दिल्ली: झुलसाने वाली गर्मी के बीच आंगनवाड़ी में अभी भी आ रहे हैं मासूम

आरोप है कि जब इस समय दफ्तर, स्कूल सभी बंद होते हैं, तब आंगनवाड़ी वर्कर्स को सख्त निर्देश दिए गए होते हैं कि बच्चों को आंगनबाड़ी बुलाना ही है। तीन से छः साल के बच्चों को फर्श पर बैठना पड़ता है। उनके लिए वहां कुर्सी टेबल नहीं होते है, ना वहां पानी है। दवाई की सुविधा भी नहीं है। ज्यादातर यह बच्चे स्लम एरिया से होते हैं, तो उनके कपड़े मौसम के विपरीत ही होती है। जिससे हीटस्ट्रोक का खतरा उनपर बढ़ जाता है.
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सांकेतिक फोटोफोटो साभार- दैनिक जागरण
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नई दिल्ली: इन दिनों प्रदेश में भीषण गर्मी पड़ रही है, आमजन बेहाल हैं। विशेषकर बच्चे गर्मी से जल्दी प्रभावित हो होते हैं इसलिए गर्मियों में विद्यालयों में अवकाश घोषित कर दिया जाता है। लेकिन, आंगनबाड़ी केंद्र पूर्व की तरह संचालित हो रहे हैं। जिसमें तीन से छह वर्ष तक के बच्चे आ रहे हैं। हैरत की बात यह है कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता इस संबंध में कई बार विभागीय अधिकारियों को अवगत करा चुके हैं, लेकिन अभी तक अवकाश घोषित करने के संबंध में कोई कार्रवाई नहीं हुई।

आंगनबाड़ी यूनियन की प्रिया द मूकनायक को बताती हैं कि, "हम दिल्ली में देख रहे हैं कि हीट स्ट्रोक का समय चल रहा है। लोगों की जान भी जा चुकी है। फिर भी ऐसा माहौल होने के बाद भी आंगनवाड़ी वर्कर्स और यहां के बच्चों के लिए छुट्टियां नहीं है। आंगनबाड़ी केंद्र बंद करने का किसी का कोई इरादा नहीं है। बच्चे उनको हर रोज ही बुलाने हैं। यही चीज सर्दियों में भी होती है। जब एकदम सर्दी का मौसम होता है, तब भी कोई छुट्टियां नहीं दी जाती है।"

"इस समय दफ्तर, स्कूल सभी बंद होते हैं, लेकिन आंगनवाड़ी वर्कर्स को सख्त निर्देश दिए गए होते हैं, कि बच्चों को आंगनबाड़ी बुलाना ही है। बच्चे तीन से छः साल के बच्चे होते हैं। जिनको फर्श पर बैठना होता है। उनके लिए वहां कुर्सी टेबल तो नहीं होते है। ना वहां कोई सुविधा होती है। पानी भी नहीं है। दवाई की सुविधा भी नहीं है। बच्चों के लिए जो जरूरी चीजे होनी चाहिए वह वहां नहीं होती हैं। ज्यादातर यह बच्चे स्लम एरिया से होते हैं, तो उनके कपड़े मौसम के विपरीत ही होती है। इस हीट स्ट्रोक में भी आप बच्चों को बुलाते हैं, तो अगर किसी के साथ कोई समस्या हुई तो कौन उसकी जिम्मेदारी लेगा। इस पर कोई भी सरकार कुछ नहीं बोलती है, ना सोचती है। आंगनवाड़ी वर्कर्स बच्चों की जिम्मेदारी है। वह अपनी जिम्मेदारी काफी बेहतर तौर पर निभाते हैं। कई बार वह अपने पैसों से ही बच्चों के लिए जरूरी सामान लेकर आते हैं," प्रिय ने कहा.

वह आगे बताती हैं कि, "हमारे यूनियन की काफी समय से यह मांग रही है कि गर्मियों की छुट्टियां और सर्दियों की छुट्टियां आंगनबाड़ी को मिलने ही चाहिए। क्योंकि यहां भी छोटे बच्चे आते हैं. एक तरफ सरकार बोलती है कि आंगनवाड़ी वर्कर वॉलेंटियर हैं। लेकिन काम सारे करवाए जाते हैं जो एक सरकारी कर्मी करता है। वर्कर को 12 हजार और हेल्पर को 6 हजार रुपए मिलते हैं। खाने की क्वालिटी भी इतनी अच्छी नहीं होती। पहले तो खाने की क्वालिटी बहुत बेकार थी। हमारे बार-बार शिकायत करने के बाद अब ठीक क्वालिटी में खाना आता है। हम 2015 से आंगनबाड़ी के अलग-अलग मांग को लेकर काम कर रहे हैं। आशा करते हैं कि सरकार उनके बारे में सोचेगी।"

कोई हमारी बात नहीं सुनता

नाम ना बताने की शर्त पर एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता द मूकनायक को बताती हैं कि "इस समय सभी स्कूल संस्थाएं बंद हो गए हैं। सभी की छुट्टियां चल रही है। तो आंगनबाड़ी के वर्कर को भी छुट्टी मिलनी चाहिए। हम लोग कितनी बार यह बोल चुके हैं। ज्यादातर बच्चे गरीब और स्लम एरिया के होते हैं। उनके बारे में तो सरकार को ज्यादा सोचना चाहिए लेकिन वह लोग सुनते ही नहीं है। हमने सुपरवाइजर को कितनी बार बोला कि आप छुट्टियों के लिए आगे क्यों नहीं कहते तो सुपरवाइजर कहते हैं कि जब तक मिनिस्ट्री से कोई आर्डर नहीं आएगा। तब तक हम कुछ नहीं कर सकते। आप पूरी छुट्टियां मत दीजिए। केंद्र बंद मत कीजिए।"

वह कहती हैं, "इतनी तेज गर्मी में बच्चे आ रहे हैं. 2022 की स्ट्राइक का केस अभी तक चल रहा है। उस समय जितने वर्कर को निकाला गया था। वह लोग अब तक घर पर ही हैं। इसलिए अब आंगनवाड़ी वर्कर किसी भी पेपर पर साइन करने के लिए डरते हैं, और सामने नहीं आते हैं। उनको डर है कि उनकी नौकरी जा सकती है।"

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