नई दिल्ली: पिछले साल 3 मई को शुरू हुए भारत के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में हिंसा के आज एक साल पूरे हो चुके हैं. लेकिन, राज्य से अभी भी छिटपुट हिंसा की घटनाएं सामने आती रहीं हैं. 3 मई को कुकी-ज़ो और राज्य में बहुसंख्यक आबादी वाले मैतेई समुदाय के बीच हिंसा भड़क उठी थी. इसने वैश्विक स्तर पर लोगों का ध्यान तब आकर्षित किया जब दो आदिवासी कुकी महिलाओं को मैतेई समुदाय की भीड़ ने नग्न अवस्था में घुमाया और उसकी वीडियो विभिन्न सोशल मीडिया पर आग की तरह फैलने लगी.
मैतेई और कुकी समुदायों के बीच लंबे समय से चला आ रहा तनाव हिंसा में बदल गया, जिसमें तीन दिनों में कम से कम 52 लोगों की जान चली गई। एक साल के भीतर, यह संख्या बढ़ती रही - पिछले वर्ष संघर्ष में कम से कम 226 लोगों की जान गई है। मृतकों में से 20 की पहचान महिलाओं के रूप में हुई है, और आठ बच्चे भी शामिल हैं।
मई में शुरू हुई हिंसा के बाद आज भी स्थिति में सुधार नहीं हो सका है. दोनों समुदायों के बीच अभी भी तनाव बरकार है. मणिपुर की घाटियों और पहाड़ियों में भारतीय सेना के जवानों के कैम्प अभी भी जमे हुए हैं.
अब तक के संघर्षों में मीडिया रिपोर्ट्स बताते हैं कि लगभग 1,500 से अधिक लोग घायल हुए हैं, लगभग 60,000 लोगों को राज्य के भीतर ही एक जगह से दूसरी जगह विस्थापित होना पड़ा है, और कम से कम 13,247 घर बर्बाद हो चुके हैं। इसके अलावा, 28 लोग अब भी लापता हैं या माना जा रहा है कि उनका अपहरण कर लिया गया है या उनकी हत्या कर दी गई है।
पहाड़ी में मौजूद कुकी बाहुल्य क्षेत्र में स्थित इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) मणिपुर हिंसा के एक वर्ष पूरे होने पर इसे 'कुकी-ज़ो जागृति दिवस' के रूप में याद कर रहा है. इसके अंतर्गत, प्रथम सत्र में यहां के सभी चर्च में सामूहिक प्रार्थना आयोजित की गई। जबकि, दूसरा सत्र शहीद कब्रिस्तान सेहकेन गांव में आयोजित किया गया।
मणिपुर की राजधानी इम्फाल निवासी मानसिंह द मूकनायक को बताते हैं कि, “मणिपुर में संघर्ष के एक साल में यह परिवर्तन हुआ है कि मैतेई समझदार हो गए हैं. अधिकांश लोग पहले SoO (Suspension of Operation with Kuki Militants), FMR (Free Movement Regime), वन आरक्षण और अवैध प्रवासियों की संख्या के बारे में नहीं समझते थे। इस संघर्ष के कारण एक अच्छा उम्मीदवार - अकोइजाम बिमोल- सामने आया और कांग्रेस की ओर से चुनाव लड़ा।
मानसिंह राज्य में शिक्षा के बारे में बताते हैं कि, “घाटी क्षेत्र में अधिकांश स्कूल एवं कॉलेज सुचारू रूप से चल रहे हैं। रोज़गार को निश्चित तौर पर झटका लगा है. मैं कई उत्पादों के विज्ञापन अखबारों में अब नहीं देख रहा। मुझे केवल यूपीएससी और परीक्षाओं के लिए कोचिंग संस्थानों के विज्ञापन देखने को मिलते हैं। जिंदगी किसी के लिए भी सामान्य नहीं है. सरकार के अलावा हर कोई शांति चाहता है.”
राजधानी इम्फाल से लगभग 45 किमी दूर स्थित मोयरांग के राहत शिविर में हिंसा के दौरान अपने घरों को छोड़कर आए कई लोग अभी रह रहे हैं. हिंसा में प्रभावित मैतेई समुदाय के लोगों के लिए यह राहत शिविर बनाया गया है. राहत शिविर के वालंटियर कुमाम डेविडसन ने बताया कि, “राहत शिविर की माताओं और लोगों का कहना है कि वे घर लौटना चाहते हैं.”
मणिपुर के कुकी बाहुल्य क्षेत्र चुराचांदपुर स्थित ज़ोमी स्टूडेंट्स फेडरेशन के उपाध्यक्ष (External), थोंग थांगसिंग (Thong Thangsing) ने बताते हैं कि, हजारों स्कूली छात्र राहत शिविरों में रह रहे हैं और उनकी शिक्षा की को लेकर उपेक्षा की जा रही है। जिन कुछ लोगों को सरकारी स्कूलों में दाखिला मिला है वे स्कूलों के अनुचित कामकाज की शिकायत करते हैं। सैकड़ों लोग निजी स्कूलों में जा रहे हैं और उनके माता-पिता को उनके प्रवेश और ट्यूशन फीस का भुगतान करना मुश्किल हो रहा है।”
“जेडएसएफ ने स्वयं आईडीपी बच्चों (अपने ही राज्य में विस्थापित छात्र) और अन्य सरकारी स्कूली बच्चों के लाभ के लिए एक सरकारी स्कूल को गोद लेने और इसे उच्च मानकों पर चलाने की पहल शुरू की है”, उन्होंने कहा.
रोज़गार के बारे में वह बताते हैं कि, “भर्ती अभियान चलाए जा रहे हैं और हजारों लोगों ने विभिन्न सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन किया है, लेकिन अंतिम भर्ती संदेह में है। आदर्श आचार संहिता के बीच भर्ती का विज्ञापन कैसे दिया जा सकता है। हमारा संदेह यह है कि पहले भी, राज्य सरकार ने भर्ती की घोषणा की थी और हजारों लोगों ने भर्ती के लिए शुल्क का भुगतान किया था, लेकिन अंतिम समय में शुल्क की प्रतिपूर्ति के बिना भर्ती रद्द कर दी गई थी। सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन करने वाले युवाओं की संख्या हजारों में होना रोजगार के निम्न स्तर का संकेत है। रोजगार का शायद ही कोई अन्य साधन हो। सरकारी रोजगार ही एकमात्र विकल्प है.”
हिंसा के बाद मणिपुर में बदलाव को लेकर वह द मूकनायक को बताते हैं कि, आज के मणिपुर में बहुत कुछ नहीं बदला है. हिंसा और जातीय संघर्ष का माहौल बना हुआ है. ऐसा इसलिए है क्योंकि 1 साल की अशांति के बाद भी, मैतेई कट्टरपंथी, सशस्त्र समूह और आतंकवादी स्वतंत्र रूप अपना काम जारी रखे हुए हैं।”
थोंग थांगसिंग के अनुसार हिंसा के बाद सबसे ज्यादा असर शिक्षा और छात्रों पर पड़ रहा है. प्रतियोगी परीक्षाओं के अभ्यर्थी बुरी तरह प्रभावित हुए। उन्हें मिज़ोरम और इंफाल जैसे अन्य राज्यों के अन्य परीक्षा केंद्रों तक यात्रा करनी पड़ी और कुछ मामलों में, सेनापति राज्य में एकमात्र परीक्षा केंद्र था।
उन्होंने कहा, “राज्य के पहाड़ी जिलों, विशेष रूप से लमका, चुराचांदपुर में प्रारंभिक परीक्षा केंद्र आवंटित करने के लिए यूपीएससी को बाध्य करने से दिल्ली उच्च न्यायालय के इनकार को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जा रही है क्योंकि हम दिल्ली उच्च न्यायालय के निष्कर्ष से संतुष्ट नहीं हैं। हम तब तक हार नहीं मानेंगे जब तक हमारे जिले में प्रीलिम्स यूपीएससी परीक्षा केंद्र नहीं बन जाता।”मणिपुर ग्राउंड रिपोर्ट
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