लखनऊ। हाल ही में जारी हुई NCRB 2022 की रिपोर्ट में एक साल में दर्ज हुए पॉक्सो के आंकड़ों ने चौकाया है। बावजूद इसके जिम्मेदार अपराधों को लगाम देने और कानून में सख्ती के ठोस कदम नहीं उठा रहे हैं, जिसका उदाहरण झांसी जिले के बबीना क्षेत्र में दिखाई दिया। बबीना में शौच के लिए निकली एक नाबालिग किशोरी का शव अर्धनग्न अवस्था में झाड़ियों में पड़ा मिला। शव के चेहरे को बुरी तरह पत्थर से कुचला गया था। पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है। पुलिस अब परिजनों की तहरीर पर मुकदमा दर्ज कर जांच में जुटी है।
पुलिस के अधिकारियों का कहना है कि पीएम रिपोर्ट आने के बाद ही रेप की पुष्टि हो सकेगी। इसके अतिरिक्त पुलिस की कई टीमें जांच में जुट गई हैं।
झांसी के बबीना थाना क्षेत्र में क्षेत्रवासियों ने एक किशोरी का शव घर से कुछ ही दूरी पर रक्त रंजित नग्न अवस्था में पड़ा देखा। मौके पर पहुंचे लोगों ने शव की पहचान बबीना की ही आदिवासी दलित बस्ती की निवासी 16 वर्षीय किशोरी के रूप में की। सूचना पर पहुंचे किशोरी के भाई ने बताया कि उसकी बहन गत गुरुवार शाम को अपनी सहेली के साथ घर से निकली थी और उसके बाद घर नहीं लौटी। जबकि, सहेली घर पर मौजूद है। रात भर सभी जगह तलाश करने के बाद शुक्रवार सुबह पुलिस को सूचना देने से पहले ही बहन की लाश मिलने की जानकारी पड़ोसियों ने दी। परिजनों के अनुसार, किशोरी के साथ बलात्कार कर हत्या की गई है। शव के पास से पुलिस को एक युवक की फोटो मिली है। किशोरी का दुपट्टा शव से काफी दूरी पर पड़ा हुआ था।
सूचना पर पहुंचे एसएसपी राजेश एस का कहना है कि प्रथम दृष्ट्या मृतिका के सिर पर पत्थर पटककर हत्या की गई है। फॉरेंसिक टीम को कुछ अहम सुराग भी मिले हैं,जोकि बलात्कार के बाद हत्या की ओर इशारा कर रहे हैं, लेकिन रेप की पुष्टि पोस्टमार्टम के बाद ही होगी। घटना के खुलासे के लिए टीम बना दी गई है।
देश के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश बच्चों के खिलाफ जघन्य अपराधों के लंबित मामलों में पहले नंबर पर है। यूपी में बच्चों के खिलाफ जघन्य अपराधों के 67,200 मामले लंबित हैं, जो सभी राज्यों में सबसे अधिक है। प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस एक्ट (पॉक्सो) अधिनियम के तहत दर्ज सभी लंबित मामलों का लगभग 28% है। पीड़ित बच्चों के लिए अदालती कार्रवाई से बचने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट में मुकदमों को जल्द पूरा करने का प्रावधान है, लेकिन अभी इन्हें न्याय नहीं मिल रहा है। सरकार द्वारा पॉक्सो अधिनियम में बदलाव करते हुए फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाया गया था। पॉक्सो के मामलों के लिए हर जिले में कम से कम एक फास्ट ट्रैक कोर्ट है। हालांकि साल 2016 से लेकर अब तक पॉक्सो के लंबित मामलों में 170 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है। साल 2016 में पॉक्सो के लंबित मामलों की संख्या 90205 थी, लेकिन जनवरी 2023 तक इन मामलों की संख्या 243237 तक पहुंच गई।
अन्य राज्यों में पॉक्सो के लंबित मामलों की संख्या की बात करें तो महाराष्ट्र में पॉक्सो के लंबित मामलों की संख्या 33000 है। महाराष्ट्र यूपी के बाद पॉक्सो के लंबित मामलों में दूसरा राज्य है जिसमें सबसे अधिक लंबित मामले हैं। इसके साथ ही पश्चिम बंगाल में 22100, बिहार में 16000, ओडिशा में 12000 और तेलंगाना और मध्य प्रदेश में 10,000 मामले हैं। वहीं दिल्ली में 9108, राजस्थान में 8921, असम में 6875, हरियाणा में 4688 और झारखंड में 4408 मामले हैं।
केंद्रीय वित्त पोषण के साथ 764 विशेष फास्ट ट्रैक कोर्ट पॉक्सो और बलात्कार के मामलों को निपटाने के लिए ही स्थापित किए हैं, जिसमें से 411 विशेष फास्ट ट्रैक कोर्ट पॉक्सो अधिनियम के मामलों के लिए हैं, ये अदालतें साल में 1.4 लाख मामलों को निपटाते हैं।
हाल ही में जारी हुई एनसीआरबी की रिपोर्ट 2022 के मुताबिक देश भर में पॉक्सो की धाराओं के तहत कुल 62,095 मामले दर्ज किए गए हैं। वहीं 2021 में बच्चों के खिलाफ अपराध के 1,49,404 मामले दर्ज किए गए, जिनमें से 53,874 करीब 36.05 प्रतिशत पॉक्सो के तहत थे। 2020 में बच्चों के खिलाफ अपराध के 1,28,531 मामलों में से 47,221 पॉक्सो के मामले थे (36.73 प्रतिशत) और 2019 में 1,48,185 ऐसे मामलों में से 47,335 मामले (31.94 प्रतिशत) थे।
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