पीरियड्स,करियर और सेक्सुअलिटी: संवेदनशील विषयों पर खुलकर बात करती है 'शर्मा जी की बेटी'

यह फिल्म भारतीय मिडिल क्लास फैमिली की जिंदगी की कहानी कहती है। गंभीर विषयों पर केंद्रित होने के बावजूद एक हल्की-फुल्की फिल्म है जिसके देखने के बाद एक पॉजिटिव फीलिंग का संचार होता है
पीरियड्स,करियर और सेक्सुअलिटी: संवेदनशील विषयों पर खुलकर बात करती है 'शर्मा जी की बेटी'
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अमेजन प्राइम पर पिछले सप्ताह रिलीज हुई ताहिरा कश्यप निर्देशित मूवी 'शर्मा जी की बेटी' कई मायनों में बहुत अलग फिल्म है। महिला किरदारों पर केंद्रित इस फिल्म में पीरियड्स, समान लिंग के प्रति आकर्षण, प्रेम रहित वैवाहिक जीवन की बोझिलता, स्पोर्ट्स में लड़कियों के करियर को लेकर पुरुषों की मानसिकता आदि तमाम संवेदनशील मुद्दों को कॉमेडी और ह्यूमर के तड़के के साथ बहुत खूबसूरती से प्रस्तुत किया गया है।

फिल्म के सभी मुख्य किरदार महिलाएं हैं और सभी कॉमन सरनेम 'शर्मा' शेयर करती हैं. फिल्म का टाइटल शायद इसलिए ही यह रखा गया है क्योंकि 'शर्मा' भारत में सबसे कॉमन सरनेम में एक है और कहानी के किरदारों को देख कर कोई भी भारतीय लडकी या महिला किसी ना किसी पॉइंट पर उनसे रिलेट कर पाती हैं।

यह मूवी वुमनहुड का जश्न मनाने वाली भारतीय फिल्मों में एक है जो फील गुड करवाती है। यह एक ऐसी फिल्म है जो न केवल भारत भर के शर्मा परिवारों के साथ, बल्कि उन दर्शकों के साथ भी जुड़ती है जो महिलाओं की ताकत और लचीलेपन को पहचानते हैं। 

भारतीय समाज में माहवारी यानी पीरियड्स आज भी एक टैबू विषय है जिस पर लडकियां अपनी मां से खुलकर बात नही कर पाती हैं। लेकिन इस फिल्म में 13 साल की स्वाति (वंशिका तपारिया) अपनी मां ज्योति ( साक्षी तंवर) से जिद करके अपना vagina टेस्ट gynecologist से करवाने के लिए साथ ले जाती है जो समाज में आ रहे बदलाव खासतौर स्कूली बच्चों में यौन शिक्षा को लेकर जागृति का सुखद अहसास करवाती है।

आठवीं क्लास की स्वाति इस बात से चिंतित है कि उसके अलावा उसके बैच की सभी लड़कियों के पीरियड्स स्टार्ट हो चुके हैं। हार्मोनल चेंज के लिए व्याकुल स्वाति अपने अविकसित स्तनों से बहुत परेशान हैं और दूसरी लड़कियों के समान आकर्षक दिखने और अपने शरीर में उभार दिखाने के लिए अपनी मम्मी के रुमालों का इस्तेमाल करती है।

स्वाति की मम्मी एक कोचिंग संस्थान में टीचर है जो अपने पेशे से बहुत प्यार करती हैं लेकिन करियर और परिवार के बीच संतुलन बनाने की जद्दोजहद में कहीं न कहीं वह अपनी बेटी की फीलिंग्स और टीनेज में आने वाले शारीरिक मानसिक परिवर्तन को भांप नहीं पाती जिससे मां और बेटी के बीच दूरियां उपजने लगती हैं। फिल्म में दिखाया जाता है कि किस तरह हजारों स्टूडेंट्स को सही दिशा दिखाने वाली एक शिक्षिका स्वयं अपनी बेटी की निगाहों में एक गैर जिम्मेदार और लापरवाह मां बनकर अपमान का घूंट पीती है जबकि कोचिंग संस्थान में सभी स्टूडेंट्स की वह प्रिय टीचर हैं।

 स्वाति की बेस्ट फ्रेंड गुरवीन (अरिस्ता मेहता) की समस्या कुछ अलग है। उसे लडकों के प्रति अट्रैक्शन महसूस नहीं होता और उसे यह बोध होने लगता है की शायद वह gay है। किशोरावस्था की दहलीज पर खड़ी गुरविन जब अपनी मम्मी से हिम्मत जुटा कर अपनी sexuality पर चर्चा करती है तो उसकी आशंका के उलट मां डाटने फटकारने की बजाय प्यार से उसे यह समझाती है कि विपरीत या समान लिंग के प्रति स्नेह जागना इश्यू नहीं है, असल बात है की दूसरों के प्रति प्यार होना चाहिए और प्यार के कई रूप होते हैं।

स्वाति गुरवीन से हार्मोनल बदलावों के बारे में शिकायत करती है और ऐसा महसूस करती है कि उसका शरीर सामान्य रूप से विकसित नहीं हो रहा है, इसकी तुलना रोड रोलर द्वारा कुचले जाने से की जाती है। मासिक धर्म की शुरुआत आम तौर पर लड़कियों के लिए एक बुरा सपना जैसा होता है, लेकिन इस फिल्म में menstruation को एक फील गुड टच दिया गया है - स्वाति अपनी मासिक धर्म के लिए इतनी बेताब है कि जब उसे यह शुरू होता है, तो वह बिना किसी शर्म के अपने दाग लगे स्कर्ट में पूरे स्कूल में घूमती है। पीरियड्स को लेकर इस प्रकार का openness शायद ही किसी अन्य मूवी में देखने को मिला है.

 गुरवीन की मां किरण ( दिव्या दत्ता ) जो पटियाला जैसे छोटे शहर से शिफ्ट होकर कुछ समय पहले ही मुंबई आई है, मेट्रो कल्चर की भागमभाग, हाउस वाइफ होने की बोरियत , पति की उपेक्षा से पीड़ित है और खुलकर बात करने के लिए एक अदद मित्र की कमी झेलती है।

उसे जब मालूम होता है की रोजाना रात को काम का बहाना कर लेट आने वाले पति का एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर चल रहा है, बिना किसी लड़ाई झगडे और तर्क के वह अपने वजूद की अलग पहचान बनाने में कामयाब हो जाती है और स्वयं की कद्र करना सीख लेती है। 

कहानी में एक और परत तन्वी (सैयामी खेर ) किरण की जिंदादिल पड़ोसी और मुंबई महिला क्रिकेट टीम की एक स्टार खिलाड़ी जोडती हैं। अपनी प्रतिभा के बावजूद, तन्वी को सामाजिक दबावों और एक बॉयफ्रेंड का सामना करना पड़ता है जो चाहता है कि उसकी गर्लफ्रेंड वैसी ही रहे जैसे कि दूसरी लड़कियां रहती हैं। मेनिक्योअर या मेकअप की बजाय तन्वी पंजा लडाने, जिम जाने में रुचि रखती है जो उसके मॉडल बॉय फ्रेंड को गवारा नहीं. आखिर में तन्वी को भी अहसास होता है कि उसका अपना क्रिकेट करियर भी उतना ही जरूरी है जितना उसके बॉय फ्रेंड का मॉडलिंग करियर. इसके साथ ही तन्वी इस घुटन वाले रिलेशनशिप से खुद को आजाद कर लेती हैं.

कुल मिलाकर यह एक फैमिली मूवी है जो पूरे परिवार के साथ देखी जा सकती है, स्वाति और गुरवीन की बढ़ती उम्र की कहानियां एक वास्तविकता के साथ गूंजती हैं जो दिल को छू लेती है।

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