इसलिए उनके पास एड्रेस का कोई प्रूफ नहीं होता है।
बोर्ड सदस्य पुष्पा माई ने बताया कि राज्य निर्वाचन विभाग ने मुझे स्टेट आईकॉन बनाया है, लेकिन ट्रांसजेंडर को मतदान प्रक्रिया में कैसे जोड़ा जाए, कैसे ट्रांसपर्सन के नए मतदाता पहचानपत्र बनाए जाए इसका कोई रोडमैप तैयार नहीं किया है। यही हालत जिलास्तर पर है। सरकार ने जिला स्तर पर ट्रांसपर्सन को एम्बेसेडर तो बना दिया है, लेकिन समाज के लोगों के कैसे मतदाता पहचान पत्र बनें या उनका सरकारी योजनाओं से लिकेंज हो। इसके लिए उनको किसी भी तरीके का प्रशिक्षण या मार्गदर्शन नहीं दिया गया है। स्थिति ऐसी है कि किस दिशा में काम किया जाए किसी को पता नहीं। फिर भी हम लोग जागरूकता का काम कर रहे हैं।
पुष्पा माई ने आगे बताया कि "अमूमन राजस्थान जैसी स्थिति पूरे देश में है। एक अनुमान के मुताबिक ट्रांसजेंडर की संख्या देश में 22 लाख है, लेकिन 17 हजार ट्रांसपर्सन के मतदाता पहचान पत्र बने है। शेष ट्रांसजेंडर स्त्री या पुरूष की पहचान के साथ मतदान करते हैं।"
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