कुपोषण में शीर्ष पर एमपी में बढ़ते ग्राफ़ को काबू करने के लिए खानपान की संस्कृति, रीति-रिवाज, और जीवन शैली पर सर्वे करने की तैयारी!

अति कम वजन के बच्चों के लिए प्रतिदिन केवल 12 रुपये की राशि निर्धारित की गई है, जबकि अन्य कुपोषित बच्चों के लिए 8 रुपये और गर्भवती व धात्री महिलाओं के लिए 9.5 रुपये का आहार उपलब्ध कराया जा रहा है।
कुपोषण में शीर्ष पर एमपी में बढ़ते ग्राफ़ को काबू करने के लिए खानपान की संस्कृति, रीति-रिवाज, और जीवन शैली पर सर्वे करने की तैयारी!
द मूकनायक
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भोपाल। तमाम योजनाओं और प्रयासों के बावजूद मध्य प्रदेश में कुपोषण की स्थिति अत्यंत गंभीर बनी हुई है। हाल ही में प्रकाशित पोषण ट्रैकर की जून 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में 27 प्रतिशत बच्चे, जिनकी उम्र छह साल तक की है, कम वजन के हैं। यह आंकड़ा मध्य प्रदेश को देश के शीर्ष पर रखता है, जो राज्य के स्वास्थ्य संबंधी प्रबंधनों पर गंभीर सवाल खड़ा करता है।

मध्य प्रदेश सरकार, विशेष रूप से महिला एवं बाल विकास विभाग, ने इस चुनौती से निपटने के लिए एक नई रणनीति तैयार की है। विभाग कुपोषण से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों (पॉकेट्स) की पहचान करवा रहा है। इसके लिए राज्य भर में व्यापक सर्वेक्षण किया जाएगा। इस सर्वे का उद्देश्य केवल प्रभावित क्षेत्रों की पहचान करना ही नहीं, बल्कि कुपोषण के पीछे के सामाजिक कारणों को भी समझना है।

उदाहरण के तौर पर, विभाग यह पता करेगा कि क्या संबंधित क्षेत्रों में खानपान की संस्कृति, रीति-रिवाज, और जीवन शैली कुपोषण के लिए जिम्मेदार हैं। इन तथ्यों के आधार पर ही आगे की रणनीति तैयार की जाएगी।

मध्य प्रदेश में कई क्षेत्रों में सामाजिक रीति-रिवाजों के कारण भोजन का समय और प्रकार बहुत अलग होते हैं, जिससे पोषण की गुणवत्ता प्रभावित होती है। गर्भवती महिलाएं और छोटे बच्चे, जो भोजन लेते हैं, उसमें आवश्यक पोषक तत्वों की कमी होती है। इस स्थिति को सुधारने के लिए सर्वेक्षण में इन सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं को भी शामिल किया जाएगा। सर्वे के परिणाम सामने आने के बाद संबंधित विभाग मिलकर कमियों को दूर करेंगे और कुपोषण की दर को घटाने के लिए कदम उठाएंगे।

हालांकि सरकार कुपोषण से निपटने के लिए कई योजनाएं चला रही है, परंतु इन योजनाओं की सबसे बड़ी चुनौती आंगनबाड़ी केंद्रों में पोषण आहार की कम दरें हैं। अति कम वजन के बच्चों के लिए प्रतिदिन केवल 12 रुपये की राशि निर्धारित की गई है, जबकि अन्य कुपोषित बच्चों के लिए 8 रुपये और गर्भवती व धात्री महिलाओं के लिए 9.5 रुपये का आहार उपलब्ध कराया जा रहा है। यह दरें 1 अप्रैल 2028 से नहीं बढ़ाई गई हैं, जबकि इस दौरान खान-पान की वस्तुओं की कीमतें दोगुनी हो चुकी हैं।

सरकार के द्वारा दिए गए इन अल्प राशियों में से आधी राशि केंद्र सरकार और आधी राज्य सरकार द्वारा वहन की जाती है। परंतु यह दरें वर्तमान परिस्थिति के अनुसार अत्यधिक कम हैं, जिससे बच्चों और गर्भवती महिलाओं को उचित पोषण नहीं मिल पा रहा है।

प्रभावित जिलों की स्थिति

श्योपुर, सतना, मंडला जैसे जिले कुपोषण से सबसे अधिक प्रभावित हैं। राज्य सरकार इन क्षेत्रों में सर्वेक्षण कर यह जानने का प्रयास करेगी कि कहीं सामाजिक रीति-रिवाज, जीवन शैली और खानपान की आदतें इसके बड़े कारण तो नहीं हैं। सर्वेक्षण के बाद सामने आने वाली रिपोर्ट के आधार पर आगे की रणनीति बनाई जाएगी।

कुपोषण के खिलाफ लड़ाई में सबसे बड़ी चुनौती इन प्रभावित क्षेत्रों में सामाजिक और सांस्कृतिक कारणों का समाधान करना है। अगर सरकार इन जड़ों को पहचानने और उनमें सुधार करने में सफल होती है, तो राज्य में कुपोषण की दर को कम किया जा सकता है। परंतु इसके लिए आवश्यक है कि केवल सरकारी योजनाओं पर ही निर्भर न रहकर स्थानीय समुदायों को भी इस अभियान में शामिल किया जाए, ताकि खानपान की संस्कृति और रीति-रिवाजों में सुधार कर उन्हें पोषण आहार के महत्व को समझाया जा सके।

आंकड़े पोषण ट्रैकर की जून 2024 की रिपोर्ट के अनुसार 6 साल की उम्र तक बच्चों में कुपोषण की स्थिति के आंकड़े सामने आए हैं। मध्य प्रदेश 27%, गुजरात 23%, बिहार 22%, उत्तर प्रदेश 19% और झारखंड में 18 प्रतिशत है।

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