कितना जरूरी है ट्रांसपर्सन के लिए 'ट्रांसजेंडर शौचालय'?

ट्रांसजेंडर शौचालय
ट्रांसजेंडर शौचालयPic- India.com
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नई दिल्ली। भारतीय संविधान के निर्माताओं ने इसकी रचना करते समय एक ऐसे समाज की परिकल्पना की थी कि भारत में एक ऐसे समाज की संरचना हो, जहां जाति, धर्म, रंग, लिंग व क्षेत्र इत्यादि के आधार पर कोई भी भेदभाव नहीं हो। उन्होंने भविष्य के भारत को एक ऐसे देश के रूप में देखा था, जहां पर जातिगत, धर्मगत, लिंगगत व क्षेत्रगत आदि विषमताएं ना हो और समतामूलक समाज की स्थापना हो। कहने के लिए भारतीय संविधान प्रत्येक नागरिक को समान अवसर और अधिकार प्रदान करने का दावा करता है परंतु, ट्रांसजेंडरों के परिप्रेक्ष्य में ये बात उतनी तर्कसंगत और प्रासंगिक नहीं जान पड़ती है।

ट्रांसजेंडर के रूप में पैदा होने में उस शिशु का क्या दोष? परंतु, सामाजिक अस्वीकार्यता के कारण ट्रांसजेंडर शिशु को अपने माता-पिता का घर त्यागना ही पड़ता था। चूंकि, इनको शिक्षा और रोज़गार के साधन उपलब्ध नहीं होते थे तो मजबूरन उन्हें सेक्स वर्कर, भिक्षाटन, नाच-गाना आदि करके अपना जीवनयापन करना पड़ता था। आखिर ऐसा क्यों है कि ट्रांसजेंडर के लिए ही कोई व्यवस्था नहीं की गई है। चाहे वह नौकरियां हो, चाहे वह स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो या फिर शौचालय की व्यवस्था। क्यों ट्रांसजेंडर्स के बारे में सोचा नहीं जाता। वो लोग भी हमारे समाज का हिस्सा है ट्रांसजेंडर की शौचालय की व्यवस्था कैसी है। अगर शौचालय है भी तो क्या वह ट्रांसजेंडर के लिए कंफर्टेबल है। इन सारी बातों का जवाब जानने के लिए द मूकनायक ने ट्रांसमैन कबीर मान से बात की। कबीर ने एनसीईआरटी से प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम में (डी.आई.ई.टी.) डिप्लोमा किया है और इग्नू से बी.ए. (कार्यक्रम) में स्नातक की पढ़ाई पूरी की है। कबीर ने जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में मास-मीडिया हिंदी पत्रकारिता डिग्री कोर्स में भी दाखिला लिया है।

कबीर बताते है कि "शौचालय का मुद्दा बहुत जरूरी है। ट्रांसजेंडर के लिए अलग से शौचालय होना बहुत जरूरी है। किसी भी सार्वजनिक जगह पर यदि स्त्री, पुरुष दोनों के लिए सार्वजनिक जगहों पर अलग-अलग शौचालय होते हैं तो ट्रांसजेंडर के लिए अलग से शौचालय क्यों नहीं हो सकते हैं। अब इस बारे में थोड़ा तो सोचा जा रहा है जैसा कि तीस हजारी कोर्ट के अंदर शौचालय बनाया गया है। परंतु वह भी ट्रांसजेंडर और विकलांग दोनों के लिए एक ही शौचालय बना दिया है। सरकार ने शौचालय बनाने से पहले किसी से बात नहीं की। क्योंकि जिस ट्रांस कम्युनिटी को इस शौचालय की जरूरत है उनसे तो बात करनी चाहिए थी."

आगे वह कहते है कि "एक जगह तो ऐसा है कि महिला शौचालय को ही ट्रांसजेंडर शौचालय के रूप में उपयोग करने के लिए रख दिया है जो अपने आप में ही गलत है। क्योंकि ट्रांसजेंडर के अंदर ट्रांसमैन और ट्रांसवूमेन दोनों ही आते हैं। यदि शौचालय के अंदर कोई ट्रांसवूमेन चली भी जाए, तो महिलाएं बड़े ही अजीब तरीके से उसको देखती है। पता नहीं जैसे क्या देख लिया हो। जो की बहुत अजीब सा महसूस करता है। कितनी सारी परेशानियां होती हैं। शौचालय एक बहुत ही मूल सुविधा है। लेकिन लोग सिर्फ यही सोचते हैं कि ट्रांसजेंडर्स के लिए शौचालय सिर्फ साधारण सी ही तो बात है। शौचालय बनाने वाले वह लोग हैं। जिनको ट्रांसशरीर के बारे में पता ही नहीं है। तो उनको कैसे हमारी परेशानियों का पता चलेगा। बचपन में जब मैं अपनी मम्मी के साथ महिला शौचालय का उपयोग करता था। तो वहां के कुछ गार्ड, लोग अजीब तरीके से मुझे बाहर निकलते हुए देखते थे। देखिए, पुरुष शौचालय बहुत ही अस्वच्छ होते हैं। मेरे ऑफिस में भी मैंने यह समस्या देखी है। क्योंकि मैं शौचालय उपयोग किया और एक हफ्ते में ही मुझे UTI हो गया। एक बार नहीं, दो बार मेरे साथ ऐसा हुआ। उसके बाद मैंने अपनी सीनियर को पत्र लिखा, मेल भेजा, ऑफिस जाना बंद कर दिया। तब जाकर उन लोगों ने मेरी जगह बदली। वहां भी मुझे अलग से शौचालय नहीं मिला, लेकिन जो शौचालय मिला वह थोड़ा साफ सुथरा था। शौचालय सब की जरूरत है। इसको सब जगह और सबके लिए होना चाहिए."

ना के बराबर है ट्रांसजेंडर शौचालय- जैन कौशिक

इस बारे में द मूकनायक ने जेन कौशिक से भी बात की। जेन कौशिक एक ट्रांस महिला है। जेन कौशिक सामाजिक कार्यकर्ता और अंग्रेजी और सामाजिक अध्ययन विषय की शिक्षिका है। जेन कौशिक बताती है कि "ट्रांसजेंडर शौचालय होना बहुत जरूरी है, लेकिन शौचालय सिर्फ ना के बराबर ही है। मैं एक बार बस में सफ़र कर रही थी। बस कुछ घंटे बाद खाना खाने के लिए बस रुकी, और मैं ज्यादातर महिला शौचालय उपयोग में लाती हूं। अगर ट्रांसजेंडर शौचालय नहीं होता। मैं अंदर गई तो कुछ लड़कियां पूछने लगी कि आप महिला हैं। अगर ट्रांसजेंडर शौचालय होता तो यह सवाल कोई नहीं पूछता। अंदर सब लड़कियां मुझे ऐसे देख रही थी, जैसे मैं दूसरी दुनिया से आई हूं। उनका ऐसा महसूस करना मेरे लिए बहुत ही अजीबोगरीब था। यह सब समस्या तो तब आती है जब आप महिला शौचालय उपयोग करते हैं। ज्यादातर ट्रांसजेंडर इन सारी समस्याओं से बचने के लिए यूरिन रोक लेते हैं। लेकिन यूरिन ज्यादा देर रोकने से स्वास्थ्य संबंधी काफी सारी समस्याएं हो जाती हैं। कितनी तरह के इंफेक्शन हो जाते हैं तो ट्रांसजेंडर शौचालय के बारे में सोचना चाहिए, क्योंकि यह हमारा हक है।

द मूकनायक ने शौचालय को लेकर दिल्ली में रहने वाली "आयशा" से भी बात की जो ट्रांसमहिला है। आयशा ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है। एम्स प्रवेश पाने के लिए प्रवेश परीक्षा भी दी है ट्रांसजेंडर के लिए नौकरी में किसी तरह की कोई आरक्षण नीति नहीं होने के कारण इनका प्रवेश अभी तक रुका हुआ है। आयशा बताती है कि "बचपन से ही मुझे लड़की जैसा ही लगता था। उस समय भी मैं अलग शौचालय चाहती थी। स्कूलों में लड़की और लड़कों का अलग-अलग शौचालय होते है। उस समय मुझे लड़कों के शौचालय में जाने पर बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। मुझे कुछ समझ भी नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों है। उसे समय मैं स्कूल में कभी शौचालय का उपयोग ही नहीं किया। मैं यूरिन रोककर ही रहती थी। आपको पता ही होगा कि ज्यादा देर तक यूरिन रोकने से किडनी की समस्याएं और भी कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो जाती हैं। मेरे साथ 12वीं की कक्षा में ऐसा हुआ कि मैं प्रीबोर्ड का एग्जाम दे रही थी। और मेरे बाल उस समय बड़े थे। तो हमारे प्रिंसिपल चेकिंग के लिए आए। उन्होंने मेरे बाल पकड़े, और मेरी पूरी क्लास के सामने मेरे बालों की चुटिया बना दी। मुझे बहुत असहज महसूस हुई। स्कूल में एक काउंसलर या साइकैट्रिस्ट होना चाहिए जो ऐसे बच्चों से बात कर सके"।

आगे वह बताती है कि "हर जगह ट्रांस शौचालय नहीं है। इसलिए मैं महिला शौचालय ही जाती हूं। महिलाओं को भी परेशानी नहीं होती, मुझे भी कोई परेशानी नहीं होती है। परेशानी जब होती है। जब उनको यह पता चलता है, कि मैं ट्रांसवूमेन हूं। वह लोग मुंह बना लेते हैं। अजीब तरीके से देखते हैं। कुछ मेरी दोस्त हैं जो अभी भी पूरी तरह से ट्रांसवूमेन नहीं बन पाए हैं। उनकी प्रक्रिया जारी है। उनके लिए बहुत ही मुश्किल हो जाता है कि वह पूरूष शौचालय में कैसे जाएं, क्योंकि वहां उनके साथ कुछ भी हो सकता है। अगर हमारे लिए एक ट्रांसजेंडर शौचालय होता तो यह परेशानियां नहीं होती। कितनी बार कितने ट्रांसजेंडर दबाव में शौचालय का उपयोग नहीं करते हैं। क्योंकि उनके पास शौचालय नहीं है। ज्यादातर उभयलिंगी शौचालय बना दिए गए हैं उभयलिंगी शौचालय उनके लिए होता है, जो चल नहीं सकते। अब वह लड़का भी हो तो कैसे वह ट्रांसजेंडर के शौचालय में जा सकता है। ट्रांसजेंडर्स के लिए अलग शौचालय होने चाहिए और हर सार्वजनिक जगह पर ट्रांसजेंडर शौचालय बनने चाहिए।"

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