बाल विवाह पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले से सामाजिक कार्यकर्ता खुश, कहा- 2030 तक समाप्त हो सकेगी कुप्रथा

सुप्रीम कोर्ट की ओर से जारी दिशानिर्देशों में स्कूलों, धार्मिक संस्थाओं और पंचायतों को बाल विवाह के खिलाफ जागरूकता के प्रसार का अहम औजार बताते हुए बाल विवाह की ज्यादा दर वाले इलाकों में स्कूली पाठ्यक्रम में बाल विवाह की रोकथाम से संबंधित उपायों की जानकारियां शामिल करने को कहा गया है।
बाल विवाह पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले से सामाजिक कार्यकर्ता खुश, कहा- 2030 तक समाप्त हो सकेगी कुप्रथा
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उदयपुर- देश में बाल विवाह कानून पर एक ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून के प्रभावी तरीके से कार्यान्वयन के लिए विस्तृत दिशानिर्देश जारी करते हुए कहा कि बाल विवाह अपनी मर्जी से जीवनसाथी चुनने के अधिकार को छीनता है। ‘बाल विवाह मुक्त भारत’ अभियान के सहयोगी सोसाइटी फॉर एनलाइटेनमेंट एंड वालंटरी एक्शन (सेवा) और कार्यकर्ता निर्मल गोराणा की याचिका पर आए इस फैसले से बाल अधिकार कार्यकर्ता और समाज सेवी उत्साहित हैं।

मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस जे. बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि प्राधिकरणों को बाल विवाह निषेध अधिनियम (PCMA), 2006 के कार्यान्वयन के लिए एक निवारण-संरक्षण-प्रोसेक्यूशन रणनीति और समुदाय-आधारित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दिशा-निर्देशों में स्कूलों, धार्मिक संस्थानों और पंचायतों को बाल विवाह के खिलाफ जागरूकता फैलाने का केंद्र बनाने पर जोर दिया गया है और जहां-जहां बाल विवाह प्रचलित है, वहां स्कूल पाठ्यक्रम में इसके निवारण की जानकारी शामिल की जानी चाहिए। यह याचिका एनजीओ सेवा द्वारा दायर की गई थी, जिसने दावा किया था कि देश में बाल विवाह की स्थिति गंभीर है और बाल विवाह कानून का “पत्र और भावना” में पालन नहीं हो रहा है।

‘बाल विवाह मुक्त भारत’ अभियान 200 से भी ज्यादा गैरसरकारी संगठनों का गठबंधन है जो 2030 तक बाल विवाह के खात्मे के लिए पूरे देश में काम कर रहे हैं।

उदयपुर में शनिवार को सेक्टर 6 स्थित गायत्री सेवा संस्थान के सभागार में आयोजित बैठक में बाल अधिकार विशेषज्ञ एवं बाल विवाह मुक्त भारत अभियान के सदस्य डॉ. शेलेन्द्र पण्ड्या ने कहा “सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से देश में बाल विवाह के खात्मे के प्रयासों को मजबूती मिलेगी और हम राज्य सरकार से अपील करते हैं कि वह इन दिशानिर्देशों पर तत्काल प्रभाव से अमल करे ताकि 2030 तक भारत को बाल विवाह मुक्त बनाने के लक्ष्य को हासिल किया जा सके।"

सुप्रीम कोर्ट की ओर से जारी दिशानिर्देशों में स्कूलों, धार्मिक संस्थाओं और पंचायतों को बाल विवाह के खिलाफ जागरूकता के प्रसार का अहम औजार बताते हुए बाल विवाह की ज्यादा दर वाले इलाकों में स्कूली पाठ्यक्रम में बाल विवाह की रोकथाम से संबंधित उपायों की जानकारियां शामिल करने को कहा गया है। खंडपीठ गैरसरकारी संगठन सेवा और कार्यकर्ता निर्मल गोराणा की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें दावा किया गया था कि देश में बाल विवाह की स्थिति गंभीर है और बाल विवाह के खिलाफ बने कानून पर उसकी अक्षरशः अमल नहीं कर उसकी मूल भावना से खिलवाड़ किया जा रहा है। फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ ने बचाव-संरक्षण-अभियोजन रणनीति और समुदाय आधारित दृष्टिकोण पर जोर देते हुए कहा, “कानून तभी सफल हो सकता है जब बहुक्षेत्रीय समन्वय हो। कानून प्रवर्तन अधिकारियों के प्रशिक्षण व क्षमता निर्माण की आवश्यकता है। हम एक बार फिर समुदाय आधारित दृष्टिकोण की जरूरत पर जोर देते हैं।”

फैसले का स्वागत करते हुए गायत्री सेवा संस्थान, उदयपुर के समन्वयक नितिन पालीवाल ने बताया की यह हम सभी के लिए एक बेहद महत्वपूर्ण फैसला है। राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन बाल विवाह के खात्मे के लिए जिस जोश और संकल्प के साथ काम कर रहे हैं, वह सराहनीय है और यह फैसला हम सभी के साझा प्रयासों को और मजबूती देगा। बाल विवाह एक ऐसा अपराध है जिसने सारे देश को जकड़ रखा है और इसकी स्पष्ट व्याख्या के लिए सुप्रीम कोर्ट के आभारी हैं। हम आश्वस्त हैं कि साथ मिलकर और साझा प्रयासों से हम 2030 तक इस अपराध का पूरी तरह खात्मा कर देंगे।” बताते चलें कि पिछले एक साल में बाल विवाह मुक्त भारत अभियान और इसके सहयोगी गैरसरकारी संगठनों के प्रयासों से देश में सफलतापूर्वक 120,000 बाल विवाह रुकवाए गए। इसके अलावा, सरकार के प्रयासों से बाल विवाह की दृष्टि से संवेदनशील 11 लाख बच्चों का विवाह होने से रोका गया।

‘बाल विवाह मुक्त भारत’ अभियान के संस्थापक भुवन ऋभु ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को भारत और पूरी दुनिया के लिए नजीर बताते हुए कहा, “यह ऐतिहासिक फैसला सांस्थानिक संकल्प को मजबूती देने की दिशा में निर्णायक बिंदु साबित होगा। यह देश से बाल विवाह के समग्र उन्मूलन के लक्ष्य की प्राप्ति में एक बेहद अहम जीत है। सुप्रीम कोर्ट और सरकार के प्रयासों ने दिखाया है कि उन्हें बच्चों की परवाह है और अब समय आ गया है कि हम सभी आगे आएं और साथ मिलकर इस सामाजिक अपराध का खात्मा करें।”

ऋभु ने कहा,”अगर हम अपने बच्चों की सुरक्षा करने में विफल हैं तो फिर जीवन में कोई भी काम मायने नहीं रखता। सुप्रीम कोर्ट ने एक समग्र दृष्टिकोण की जरूरत को फिर मजबूती से रेखांकित किया है और ‘पिकेट’ रणनीति के जरिए ‘बाल विवाह मुक्त भारत अभियान’ भी इसी पर जोर देता रहा है। बाल विवाह अपने मूल रूप में बच्चों से बलात्कार है। यह निर्णय सिर्फ हमारे संकल्प को ही मजबूती नहीं देता बल्कि इस बात को भी रेखांकित करता है कि जवाबदेही और साझा प्रयासों से हम बच्चों के खिलाफ हिंसा के सबसे घृणित स्वरूप बाल विवाह का खात्मा कर सकते हैं।”

‘बाल विवाह मुक्त भारत’ अभियान 200 से भी ज्यादा गैरसरकारी संगठनों का गठबंधन है जो 2030 तक बाल विवाह के खात्मे के लिए पूरे देश में काम कर रहे हैं। ये सभी सहयोगी संगठन इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एक समग्र रणनीति ‘पिकेट’ पर अमल कर रहे हैं जिसमें नीति, संस्थान, संम्मिलन, ज्ञान, परिवेश, तकनीक जैसी चीजें शामिल हैं। धार्मिक नेताओं और समुदायों के साथ साझा प्रयासों से इसने इस अपराध के खात्मे के लिए 4.90 करोड़ लोगों को बाल विवाह के खिलाफ शपथ दिलाई है।

इस अवसर पर बाल विवाह मुक्त अभियान सलुम्बर जिला समन्वयक पायल कनेरिया, प्रतापगढ़ जिला समन्वयक रामचंद्र मेघवाल, चित्तोडगढ़ जिला समन्वयक अमित राव, एवं आशिता जैन, सुभाष जोशी उपिस्थित रहेंl

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