जयपुर। विधवा प्रेमदेवी जाटव की बड़ी चिंता दूर हो गई। बेटी बबिता के साथ भतीजी चावला के भी हाथ पीले हो गए। अब वह चिंता मुक्त होकर मजदूरी पर जाने लगी है। प्रेम देवी कहती है, "सर से बड़ा बोझ उतर गया।" राजस्थान के करौली जिले के कोठरी, पालनपुर गांव में रहने वाली विधवा महिला ने उन युवाओं का भी शुक्रिया अदा किया है, जिन्होंने बेटियों के विवाह का बीड़ा उठाया।
जानकारी के अनुसार, प्रेमदेवी का विवाह कोठरी के पप्पू जाटव के साथ हुआ था। बहन भागवती का विवाह भी इसी घर में जेठ जगमोहन जाटव के साथ हुआ था। दोनों बहनें काफी खुश थीं। राजी खुशी परिवार चल रहा था। गांव वाले बताते हैं कि एक दशक पूर्व प्रेमदेवी के जेठ-जेठानी की सिलिकोसिस बीमारी के कारण असमय मौत हो गई। दोनों पति-पत्नी की मौत के बाद चावला सहित सात बेटियां निराश्रित हो गईं। चाचा पप्पू जाटव व चाची प्रेमदेवी ने सातों बहनों को सहारा दिया। कुछ दिन बाद प्रेमदेवी का पति पप्पू जाटव भी सिलिकोसिस बीमारी के कारण दुनिया छोड़ गया। विधवा प्रेमदेवी पर दोनों परिवार की जिम्मेदारी आ गई। प्रेमदेवी को शुरुआत में दिक्कतें भी हुईं, लेकिन हौंसला नहीं हारा। धीरे-धीरे स्थिति सामान्य होने लगी। मजदूरी कर परिवार का पालन पोषण करती रहीं। इस दौरान जेठ की पांच बेटियों का विवाह भी किया, इस दौरान उसकी भी बेटी श्यानी हो गई। वहीं जेट की भी बेटी शादी लायक हो गई। दो बेटियां फिर श्यानी हुईं तो शादी की चिंता बढ़ने लगी। महिला विवाह की तैयारियों की उधेड़-बुन में डूबी रहती। गांव के कुछ दलित समाज के युवाओं ने उसकी पीड़ा को समझ कर कुछ करने की ठानी।
करौली जिले के स्वतंत्र पत्रकार मदनमोहन भास्कर ने द मूकनायक को बताया कि कोठरी गांव में मजदूरी करने वाले रवि जाटव ने उनसे इस परिवार की पीड़ा बताई थी। पहले तो विश्वास नहीं हुआ। बाद में खुद गांव में जाकर सत्यता जानी। पता चला कि एक बेटे व 9 बेटियों के पालन पोषण की जिम्मेदारी अकेली महिला पर है। इस पर वापस आकर सबसे पहले दलित समाज की बैठक में यह बात रखी। इस पर समाज ने जन सहयोग से बेटियों की शादी करने का निर्णय लिया। सोशल मीडिया के माध्यम से एक लाख रुपए से अधिक राशि का सहयोग मिला। इसके अलावा नकद भी मदद हुई। जरूरतमंद बहनों के विवाह के लिए एक कमेटी भी बनाई गई। जिसने आय-व्यय के साथ ही विवाह की सम्पूर्ण जिम्मेदारी निभाई।
अन्य समाज के लोगों ने भी किया सहयोग
पंचायत समिति सदस्य इंद्रेश जाटव ने बताया कि समाज की दो बेटियों के विवाह के लिए पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता मदनमोहन भास्कर ने पीड़ित परिवार के लिए सोशल मीडिया पर सहयोग मांगा। इस पर दलित समाज के लोगों के अलावा अन्य समाज के लोगों ने भी आर्थिक सहयोग किया। यह हमारे लिए अच्छी पहल थी। जब देश भर में दलितों पर अत्याचार की घटनाएं सामने आ रही थीं। करौली जिले में सभी समाजों के लोग जातिगत भेद भुला कर दलित समाज की बेटियों को अपना मान कर कन्यादान के रूप में आर्थिक सहयोग कर रहे थे।
अनाथ होने का नहीं हुआ एहसास
बबिता के सिर से पिता का साया तो चावला के सर से मां-बाप का साया उठ चुका था। दोनों अनाथ थीं, लेकिन विवाह में उन्हें यह एहसास तक नहीं हुआ कि वह अनाथ है। गांव के दलित समाज के साथ ही सर्वसमाज के लोगों ने कन्यादान के रूप में उन्हें भी रिवाज के अनुसार बेड, गद्दा, बैडसीट, तकिया, कम्बल, कूलर, गोदरेज अलमारी, सोफा, टेबल, कुर्सी, सिलाई मशीन, पंखे, घर में रोजाना काम आने सभी बर्तन व अन्य सामान के साथ आर्थिक सहयोग किया। सोशल मीडिया पर मिशन शादी के लिए रिंकू खेड़ी हैवत, अनिल जेडिया ढिंढोरा, देसराज करसौली, सुगर लाल ढिंढोरा, गोपाल फौजी धंधवली, दिनेश खिजुरी व अश्वनी हिण्डौन ने भी अहम भूमिका निभाई।
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