MCD के तुगलकी फरमान से थिएटर आर्टिस्ट नाराज, बोले- होटल- रेस्तरां के Laws परफार्मिंग आर्ट पर कैसे किया लागू ?

नाट्यकर्मियों को हर शो से पहले एक हजार रूपये शुल्क चुकाकर लेना होगा लाईसेंस और बार-बार देना होगा पुलिस क्लियरेंस सर्टिफिकेट
MCD ने दिल्ली के किसी भी आडिटोरियम में नाटक, संगीत, नृत्य या किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम करने से पहले, अब से एक नए पोर्टल में रजिस्ट्रेशन करना अनिवार्य कर दिया है।
MCD ने दिल्ली के किसी भी आडिटोरियम में नाटक, संगीत, नृत्य या किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम करने से पहले, अब से एक नए पोर्टल में रजिस्ट्रेशन करना अनिवार्य कर दिया है।
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नई दिल्ली- दिल्ली नगर निगम ( MCD ) द्वारा हाल ही लागू किये एक नियम से परफोर्मिंग आर्टिस्ट और रंगमच से जुड़े कलाकारों में भारी नाराजगी व्यापत हो रही है. हुआ ये है की MCD ने दिल्ली के किसी भी आडिटोरियम में नाटक, संगीत, नृत्य या किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम करने से पहले, अब से एक नए पोर्टल में रजिस्ट्रेशन करना अनिवार्य कर दिया है। इसका नाम 'दिल्ली में भोजन/आवास और बोर्डिंग प्रतिष्ठानों के लाइसेंस के लिए एकीकृत पोर्टल' है। इस नए पोर्टल ने थिएटर, नृत्य और संगीत के लिए परफॉर्मिंग लाइसेंस को भोजन/आवास और बोर्डिंग प्रतिष्ठानों की श्रेणी में डाल दिया है।

यह एक one time प्रक्रिया होती तो भी शायद कलाकारों को परेशानी नहीं होती लेकिन नगर निगम ने यह प्रत्येक आयोजन के लिए हर बार पोर्टल पर फॉर्म भरने की अनिवार्यता की है जिसके अनुसार अब स्टेज शो करने से पहले आयोजक को एक हजार रुपए प्रति शो शुल्क के साथ बिजली-पानी की व्यवस्था , पुलिस क्लीयरेंस सर्टिफिकेट (PCC) देनी होगी.

नाट्यकर्मियों का कहना है कि नई व्यवस्था रंगमंच सस्थानों पर वित्तीय भार बढ़ाएगा, पहले से ही नाटक और रंगमंच के शो से ऑडिटोरियम किराया सहित अन्य खर्चा भी नहीं निकल पाता और उस पर हर शो पर एक हजार रूपये का शुल्क के साथ पेचीदा प्रक्रिया कलाकारों का मनोबल ही तोड़ देगा. रंगमंच से जुड़े जाने माने कलाकारों ने MCD के इस नियम का विरोध किया है. कलाकार इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन के प्रयास के रूप में भी देख रहे हैं.

रंगकर्मियों में इस बात को लेकर खासा रोष है और वे सवाल उठा रहे हैं कि क्या होटल, रेस्तरां और बोर्डिंग प्रतिष्ठान के कानून नाटक, संगीत और नृत्य जैसी परफार्मिंग आर्ट पर लागू होते हैं?

रंग कर्मियों का कहना है जो नया नियम है मुख्य रूप से होटल या कोई नया प्रतिष्ठान खोलने पर पुलिस क्लीयरेंस लेने से संबधित है जिसको बिना किसी मशविरा से मूर्खता पूर्वक नाट्य कर्मियों पर भी लागू कर दिया है.
रंग कर्मियों का कहना है जो नया नियम है मुख्य रूप से होटल या कोई नया प्रतिष्ठान खोलने पर पुलिस क्लीयरेंस लेने से संबधित है जिसको बिना किसी मशविरा से मूर्खता पूर्वक नाट्य कर्मियों पर भी लागू कर दिया है.

द मूकनायक ने दिल्ली के एक प्रमुख  नाट्य संस्था (थियेटर ग्रुप) अस्मिता के संस्थापक और जाने माने रंगकर्मी अरविंद गौड़ से इस पूरे मुद्दे पर विस्तृत बात की. वर्ष 1993 में स्थापित अस्मिता थियेटर साल भर में 40 से 45 शोज तक का मंचन करती है. अरविंद गौड़ बताते हैं पहले थियेटर ग्रुप का MCD से कोई लेना देना नहीं था, केवल लाइसेंस डिपार्टमेंट ऑफ़ दिल्ली पुलिस में 50 रूपये के फॉर्म पर आवेदन करना पड़ता था जिसकी मंजूरी मिलने पर 20 रूपये शुल्क ऑनलाइन जमा करवा दिया जाता था. ये बहुत सरल प्रोसेस था.

लेकिन जो नया नियम है मुख्य रूप से होटल या कोई नया प्रतिष्ठान खोलने पर पुलिस क्लीयरेंस लेने से संबधित है जिसको इन्होने बिना किसी मशविरा से मूर्खता पूर्वक नाट्य कर्मियों पर भी लागू कर दिया है. गौड़ कहते हैं की ब्यूरोक्रेट्स ने बिना कुछ सोचे समझे परफोर्मिंग आर्ट को इस केटेगरी में डाल कर विधि विरूद्ध काम किया है.

होटल या रेस्तरा मालिक को अपना यूनिट खोलने के लिए सिर्फ एक बार ही एक हजार रूपये शुल्क चुकाना पड़ेगा लेकिन यहाँ हम जैसे  थिएटर समूह जो साल में 40-45 शो करते हैं, बिना कारण ही चालीस पचास हजार रुपये का शुल्क चुकाने को मजबूर हो जायेंगे जो न्याय संगत नहीं है.

इसके अलावा इस नियम के कई By-clause जैसे पेस्ट कंट्रोल, फायर ब्रिगेड आदि की जिम्मेदारी भी नाट्य आयोजकों को लेनी होगी जबकि यह सारा काम ऑडिटोरियम का मालिक ही करता है, वह हॉल के रखरखाव, बिजली अग्निशमन आदि व्यव्यस्था के लिए जिम्मेदार होता है , वह नियमित टैक्स भी चुकाता है. शो करने के लिए नाट्य संस्था को ऑडिटोरियम को नियत शुल्क चुकाना पड़ता है. लेकिन अब PCC, लाइसेंस आदि की दोहरी मार होगी.

दिल्ली में करीब 50 से 60 थिएटर समूह हैं जो रेग्युलर काम करते हैं.
दिल्ली में करीब 50 से 60 थिएटर समूह हैं जो रेग्युलर काम करते हैं.

दिल्ली में करीब 50 से 60 थिएटर समूह हैं जो रेग्युलर काम करते हैं. दो प्रकार के शो मुख्य रूप से होते हैं जिसमे एक सेलिब्रिटीज शोज हैं जिनके टिकट की दर एक हजार से 4 हजार रूपये तक होती हैं, बताया जाता है कि दिल्ली में हर माह 4-5 सेलिब्रिटीज शोज होते हैं. दूसरा थिएटर शोज हैं जिनकी रेट पहले 50 से 200 रूपये था जो कोविड के बाद 100 से 300 रूपये तक रहते हैं.

ऑडिटोरियम का किराया प्रति शो 60 हजार से डेढ़ लाख रूपये तक होता है. अस्मिता ग्रुप सरीखे थिएटर पब्लिक ओरिएंटेड मुद्दों पर नाटकों का मंचन करते हैं. अरविन्द गौड़ बताते हैं कि अस्मिता किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता प्राप्त नहीं करती हैं और इसी वजह से सभी दबावों से मुक्त होकर ज्वलंत विषयों पर प्रभावी प्रस्तुतिकरण करती है. नए लाइसेंस नियम को अस्मिता सरीखी संस्थाए फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन के अधिकार में सरकारी हस्तक्षेप के रूप में देखती हैं.

अरविंद गौड़ रंगकर्मियों की अभिव्यक्ति की आजादी की लड़ाई लंबे समय से लड़ते रहे हैं और जब भी ऐसा कोई तुगलकी फरमान आता है  उनकी कोशिश प्रतिबद्ध रंगकर्मियों की आवाज़ को मजबूती से उठाना होता है।

इस बार भी उन्होंने पहले दिल्ली नगर निगम की मेयर शैली ओबेराय से मिलकर इसपर आपत्ति उठाई तो उन्होंने इसकी जानकारी होने से ही मना कर दिया, उनका कहना था कि दिल्ली के ऐसे तमाम फैसले उप राज्यपाल सीधे ले रहे हैं और हमें बताया तक नहीं जाता। अरविंद ने इसे लेकर उप राज्यपाल से भी समय मांगा, लेकिन वहां से कोई जवाब नहीं आया।

ये है नाट्यकर्मियों की प्रमुख मांगें :

1- नाटक करने के लिए पुलिस क्लीयरेंस सर्टिफिकेट (PCC) जैसे कानूनों को बदला जाए।

2- एक हजार रुपए प्रति शो शुल्क देने के नियम को MCD तत्काल निरस्त करे।

3- परफॉर्मिंग लाइसेंस को भोजन/आवास और बोर्डिंग प्रतिष्ठानों की श्रेणी वाले पोर्टल से हटाया जाए।

( Portal name: Unified Portal For Licensing of Eating/ Lodging & Boarding)

4- नाटक करने वालो पर 18% जी एस टी पर भी पुनर्विचार किया जाए।

5- एजेंसियों को ऐसे कानून बनाने से पहले सभी हितधारकों से परामर्श करना चाहिए।

नाट्य जगत के दिग्गजों ने किया MCD के नए फरमान का विरोध

मशहूर नाट्य समीक्षक जयदेव तनेजा ने इस फैसले का विरोध किया है। जयदेव तनेजा ने इस फैसले को संस्कृति विरोधी और कलाकार विरोधी बताया है।

दिल्ली और मुंबई के तमाम रंगकर्मियों ने इसे लेकर अपना विरोध जताया है और कहा है कि अगर सत्ता को इस तरह की मनमानी करने की छूट दिल्ली में दी गई तो इसका पूरे देश में लागू करने का खतरा है। ऐसे में इस फैसले का विरोध कर रंगकर्मियों की आजादी को बचाना ही होगा।

जाने माने नाट्य निर्देशक और शाहरुख खान को अभिनय सिखाने वाले बैरी जॉन ने भी इसे कलाकारों के लिए बेहद अपमानजनक फैसला बताया है। उन्होंने इसे कलाकारों को अपनी जड़ों से काटने की कोशिश बताते हुए ऐसे फैसले पर आश्चर्य जताया है।

अम्बेडकर और गांधी जैसे मशहूर नाटक के लेखक और तमाम नाटकों से चर्चित रहे राजेश कुमार ने भी इसे जनविरोधी और संवेदनहीन फैसला करार देते हुए इसका सख्त विरोध किया है।

जाने माने लेखक, निर्देशक, अभिनेता और नाटककार महेश दत्तानी ने कहा है कि मुंबई का नाटकों की सेंसरशिप से पुराना नाता है। वहां कई बार ये कोशिश हुई। लेकिन हमें विजय तेंदुलकर और श्रीराम लागू जैसे दिग्गज शख्सियतों का शुक्रगुजार होना चाहिए जिन्होंने इसके खिलाफ जोरदार लड़ाई लड़ी और ये कोशिश नाकाम हुई।

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