दिल्ली। ”मेरी ट्रांसजेंडर पहचान के चलते दो स्कूलों से निकाल दिया गया। मैं अलग-अलग जगह इसकी शिकायत लेकर पहुंच रही थी, लेकिन हमें जिम्मेदार अधिकारियों से कोई समाधान नहीं मिला। इन सब के चलते डिप्रेशन में चली गई थी। बहुत दिन तक ट्रामा में रही, जिसके कारण डॉक्टर की भी मदद लेनी पड़ी। फिर हमने फैसला लिया कि हम सुप्रीम कोर्ट जाएंगे।” द मूकनायक से बात करते हुए ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट जेन कौशिक काफी आशावान दिखीं।
सुप्रीम कोर्ट ट्रांसजेंडर शिक्षिका की याचिका पर सुनवाई करने के लिए राजी हो गया, जिनकी सेवाएं उनकी पहचान उजागर होने के बाद यूपी और गुजरात के स्कूलों में समाप्त कर दी गई थीं। लिंग पहचान उजागर होने के बाद सेवा से हटाए जाने के खिलाफ जेन ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।
जेन बताती है कि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, यूपी सरकार, गुजरात सरकार और उन दोनों स्कूल जिन्होंने मुझे नौकरी नहीं दी थी। उनको नोटिस जारी किया है। उनको चार हफ्तों के अंदर अपना जवाब देना होगा। मेरे लिए यह बहुत ही लंबा सफर रहा और बहुत ही संघर्षपूर्ण भी रहा। अब लग रहा है कि अब मुझे न्याय मिल जाएगा।
आगे जेन बताती है कि मिनिस्ट्री ऑफ सोशल जस्टिस के अंतर्गत ट्रांसजेंडर की समस्या को देखने के लिए एक संस्था है। हमने उनको शिकायत लिखी भी थी, लेकिन वहां से कोई जवाब नहीं आया। उनकी जिम्मेदारी भी बनती थी कि वह मेरी समस्या का संज्ञान लें। लेकिन वहां से कोई जवाब नहीं मिला। एक साल होने वाला है, लेकिन कुछ नहीं हो पाया। मेरे वकीलों ने और कुछ संस्थाओं ने मेरी यहां तक बहुत मदद की है।
जेन ने अपनी नई नौकरी के बारे में बताया कि राजस्थान के एक स्कूल में मुझे नौकरी मिल गई है। यहां पर पीजीटी इंग्लिश की शिक्षिका के रूप में पढ़ा रही हूं। मुझे डेढ़ महीना हो चुका है। मैं बहुत खुश हूं क्योंकि यहां के प्रशासन बहुत ही सपोर्टिव है। जब प्रशासन ही किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करेगा। स्कूल में या कहीं और कोई भी आपके साथ भेदभाव नहीं कर सकता है।
जेन आगे बताती है कि अगर मेरी पहली दो नौकरियां नहीं गई होती, तो आज मेरा परिवार मेरे साथ होता क्योंकि उस समय मुझे सबसे ज्यादा नौकरी और परिवार की जरूरत थी।
शीर्ष अदालत ने कहा कि हम देखेंगे कि इस मामले में हम क्या कर सकते हैं। सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि याचिकाकर्ता की शिकायत यह है कि उसकी लिंग पहचान उजागर होने के बाद यूपी और गुजरात के स्कूलों में उसकी सेवाएं समाप्त कर दी गईं। याचिकाकर्ता का कहना है कि वह दो अलग-अलग हाईकोर्ट में अपनी मांग नहीं रख सकती।
पीठ ने 31 वर्षीय जेन कौशिक द्वारा दायर याचिका को स्वीकार कर लिया है, जिसमें कहा गया था कि उन्हें पहली बार दिसंबर 2022 में यूपी के लखीमपुर खीरी में एक निजी स्कूल ने निकाल दिया था और बाद में जुलाई 2023 में उन्हें अपना जेंडर उजागर करने के लिए गुजरात के एक स्कूल में ज्वाइन नहीं करने के लिए कहा गया है।
दो स्कूलों के कृत्यों को समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन और लिंग के आधार पर भेदभाव के खिलाफ बताते हुए, कौशिक की याचिका में उनकी बहाली की मांग की गई, साथ ही केंद्र सरकार से उचित दिशा-निर्देश मांगे गए। यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी अन्य ट्रांसजेंडर व्यक्ति को उन कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़े, जिनसे वह गुजर रही हैं।
दिल्ली निवासी कौशिक ने ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम- 2019 का भी हवाला दिया और शिकायत की कि इस कानून को अक्षरशः लागू नहीं किया जा रहा है, जबकि ट्रांसजेंडर समुदाय के खिलाफ भेदभाव बढ़ रहा है। उन्होंने यह सुनिश्चित करने में केंद्र और राज्यों की ओर से इच्छाशक्ति की कमी का आरोप लगाया कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को उनका हक मिले।
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