उत्तर प्रदेश। बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए बौद्ध भिक्षु विभिन्न स्थानों पर कार्यक्रम आयोजित करते हैं। लेकिन बौद्ध भिक्षुओं द्वारा आयोजित किये जाने वाले ऐसे कार्यक्रमों पर अब अंकुश लगाने के आरोप लगाए जा रहे हैं। सीतापुर के मिश्रिख तहसील में हर साल होने वाली चौरासी कोसी परिक्रमा के दौरान बौद्ध पंडाल को लगाने की अनुमति नहीं मिली। मेले के दौरान यह बौद्ध पंडाल पिछले चालीस वर्षों से लगाया जाता रहा है। बौद्ध पंडाल लगाने की अनुमति न मिलने के कारण बौद्ध भिक्षुओ में नाराजगी है।
सरकार और जिला प्रशासन के इस रवैये को लेकर अखिल भारतीय बौद्ध एसोसिएशन के महासचिव भंते करुनानाद ने सरकार पर पक्षपात करने के आरोप लगाए हैं। भंते के मुताबिक वर्तमान सरकार बौद्धों का अपमान कर रही है। वहीं इस मामले में मिश्रिख एसडीएम ने कुछ भी बोलने से इंकार कर दिया।
लखनऊ से लगभग 90 किमी दूर सीतापुर जिले की मिश्रिख तहसील क्षेत्र में हिन्दुओं का सुप्रसिध्द तीर्थ स्थल नैमिषारण्य भी मौजूद है। इसे महर्षि दधीचि की धरती के नाम से भी जाना जाता है। हर वर्ष इस क्षेत्र में 84 कोसी परिक्रमा और पंच कोसीय परिक्रमा का आयोजन होता है। इस दौरान होली मेले की शुरुआत भी होती है। इस 84 कोसीय परिक्रमा के 11 पड़ाव होते हैं। यह परिक्रमा सीतापुर से हरदोई से होते हुए मिश्रिख की पंच कोसीय परिक्रमा के उपरांत होलिका दहन के दिन समाप्त हो जाती है। जबकि मेला अमावस्या तक चलता रहता है।
मेले में पूरे प्रदेश से लोग तरह-तरह की दुकानें और खेल तमाशा लेकर आते हैं। यहां करीब 500 के आस-पास दुकानें लगती हैं जो की इलाहाबाद, अयोध्या, गोंडा, मेरठ, बहराइच, बनारस सहित आसपास के जिलों के लोगों द्वारा लगाई जाती हैं। इनमें चूड़ियां, दरी, खिलौने, लोहे का सामान, लड़की का सामान के साथ तरह-तरह के झूले, जादू के खेल व अन्य मनोरंजन के कार्यक्रम भी किए जाते हैं। इसके साथ ही विभिन्न संत समुदायों द्वारा पंडाल लगाकर धर्म का प्रचार-प्रसार भी किया जाता है।
मिश्रिख कस्बे में एक बहुत ही पुराना बौद्ध विहार भी मौजूद है। इसकी स्थापना कई वर्षों पहले की गई थी। मिश्रिख में होने वाले इस कार्यक्रम में हर साल बड़ी संख्या में बौद्ध भिक्षु और उनके अनुयायी इकट्ठा होते हैं। वह इस दौरान महात्मा बुध्द और आम्बेडकर के विचारों का प्रचार-प्रसार करते हैं।
इस साल मिश्रिख में हुए इस आयोजन में बौद्ध पंडाल लगाने की अनुमति नहीं मिली। इसके लिए अखिल भारतीय बौद्ध एसोसिएशन के महासचिव भंते करुणांद ने डीएम और एसपी को लिखित रूप से पत्र लिखकर अनुमति भी मांगी थी। बावजूद इसके जिला प्रशासन और पुलिस द्वारा बौध्द पंडाल को लगाने की अनुमति नहीं दी गई। द मूकनायक ने भंते करुणानन्द से बातचीत की। भंते बताते हैं कि, "यह मेला पूर्णमासी से शुरू होता है और अमावस्या को समाप्त हो जाता है। इस मेले के आयोजन से पूर्व ही मैंने पत्र लिखकर पंडाल लगाने की अनुमति मांगी थी, लेकिन मुझे बौद्ध पंडाल लगाने की अनुमति नहीं दी गई."
भंते आगे कहते हैं, "इस सरकार में बौद्धों का अपमान किया जा रहा है। बौद्ध धर्म के अनुयायियों को दबाने का प्रयास किया जा रहा है। सरकार चाहती है कि बौद्ध धर्म और आम्बेडकर के विचारों का प्रचार प्रसार न हो सके। बौद्ध धर्म समानता और समरसता की बात करता है। बौद्ध धर्म चाहता है इस देश में जातिवादी और मनुवादी प्रथा खत्म हो। लेकिन सरकार इस पर रोक लगाना चाहती है। इस मामले में मैंने हाईकोर्ट में अपील की है। यह हमारा अधिकार है।"
इस मामले को लेकर द मूकनायक ने मिश्रिख के एसडीएम से बातचीत की। उन्होंने बौद्ध भिक्षुओं के पंडाल लगाने की अनुमति न देने की बात स्वीकार की है। वहीं अन्य धर्म के पंडालों के लगने के सवाल पर एसडीएम कुछ भी कहने से बचते नजर आये।
कानपुर के साढ़ थाना क्षेत्र के पहेवा गांव में बीते दिसंबर 2023 में बौद्ध कथा करा रहे दलित समुदाय पर हमला कर दिया गया था। इस दौरान ताबड़तोड़ फायरिंग भी हुई थी। कथा कराने वाले आयोजकों को पीटा गया था। संत रविदास की प्रतिमा को भी खंडित कर दी गई थी, पंडाल में रखी कुर्सियां तोड़ डाली गई थी। दलितों का आरोप था कि सवर्ण वर्ग के लोगों ने दलित समुदाय को धमकी दी थी कि अगर गांव में बौद्ध कथा का आयोजन हुआ तो लाशें उठेंगी। पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज किया। सुरक्षा के लिहाज से गांव में पीएसी और भारी पुलिस बल को तैनात किया गया था। इस मामले में चार आरोपियों को पुलिस ने हिरासत में लिया गया था।
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