भोपाल। ट्रांसजेंडर्स के अधिकारों उनके उत्थान के लिए प्रस्तावित राज्य उभयलिंगी बोर्ड का गठन आज तक नहीं हो पाया है। मध्य प्रदेश अटल बिहारी वाजपेयी सुशासन एवं नीति संस्थान ने वर्ष 2020 में ट्रांसजेंडर्स संरक्षण के लिए नीति बनाकर राज्य सरकार को सौंपी थी, लेकिन यह नीति मंत्रालय की फाइलों में दब कर रह गई है। तीन साल बाद भी नीति को लेकर सरकार गंभीर नहीं है!
अटल बिहारी वाजपेयी सुशासन एवं नीति संस्थान ने मध्य प्रदेश उभयलिंगी व्यक्ति (अधिकारों का सरंक्षण) नियम 2020 तैयार किया था। इस नीति के अंतर्गत ट्रांसजेंडर्स के अधिकार, उनके उत्थान शिक्षा, रोजगार से सम्बंधित प्रावधान है। एवं उनके प्रति भेदभाव को प्रतिषेध करने के प्रावधान हैं।
सुशासन संस्थान ने यह नीति 2020 में मध्य प्रदेश सामाजिक न्याय विभाग को सौंप दी थी। नीति के मुताबिक देश के अन्य राज्यों की तरह मध्य प्रदेश में ट्रांसजेंडर्स के उत्थान के लिए उभयलिंगी बोर्ड का गठन करने का प्रावधान था, जिसको साल 2022 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की कैबिनेट ने मंजूरी दी थी। कैबिनेट से प्रस्ताव पारित होने के बावजूद भी राज्य उभयलिंगी बोर्ड का गठन नहीं हो पाया है।
मध्य प्रदेश उभयलिंगी व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) नियम 2020 के मुताबिक जिला और राज्य स्तरीय उभयलिंगी बोर्ड गठन किया जाना था। नियम में (14) (1) के अनुसार जिला स्तरीय बोर्ड में जिला कलेक्टर अध्यक्ष एवं संयुक्त संचालक/उपसंचालक सामाजिक न्याय विभाग को सदस्य सचिव सहित आठ प्रशासनिक अधिकारी एवं चार ट्रांसजेंडर और दो समाजसेवी ट्रांसजेंडर्स को सदस्य के रूप में शामिल कर बोर्ड का गठन किए जाने का प्रावधान है।
नियम में (14) (2) के मुताबिक राज्य ट्रांसजेंडर्स/उभयलिंगी बोर्ड का गठन किया जाना था। इस बोर्ड के अध्यक्ष सामजिक न्याय एवं निशक्तजन कल्याण विभाग के मंत्री एवं प्रमुख सचिव/सचिव मप्र शासन सचिव सहित 25 राज्य स्तरीय अधिकारी जिसमें महिला आयोग के भी सदस्य/प्रतिनिधि एवं पांच ट्रांसजेंडर्स और दो समाजसेवी ट्रांसजेंडर शामिल कर बोर्ड का गठन किए जाना था।
उभयलिंगी बोर्ड का गठन ट्रांसजेंडर्स के उत्थान और उनकी समस्याओं के निपटारे के लिए किया जाता है। बोर्ड के द्वारा ट्रांसजेंडर्स के लिए राज्य सरकार की संचालित योजनाओं में सुझाव के लिए सरकार को अनुशंसा भेजी जा सकती है। इसके अलावा पहचान पत्र और भेदभाव की शिकायतों पर भी बोर्ड शासन को कार्यवाही के निर्देश दे सकता है। कार्यवाही के लिए सबसे पहले बोर्ड के अध्यक्ष के नाम से आवेदन या शिकायत प्रेषित की जाती है। बोर्ड की बैठक में प्राप्त शिकायतों को सदस्यों के बीच रखकर निराकरण करने का प्रावधान है। उभयलिंगी सदस्य बोर्ड के समक्ष योजनाओं में सुझाव के प्रस्ताव में रख सकते हैं।
मध्य प्रदेश सरकार की कैबिनेट ने साल 2021 में उभयलिंगी बोर्ड गठन के प्रस्ताव पारित कर दिया था। लेकिन तीन साल बाद भी राज्य स्तरीय बोर्ड का गठन नहीं हो पाया। द मूकनायक से बातचीत में ट्रांसजेंडर एक्टविस्ट संजना सिंह ने बताया कि सरकार की उदासीनता के कारण ट्रांसजेंडर्स मुख्यधारा से जुड़ने में कठिनाई महसूस करते हैं। सामाजिक भेदभाव को झेल रहे किन्नर के उत्थान के लिए सरकार द्वारा बनाई गई एक भी योजना धरातल पर नहीं है।
संजना ने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी सुशासन एवं नीति संस्थान ने उभयलिंगी संरक्षण नीति बनाने से पहले सुझाव भी मांगे थे। हमने इसमें ट्रांसजेंडर्स को आनेवाली कठनाइयों को उनके अधिकारियों को बताया था। नीति बनकर भी तैयार हो गई। लग रहा था बोर्ड के गठन के बाद ट्रांसजेंडर्स की कई समस्या आसानी से हल होंगी, लेकिन तीन साल बीत गए अभी तक कुछ नहीं हुआ।
मध्य प्रदेश में एक अनुमान के मुताबिक करीब 35 हजार ट्रांसजेंडर है। वहीं मध्य प्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा अक्टूबर 2023 में जारी मतदाता सूची में अन्य मतदाता (थर्ड जेंडर) एक हजार 373 हैं। जबकि ट्रांसजेंडर्स संख्या प्रदेश में 35 हजार से भी ज्यादा है।इनमें हज़ारों की संख्या में ऐसे भी हैं, जिनके आधार कार्ड अभी तक नहीं बन पाए हैं।
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