राजस्थान: किडनी फेल होने से जवान बेटे की गई जान तो इस पिता ने गुर्दा रोगियों की सेवा को बना लिया जीने का मकसद

वर्ष 2008 से अब तक 57 लोगों का करवाया किडनी ट्रांसप्लांट, भामाशाहों की मदद से 1.37 करोड़ रुपये जुटाए
राजस्थान: किडनी फेल होने से जवान बेटे की गई जान तो इस पिता ने गुर्दा रोगियों की सेवा को बना लिया जीने का मकसद
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उदयपुर। मां की ममता और वात्सल्य की तो हमेशा स्तुति होती है लेकिन भारतीय संस्कृति में पिता का दर्जा भी कम नहीं है। महाभारत में यक्ष प्रश्न के जवाब में युधिष्ठिर ने कहा था- आकाश से ऊंचा पिता है। 

आज पितृ दिवस पर द मूकनायक अपने पाठकों के लिए एक ऐसे गरीब पिता की ह्रदयस्पर्शी कहानी लेकर आया है जिनका जवान पुत्र किडनी रोग के कारण हमेशा के लिए उनसे जुदा हो गया। बेटे के अंतिम संस्कार के बाद इस पिता ने संकल्प किया कि पुत्र के लिए शोक मनाने की बजाय वे ऐसा कुछ करेंगे ताकि किसी और के घर का चिराग ना बुझे।  

उदयपुर में चाय-नाश्ते के स्टॉल लगाने वाले 65 वर्षीय जितेन्द्र सिंह राठौड़ किसी परिचय का मोहताज नहीं है और लोग उन्हें अपने असली नाम की बजाय 'काजू भाई' के नाम से जानते हैं। शहर के टुरिस्ट हॉट स्पॉट माने जाने वाले गुलाब बाग इलाके में काजू भाई का चाय का स्टॉल है जहां करीब पच्चीस वर्षों से वे चाय - कचौरियां बेच कर अपने परिवार का गुजर बसर करते आये हैं। पांच रुपये प्रति कप चाय बेचने वाले काजू भाई बामुश्किल महीने 7-8 हज़ार रुपये कमा पाते हैं लेकिन बड़ी बात यह है कि अपनी छोटी सी कमाई का एक बड़ा हिस्सा वे आज भी परोपकार में व्यय करते हैं फिर चाहे किसी को हॉस्पिटल जाने आने का किराया देना हो या किडनी केयर फेसिलिटी के लिए धरना प्रदर्शन और पत्राचार पर होने वाला व्यय। 

काजू भाई
काजू भाई

साल 2007 में किडनी ट्रांसप्लांट नहीं होने की वजह से काजू भाई के  22 साल के बेटे की मौत हो गई थी. इस हादसे ने काजू भाई की जिंदगी बदल दी. महज आठवीं पास, चाय का ठेला चलाने वाले एक गरीब आदमी ने किस तरह अपने दृढ़ संकल्प और अथक परिश्रम के बल पर किडनी केयर, डोनेशन और ट्रांसप्लांट को लेकर एक मुहिम खड़ी कर दी- काजू भाई इसका जीवंत उदाहरण हैं। 

उदयपुर के रविन्द्र नाथ टैगोर मेडिकल कॉलेज (Ravindra Nath Tagore Medical College) के अधीन संभाग के सबसे बड़े महाराणा भूपाल चिकित्सालय में आज काजू भाई की बदौलत ही किडनी ट्रांसप्लांट यूनिट बनकर तैयार हुआ है। 

द मूकनायक ने काजू भाई के जीवन संघर्ष, मिशन और स्वप्न को लेकर विस्तृत चर्चा की जिन्हें जानने के बाद किसी के भी दिल में इस पिता के प्रति गहरी श्रद्धा और सम्मान की भावना जागृत होगी।

जन्म से पुत्र की थी एक ही किडनी, हो गई वो खराब

काजू भाई बताते है उनके सबसे बड़ा बेटे महेंद्र सिंह की जन्म से ही एक ही किडनी थी। गलत खान पान के कारण एक इकलौती किडनी भी डेमेज होती रही जिसके लिए 12-13 साल लगातार इलाज चलता रहा। वह साड़ी की दुकान में सेल्समेन की नौकरी करता था। अखाड़े जाने का शौक था। 

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वर्ष 2007 में बिना डाक्टर से परामर्श लिए महेंद्र ने बॉडी सप्लीमेंट्स का सेवन किया जिससे किडनी फेल हो गयी। "गुजरात के नाडियाड में हमने किडनी ट्रांसप्लांट के लिए सभी तैयारियां कर ली। अक्टूबर 28 को किडनी ट्रांसप्लांट होना था, प्रोटोकॉल भी चालू हो गया था लेकिन 5 अक्टूबर को मेरे बेटे की मृत्यु हो गई" काजू भाई कहते हैं। जवान बेटे की मौत से पूरा परिवार शोक ग्रस्त था। "भारी आर्थिक परेशानी और भूखे रहकर, कर्जा लेकर जिस बेटे का इलाज करवाया था वह यूं हमें छोड़ गया। शोक ग्रस्त था लेकिन फिर किसी संत की संगत में यह समझ आया कि जो इस दुनिया में आता है उसे एक दिन जाना ही होता है। बेटे की तेरहवीं तक उदास रहा लेकिन फिर मन में ठाना कि किडनी ट्रांसप्लांट नहीं होने के कारण मैंने अपना बेटा खोया तो और कोई पिता नहीं खोएगा. इस हादसे ने मेरे जीवन को एक मकसद दिया और मैंने ठानी कि मैंने अपने बेटे के इलाज के दौरान जितना अनुभव और ज्ञान अर्जित किया उसे परोपकार में खर्च करूँगा"। 

महेंद्र सिंह
महेंद्र सिंह

किडनी ट्रांसप्लांट फेसिलिटी के लिए चलाया सतत अभियान

काजू भाई ने एक संस्था लेकसिटी किडनी केयर एंड रिलीफ फाउंडेशन के नाम से शुरू की। उदयपुर में किडनी ट्रांसप्लांट की सुविधा नहीं होने से लोगों को गुजरात जाना पड़ता था। उदयपुर में ऑर्गन ट्रांसप्लांट फेसिलिटी के लिए काजू भाई ने कई प्रदर्शन किए, ज्ञापन सौंपे। 15 सालों में मुख्यमंत्री से लेकर प्रधान मंत्री कार्यालय तक काजू भाई 900 से ज्यादा खत लिख चुके हैं। "एक जुनून था जैसे मेरे दिमाग पर, बस लिखता रहता था, लिखता रहता था। ग्राहक आकर चाय मांगते लेकिन मैं लिखने में इतना मगन होता कि ग्राहकी की भी सुध ना रहती, लोग कहते थे- पागल हो गया बेटे के गम में", काजू भाई भर्राए स्वर में कहते हैं।

वे आगे बताते हैं कि मैंने पहला पत्र मीडिया में जारी किया और बताया कि उदयपुर जैसे शहर में किडनी ट्रांसप्लांट यूनिट की कितनी जरूरत है. मीडिया ने सपोर्ट किया और जोरों से मुद्दा उठाया. कलेक्टर से लेकर मंत्री तक इसकी गुहार लगाई. लगातार पत्राचार किए, प्रदर्शन किए, प्रशासन को बताया कि जिले और संभाग में कितने मरीज हैं जिन्हें किडनी ट्रांसप्लांट यूनिट की जरूरत है. तत्कालीन केलक्टर आशुतोष पेडनेकर ने इस बात को समझा और शुरुआती फंड जारी किए. फिर महाराणा भूपाल चिकित्सालय परिसर में ही सुपर स्पेशलिस्ट ब्लॉक के लिए सरकार से जमीन अलॉट कराई. आज ब्लॉक बनकर तैयार है और मशीनें लगभग आ चुकी हैं और कुछ ही माह में किडनी ट्रांसप्लांट शुरू भी हो जाएगा. ऑर्गन रिट्रीव यानी ऑर्गन को निकालने के लिए सेटअप लग चुका हैं. ट्रांसप्लांट की अभी अनुमति नहीं मिली है, जो एआईआईएमएस (AIIMS) से मिलना है। 

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57 लोगों को किडनी डोनेशन के लिए किया प्रेरित, उपचार के 1.37 करोड़ भी जुटाए

बड़ी बात ये है कि इन 15 वर्षों में काजू भाई की प्रेरणा और संस्थान की मध्यस्थता से 57 लोगों की अहमदाबाद और जयपुर किडनी ट्रांसप्लांट करवा चुके हैं. लोगों को किडनी डोनेट करने के लिए प्रेरित करना और महँगे ट्रांसप्लांट के लिए धन जुटाना बहुत मुश्किल कार्य होता है जो काजू भाई करते आए हैं। 

उन्होंने बताया, "मैं या मेरी संस्थान भामाशाहों से सीधे मदद नहीं लेते हैं। उदयपुर संभाग से कोई भी जरूरतमंद मरीज मेरे से संपर्क करता है तो मैं उनके समाज से सहयोग की अपील करता हूँ और उसके बाद समाचार पत्रों में सिलसिलेवार अपीलों के जरिए दानदाताओं की मदद से आपरेशन में मदद करता हूँ। दानदाता सीधे मरीज या हॉस्पिटल को सहायता राशि देते हैं, अब तक इस तरह से एक करोड़ सैंतीस लाख रुपए की आर्थिक मदद कर चुके हैं।" वे कहते हैं कि सोशल मीडिया के आने में बाद अब सूचनायें तेजी से फैलती हैं जिससे अभियान को विस्तार मिला है। अब ज्यादा लोग मदद के लिए आगे आते हैं, पहले ये सब इतना सहज नहीं था। इनकी संस्थान हर साल विश्व गुर्दा दिवस पर किडनी डोनर्स का सम्मान करती है। इसके अलावा काजू भाई हर वर्ष अपने बेटे के जन्म दिन और पुण्यतिथि पर रक्तदान शिविर आयोजित करवाते हैं, अब तक 1372 यूनिट रक्त सरकारी अस्पताल में जरूरतमंद रोगियों के लिए उपलब्ध करवाया जा चुका है। 

बचपन में काजू खाने का शौक, काजू का आकार किडनी जैसा

काजू भाई सुबह 7 बजे से शाम 7 बजे तक अपने चाय स्टॉल पर काम करते हैं। और उसके बाद वह शायद ही कभी फुरसत की गतिविधियों पर समय बिताते है। काम के दौरान भी वे गुर्दे की बीमारियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और किडनी रोगियों को सहायता प्रदान करने के लिए समय देते हैं। 'काजू भाई' नाम को लेकर वे बताते हैं कि उन्हें बचपन में कोई 2 पैसे 4 पैसे देता था तो वे दौड़ कर बनिये की दुकान से काजू लेकर खाते थे। घरवालों ने प्यार से काजू पुकारना शुरू कर दिया। "आज समझ में आता है कि ईश्वर ने मुझे किडनी रोगियों की सेवा के लिए ही बनाया है क्योंकि मेरा नाम काजू भी इस कार्य से सार्थक हुआ है- काजू का आकार किडनी जैसे ही तो है", कहते हुए वे मुस्कुराते हैं। 

काजू भाई कहते हैं कि रोगियों को एक तो भोपा और दूसरे डॉक्टर लोग ठगते हैं। भोपा उन्हें उपचार के नाम पर देवी देवता के दारू मुर्गे चढ़ाने जैसे नुस्खे बताते हैं और डॉक्टर महंगी दवा लिखते हैं। "अपने बेटे के इलाज के दौरान मुझे सीख मिली कि क्या खाने से शरीर में क्रिएटिनिन और ब्लड युरिया लेवल बढ़ता है, क्या सही डाइट है, क्या नहीं खाना है। डायलेसिस केवल रिलीफ देता है, किडनी ट्रांसप्लांट एकमात्र उपचार है। डॉक्टरों की मेडिकल भाषा गांव का आदमी नहीं समझता ऐसे में मैं उनको मेवाड़ी भाषा में समझता हूं, उचित सलाह देता हूँ।"

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काजू भाई के परिवार में उनकी पत्नी रतन कुंवर, मंझला बेटा देवेंद्र सिंह , छोटा बेटा सिद्धराज सिंह और उसकी दो वर्ष की बेटी हैं। दवेंद्र का विवाह नहीं हुआ है और वह घरों में आरओ फिटिंग का काम करता है। सिद्धराज वाटर वर्क्स में ठेकेदार के अधीन काम करता है। उसकी शादी के तीन वर्ष बाद पत्नी की मृत्यु होने के कारण अब 2 साल की नन्ही बेटी की देखभाल काजू भाई और उनकी पत्नी ही करते हैं।

दोनों बेटों द्वारा गृहस्थी का भार संभाल लेने के बाद काजू भाई कहते हैं कि वे अब निश्चिंत व अधिकांश समय अपने मिशन को ही समर्पित हैं तथा जिस दिन उदयपुर के सरकारी हॉस्पिटल में किडनी ट्रांसप्लांट सुविधा शुरू हो जाएगी तब अपना जीवन सार्थक मानेंगे। वर्तमान में उदयपुर शहर में एक निजी मेडिकल यूनिवर्सिटी के हॉस्पिटल में किडनी ट्रांसप्लांट सुविधा है और 5 किडनी प्रत्यारोपण हो चुके हैं जिसमें से तीन काजू भाई की प्रेरणा से डोनेशन के बाद ट्रांसप्लांट हुए हैं।

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