SC-ST वर्गों में उपवर्गीकरण: सुप्रीम कोर्ट के फैसले से गुस्साए बहुजन बोले- 2 अप्रैल 2018 का आंदोलन याद है ना?

एक्टिविस्ट बोले आरक्षण ग़रीबी उन्मूलन कार्यक्रम नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आदिवासी/दलित विरोधी और बँटवारे की राजनीति है.
 2,अप्रैल 2018 में हुए एससी एसटी एक्ट बचाओ आंदोलन ( फाइल फोटो)
2,अप्रैल 2018 में हुए एससी एसटी एक्ट बचाओ आंदोलन ( फाइल फोटो)
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नई दिल्ली - सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के खिलाफ दलित और आदिवासी समुदाय कड़ा विरोध कर रहे हैं। कोर्ट ने अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के उप-वर्गीकरण की अनुमति दी है, जिसे समुदाय के लोगों ने अन्यायपूर्ण और विभाजनकारी बताया है।

बहुजन समुदाय आरक्षण के अधिकारों को कमजोर करने और सामाजिक विभाजन को बढ़ावा देने वाले इस फैसले की आलोचना कर रहा है। सोशल मीडिया में बहुजन चिन्तक, राजनीतिक विश्लेषक और दलित/आदिवासी अधिकारों के लिए सक्रिय लोगों की प्रतिक्रियाएं लगातार जारी हैं. फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और बयान जारी किए जा रहे हैं।

अम्बेडकरवादी चिंतकों का कहना है कि संविधान सभा में ही ST-SC आरक्षण निर्धारित हो गया था जिसका आधार आर्थिक पिछड़ापन नहीं था। ग़रीबी के आधार पर जातिय भेदभाव नहीं होता और न ग़रीबी के आधार पर क्रिमिनल ट्राइब एक्ट अंग्रेजों ने लागू किया था. सुप्रीम कोर्ट का फैसला इसलिए आदिवासी और दलित विरोधी है.

लोक जनशक्ति पार्टी ने मामले में अपना रुख साफ़ करते हुए ब्यान जारी किया जिसमे लिखा कि, " SC-ST श्रेणियों को सब-कैटेगरी में रिजर्वेशन वाले मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) पक्षधर नहीं है।पार्टी के संस्थापक पद्म भूषण श्रद्धेय रामविलास पासवान जी भी इस बात की मांग करते आएं की जब तक समाज में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के खिलाफ छुआछूत जैसी प्रथा है तब तक SC-ST श्रेणियों को सब-कैटेगरी में आरक्षण और कृमिलेयर जैसे प्रावधान न हो। लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) सर्वोच्च न्यायालय से आग्रह करती है की फैसले का पुर्नविचार किया जाए ताकि SC-ST समाज में भेदभाव न उत्पन्न हो और समाज को कमजोर न किया जा सके।"

नगीना सांसद भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद ने कहा, " ''सुप्रीम कोर्ट के सात जजों में से कितने दलित, आदिवासी थे? क्या उन्हें हमारे दर्द का एहसास है? सबसे पहले वर्गीकरण सुप्रीम कोर्ट से शुरू होना चाहिए..."

राजद प्रवक्ता कंचना यादव ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा- "सुप्रीम कोर्ट में वर्गीकरण नहीं करेंगे. EWS में वर्गीकरण नहीं करेंगे. बस वर्गीकरण SC-ST आरक्षण में करेंगे. इसी को कहते हैं ब्राह्मणवादी सोच, आपका बाटेंगे अपना नहीं."

अखिल भारतीय दलित लेखिका मंच की सदस्य और जेएमआई प्रोफेसर हेमलता महिश्वर ने कहा, "हिंदू वर्ण व्यवस्था के तहत डॉ. अम्बेडकर ने विभिन्न उपजातियों को एक श्रेणी में रखा था, और हम संवैधानिक आधार पर एकता की ओर बढ़ रहे हैं। लगता है कि सरकार हमारी एकता से खुश नहीं है, इसलिए माननीय सुप्रीम कोर्ट ने फिर से 'विभाजन और शासन' की नीति अपनाई है।"

ट्राइबल आर्मी के संस्थापक हंसराज मीणा ने कहा- " सुप्रीम कोर्ट का एससी-एसटी वर्गों में उपवर्गीकरण का फैसला समाज में "फूट डालो, राज करो" मनुवादी पूर्वाग्रह से प्रेरित है। हम इस फैसले का विरोध करते हैं। मोदी सरकार को लगता है कि वह एससी एसटी में उप वर्गीकरण करके समाज में फूट डालकर उनकी हकमारी कर सकती है तो ये उसकी गलतफहमी हैं। 2,अप्रैल 2018 का एससी एसटी एक्ट बचाओ आंदोलन याद तो होगा? शाम 5 बजे सरकार ने घुटने टेक दिए थे। बहुजनो के भोलेपन को उनकी कमजोरी ना समझें, सरकार ने अगर इस दिशा में कोई कदम उठाया तो 2018 से भी बड़ा आंदोलन का सामना करने के लिए तैयार रहें।"

बहुजन चिंतकों की नाराजगी इस बात को लेकर भी है कि सुप्रीम कोर्ट के 7 जजों की बेंच में से 6 सवर्ण जजों ने देश की 30% आबादी का भविष्य निर्धारित करते हुए ST-SC आरक्षण में क्रीमीलेयर लागू की जाने की अनुमति दे दी है, जिसमें एक भी एसटी का जज नहीं था। विपक्षी गण कहते हैं यह फैसला सरकार और कोर्ट का संविधान पर अब तक का सबसे बड़ा हमला है।

रॉयल हॉलोवे, यूनिवर्सिटी ऑफ़ लंदन में असिस्टेंट प्रोफेसर रविंद कुमार ने फैसले को असंवैधानिक बताया और कहा कि ऐसे बदलाव संसद के माध्यम से किए जाने चाहिए, न कि न्यायपालिका द्वारा।

दिल्ली विवि में असोसिएट प्रोफ़ेसर रतनलाल ने ट्वीट किया- " SC,ST आरक्षण में बंटवारा हो सकता है. सुदामा कोटा 'ईश्वरीय' है, उसमें बंटवारा नहीं हो सकता. गैर-संवैधानिक फैसला."

जादवपुर विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर सुभजीत नास्कर ने 1 अगस्त को "काला दिन" बताया और कहा कि उप-वर्गीकरण से एससी और एसटी पदों में रिक्तियों में वृद्धि हो सकती है, जिससे आरक्षण नीतियों का मकसद पूरा नहीं हो पाएगा।

डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर विद्यार्थी संघटना के डॉ. सिद्धांत भरने ने मांग की-सरकार हस्तक्षेप करें, सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निरस्त करें.

भारत आदिवासी पार्टी के प्रवक्ता डॉ. जितेंद्र मीना ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट के उच्च जाति के जजों ने संविधान सभा द्वारा लिए गए फैसलों को चुनौती दी है। एससी और एसटी के लिए आरक्षण संविधान सभा की बैठकों में स्थापित किया गया था, और पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण ए.के. चंदा समिति की रिपोर्ट के आधार पर 1967-68 में दिया गया था। क्या ए.के. चंदा समिति की रिपोर्ट को अब संविधान सभा के फैसलों से ऊपर रखा जा रहा है? सुप्रीम कोर्ट संविधान सभा के फैसलों को पलटने की कोशिश कर रहा है। यह कदम विभाजन पैदा करने के लिए किया जा रहा है, क्योंकि गरीबी को आदिवासियत और भेदभाव के आधार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।"

जेएनयू के प्रो. विवेक कुमार कहते हैं -"मैं लंबे समय से लिख रहा हूं और बहस चला रहा हूं कि 'आरक्षण कोई गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नहीं है' तो फिर आप आर्थिक मानदंडों के आधार पर SC/ST को आरक्षण से वंचित कैसे कर सकते हैं?"

अम्बेडकरवादी विचारक डॉ रेहाना रवींद्रन ने कहा कि फैसले से एससी और एसटी के लिए शिक्षा और रोजगार में प्रतिनिधित्व में प्रगति पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने आरक्षण के भीतर आरक्षण को मंजूरी देने के लिए भारतीय न्यायपालिका की आलोचना की और कहा कि यह उच्च जातियों के अनुपातहीन प्रतिनिधित्व पर चुप है।

दिल्ली हाई कोर्ट में प्रैक्टिसिंग युवा लॉयर मयंक यादव ने कहा, "क्रीमी लेयर की अवधारणा संविधान सभा द्वारा नहीं बनाई गई थी। इसका समावेश शुद्ध रूप से न्यायिक सक्रियता या बेहतर कहें तो न्यायिक अतिक्रमण है। सुप्रीम कोर्ट का काम कानून की व्याख्या करना है, न कि विधायिका करना।"

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कानून के छात्र विराज वर्धन, ने फैसले को "एससी/एसटी आरक्षण पर सबसे बड़ा हमला" बताया और कहा, "अब हर कोई जो आरक्षण के बारे में कुछ नहीं पसंद करता है, वह सुप्रीम कोर्ट में जाएगा और याचिका दायर करेगा। आरक्षण की जड़ें कमजोर हो गई हैं।"

वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश ने फैसले की आलोचना करते हुए कहा , "SC/ST आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है. इनको सामाजिक-शैक्षिक पिछड़ेपन और सदियों के अन्याय के कारण आरक्षण मिला था. क्या ये 'कारण' अब नहीं रहे?"

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