पीरियड्स के बारे में 81.3% लड़कियां केवल मां से करती हैं बात; 41% 'उन दिनों' नहीं जाना चाहती स्कूल — सर्वे

इस सर्वेक्षण में मुंबई, पुणे, नई दिल्ली, गुरुग्राम, नोएडा, बेंगलुरु, चंडीगढ़, चेन्नई और हैदराबाद जैसे शहरों के स्कूलों से 800 से अधिक प्रतिक्रियाएँ प्राप्त हुईं, जिससे मासिक धर्म स्वच्छता और उससे जुड़े भ्रांतियों की चिंताजनक वास्तविकता सामने आई है।
18.8% लड़कियों ने बताया वे मासिक धर्म उत्पादों जैसे पैड का सही ढंग से उपयोग करना नहीं जानती हैं, और 17.1% को मासिक धर्म की अवधारणा के बारे में जानकारी नहीं थी।
18.8% लड़कियों ने बताया वे मासिक धर्म उत्पादों जैसे पैड का सही ढंग से उपयोग करना नहीं जानती हैं, और 17.1% को मासिक धर्म की अवधारणा के बारे में जानकारी नहीं थी।
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गुरुग्राम– ग्रीन पेंसिल फाउंडेशन ने भारत के स्कूलों में मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन (menstrual hygiene management ) को संबोधित करने के लिए एक महत्वपूर्ण पहल "पीरियड्स ऑफ प्राइड" शुरू की है। यह पहल विशेष रूप से स्कूली छात्राओं के लिए मासिक धर्म से जुड़े भ्रांतियों और चुनौतियों को दूर करने के उद्देश्य से शुरू की गई है।

इस पहल के तहत, फाउंडेशन ने मुंबई, पुणे, नई दिल्ली, गुरुग्राम, नोएडा, बेंगलुरु, चंडीगढ़, चेन्नई और हैदराबाद जैसे शहरी केंद्रों को लक्षित करते हुए एक व्यापक सर्वेक्षण किया। इस सर्वेक्षण में गूगल फॉर्म और विभिन्न स्कूलों से ऑफलाइन भागीदारी के माध्यम से 800 से अधिक प्रतिक्रियाएँ प्राप्त हुईं, जिससे मासिक धर्म स्वच्छता और उससे जुड़े भ्रांतियों की चिंताजनक वास्तविकता सामने आई है।

सर्वे में 36.2% ने कहा कि उन्हें अपने परिवार के सदस्यों के साथ मासिक धर्म पर चर्चा करने में कठिनाई होती है।
सर्वे में 36.2% ने कहा कि उन्हें अपने परिवार के सदस्यों के साथ मासिक धर्म पर चर्चा करने में कठिनाई होती है।

प्रमुख निष्कर्ष

सर्वेक्षण से कई चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं:

  • 81.3% लड़कियों ने बताया कि वे मासिक धर्म के बारे में बात करने में सबसे अधिक आराम केवल अपनी माताओं के साथ महसूस करती हैं, जो समाज में मासिक धर्म से जुड़े व्यापक कलंक को दर्शाता है।

  • 40.9% छात्राओं ने स्वीकार किया कि वे मासिक धर्म के दौरान स्कूल जाने से बचना पसंद करती हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि भ्रांतियों की वजह से और उचित सपोर्ट की कमी सीधे स्कूल उपस्थिति को प्रभावित करती है।

  • 18.8% लड़कियों ने खुलासा किया कि वे मासिक धर्म उत्पादों जैसे पैड का सही ढंग से उपयोग करना नहीं जानती हैं, और 17.1% को मासिक धर्म की अवधारणा के बारे में जानकारी नहीं थी।

  • सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि 34.4% लड़कियों को अपने मासिक चक्र की पूरी जानकारी नहीं थी, जबकि 36.2% ने कहा कि उन्हें अपने परिवार के सदस्यों के साथ मासिक धर्म पर चर्चा करने में कठिनाई होती है।

सर्वेक्षण से यह भी पता चला कि 8.6% प्रतिभागियों का मानना था कि मासिक धर्म उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, जबकि 17.8% इस बारे में अनिश्चित थे, जो मासिक धर्म स्वास्थ्य के बारे में मौलिक जानकारी की कमी को दर्शाता है।
सर्वेक्षण से यह भी पता चला कि 8.6% प्रतिभागियों का मानना था कि मासिक धर्म उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, जबकि 17.8% इस बारे में अनिश्चित थे, जो मासिक धर्म स्वास्थ्य के बारे में मौलिक जानकारी की कमी को दर्शाता है।

तत्काल बदलाव की आवश्यकता

ये निष्कर्ष भारत के स्कूलों में व्यापक मासिक धर्म शिक्षा की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं। ग्रीन पेंसिल फाउंडेशन की संस्थापक सैंडी खंडा ने मासिक धर्म को सामान्य प्रक्रिया बनाने के महत्व पर जोर देते हुए कहा, "ग्रीन पेंसिल फाउंडेशन 'पीरियड्स ऑफ प्राइड' पहल के माध्यम से मासिक धर्म को लेकर व्याप्त गलत धारणाओं को दूर करने के लिए प्रतिबद्ध है। उचित मासिक धर्म शिक्षा (menstrual education) और गुणवत्तापूर्ण मासिक धर्म उत्पादों ( quality menstrual products ) तक पहुंच हर लड़की और महिला का मौलिक अधिकार है।"

सर्वेक्षण से यह भी पता चला कि 8.6% प्रतिभागियों का मानना था कि मासिक धर्म उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, जबकि 17.8% इस बारे में अनिश्चित थे, जो मासिक धर्म स्वास्थ्य के बारे में मौलिक जानकारी की कमी को दर्शाता है।

सह-संस्थापक गौरव कुमार ने इस स्थिति की गंभीरता को रेखांकित करते हुए कहा, "यह कड़वी सच्चाई तत्काल कार्रवाई की मांग करती है। किशोरियों को मासिक धर्म और अच्छे मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन प्रथाओं के व्यावहारिक और सैद्धांतिक पहलुओं पर शिक्षित करने के लिए स्कूल नीतियों में मासिक धर्म शिक्षा को एकीकृत करना बेहद जरूरी है।"

अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर, ग्रीन पेंसिल फाउंडेशन सरकार, एनजीओ और समाज से मासिक धर्म को सामान्य बनाने और लड़कियों को सशक्त बनाने के लिए एकजुट होने का आह्वान कर रहा है। स्कूल के पाठ्यक्रम में व्यापक मासिक धर्म शिक्षा को एकीकृत करके, फाउंडेशन का उद्देश्य उन गलत धारणाओ और पूर्वाग्रहों को तोड़ना है जो आज भी लड़कियों की शिक्षा और समग्र कल्याण को बाधित करते हैं।

सैंडी खंडा ने इन मुद्दों को संबोधित करने के महत्व को दोहराते हुए कहा, "महिलाएं दशकों से अपने मौलिक अधिकारों के लिए लड़ रही हैं। मासिक धर्म स्वच्छता शिक्षा हर लड़की का मौलिक अधिकार है, और हमें अब कदम उठाने की जरूरत है ताकि इन अधिकारों को पहचाना और सम्मानित किया जा सके।"

"पीरियड्स ऑफ प्राइड" पहल भारत में मासिक धर्म को लेकर सामाजिक दृष्टिकोण को पुनः आकार देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। ग्रीन पेंसिल फाउंडेशन के निष्कर्ष यह बताते हैं कि जागरूकता अभियानों और स्कूलों में संरचनात्मक बदलावों की सख्त आवश्यकता है ताकि कोई भी लड़की मासिक धर्म के कारण अपनी शिक्षा से वंचित न हो।

फाउंडेशन इस बात के लिए प्रतिबद्ध है कि मासिक धर्म को सामान्य किया जाए और भारत भर की सभी लड़कियों को अपने मासिक धर्म स्वास्थ्य को गर्व के साथ प्रबंधित करने के लिए आवश्यक संसाधन और ज्ञान प्रदान किया जाए।

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